… देश का पहला शहर है, जहां डंपिंग यार्ड नहीं है
छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर देश का पहला ऐसा शहर बन गया है जहां डंपिंग यार्ड नहीं हैं। यहां के कचरा प्रबंधन मॉडल को देश के लिए रोल मॉडल करार दिया गया और राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। यह पूरा सिस्टम महिलाएं चला रही हैं। डंपिंग यार्ड यानी वह जगह जहां शहर भर के कचरे को एकत्र किया जाता है। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर में डंपिंग यार्ड नहीं है।
सैकड़ों महिलाओं को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है
यह देश का पहला डंपिंग यार्ड विहीन शहर बन गया है। अंबिकापुर के कचरा प्रबंधन मॉडल को देश के लिए रोल मॉडल करार दिया गया है। गत दिवस गांधी जयंती पर इस मॉडल को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इसकी एक खूबी यह भी है कि यह पूरा सिस्टम महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है। सैकड़ों महिलाओं को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है।
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अंबिकापुर देश का पहला शहर है, जहां डंपिंग यार्ड नहीं है
डंपिंग यार्ड के धसकने से हाल ही में एक बड़ा हादसा हुआ था। इस घटना ने महानगरों में डंपिंग यार्ड की समस्या को नए सिरे से रेखांकित किया। कचरा प्रबंधन के अंबिकापुर मॉडल की सबसे बड़ी खूबी यही है कि इसमें डंपिंग यार्ड की जरूरत ही नहीं पड़ती। यही नहीं, अंबिकापुर देश का पहला शहर है, जहां डंपिंग यार्ड नहीं है। पुराना डंपिंग यार्ड अब खूबसूरत पार्क में तब्दील कर दिया गया है। अब यहां कहीं भी कचरे का ढेर नहीं लगाया जाता। हालांकि इस शहर की आबादी कम है, लेकिन इस स्तर के अन्य शहरों की अपेक्षा यह अव्वल स्थान पर है।
500 से अधिक महिलाओं को घरों-घर जाकर कचरा संग्रहण का जिम्मा
कचरा प्रबंधन का इसका मॉडल देश में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। देशभर में इसे अपनाया जाना है। इसमें 500 से अधिक महिलाओं को घरों-घर जाकर कचरा संग्रहण का जिम्मा सौंपा गया है। ये महिलाएं हर दिन घरों-घर जाकर कचरा एकत्र करती हैं। हरे रंग की साड़ी, मास्क और दस्ताने पहनीं ये महिलाएं इलेक्टिक रिक्शेनुमा ट्रॉली वाले वाहन पर सवार हो इस काम को तत्परता से अंजाम देती हैं। इसकेबाद 17 एसएलआरएम सेंटरों में कचरे को पहुंचाती हैं। जहां कचरे की छंटाई की जाती है। गीले कचरे को खाद में तब्दील कर दिया जाता है। और सूखे कचरे को रि-साइकिल करने के लिए कबाड़ में बेच दिया जाता है। जैविक खाद से तो आय हो ही रही है।
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पूरा मॉडल वित्त के मामले में आत्मनिर्भर है
कबाड़ को बेचकर भी समिति को लाखों रुपए प्राप्त हो रहे है। वहीं, घरों से कचरा संग्रहण के एवज में हर घर से 50 रुपए मासिक शुल्क लिया जाता है। शहर के तालाबों को स्वच्छ रखना भी इस मॉडल में शामिल है। तालाबों में बतख पालन से तालाबों की सफाई तो हो रही है, साथ ही अंडों से भी अतिरिक्त आय हासिल हो रही है। यह पूरा मॉडल वित्त के मामले में आत्मनिर्भर है।
इसकी शुरुआत यहां दो साल पहले हुई थी
करीब एक हजार महिलाओं को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है। डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण और सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट यानी सूखे और गीले कचरे को छांटकर अलग करना, इन दो प्रक्रियाओं पर आधारित है यह मॉडल। इसकी शुरुआत यहां दो साल पहले हुई थी। तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन ने इसकी योजना बनाई थी। इसके तहत निगम के 48 वाडो में स्वच्छ अंबिकापुर मिशन सहकारी समिति का गठन किया गया। जिसकी सभी सदस्य महिलाएं हैं।
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