दही हांडी का पर्व आज, जानें इसका महत्व और मनाने का तरीका….
जन्माष्टमी के दूसरे दिन देश के कई सारे हिस्सों में दही हांडी का त्यौहार मनाया जा रहा है, यह पर्व हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है. यह त्यौहार भगवान कृष्ण लीला से प्रेरित है, इसी लिए इस त्यौहार में कृष्ण भक्तों की एक टोली ऊंची टंगी दही की एक हांडी को मानव पिरामिड बनाकर तोड़ते है. ऐसे मे इस त्यौहार का महत्व और इसके पीछे की कहानी को जानने के लिए पढें विस्तार से…
दही हांडी का क्या है महत्व
दही हांडी का पर्व मनाने की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. यह त्योहार भगवान कृष्ण की बचपन की लीलाओं का स्मरण करता है, जैसे बालकृष्ण ने माखन चुराने के लिए मटकी फोड़ दिया करते थे. उसी तरह, कन्हैया की नटखट लीलाओं को याद करते हुए लोग दही की हांडी फोड़कर इस उत्सव को मनाते हैं.
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण बचपन में माखन और मिशरी चुराकर अपने दोस्तों में बाँटते थे, इसलिए कान्हा को माखन चोर भी कहा जाता है. कहा जाता है कि गोपियां माखन की मटकी को घर में किसी ऊंचे स्थान पर लटका देती थीं ताकि कान्हा और उनके सखा उसे चुरा न पाएं. लेकिन फिर भी कान्हा अपने दोस्तों की सहायता से माखन चुराता लिया करते थें. यह त्यौहार महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार पर दही हांडी तोड़ने का कार्यक्रम घंटों तक चलता है, इस दौरान चारों ओर रंग-बिरंगे फूल और गुलाल उड़ते हैं, वही कहीं स्थानों पर पानी की वर्षा भी की जाती है. लेकिन यह काम गोविंदा काफी कड़ी मेहनत के बाद दही हांडी को फोड़ने में कामियाब हो पाते है.
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कैसे मनाया जाता है दही हांडी ?
यह त्यौहार काफी हर्षोल्लस और जोश से भरा हुआ है, इस दिन सड़क के बीच या किसी विशेष स्थान पर एक ऊंची रस्सी बांधकर उसमें दही से भरी हुई एक हांड़ी लटकाई जाती है. इसके बाद गोविंदाओं की टोली आती है और सभी गोविंदा एक दूसरे के कंधों पर पांव रखते हुए एक मानव पिरामिड तैयार करते है, वही इनमें से कोई एक गोविंदा ऊपर तक पहुंचता है और दही की हांडी को फोड़ने का प्रयास करता है. ऊपर एक नारियल भी होता है, जिससे गोविंदा नारियल को फोड़ते है. वही कई स्थानों पर इसको लेकर ईनाम भी रखा जाता है, जो कि गोविंदा टोली का हो जाता है.