200 साल पहले अंग्रेजों ने भी माना था- वाह ताज!
ताजमहल को लेकर भले ही कई विवाद उठ रहे हों लेकिन 200 साल पहले अंग्रेजों ने ताज को भारत की शान बताया था। देश में अंग्रेजों के आगमन और सत्ता संभालने के साथ ही इस इमारत की मरम्मत के लिए एक भारी रकम खर्च की गई थी। यही नहीं इसे ‘इंडिया का प्राइड’ बनाने के लिए सेना में बगावत के बाद भी कदम उठाए गए। अंग्रेजों ने लगातार ताज के आकर्षण को बरकरार रखने के लिए न सिर्फ इसकी मरम्मत करवाई बल्कि इसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए भी उपाय किए।
अंग्रेजों के शासनकाल में मरम्मत
अंग्रेजों के शासनकाल में ताजमहल की पहली बार मरम्मत 1810 में शुरू करवाई गई। तब यह काफी खस्ताहाल था। इलाहाबाद के क्षेत्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेज से इसकी पुष्टि होती है। जिनमें लिखा है कि मई 1810 से जुलाई 1814 तक ताजमहल की मरम्मत चली और इसकी मरम्मत पर 1,03,148 रुपये खर्च हुए। मरम्मत से पहले इसका 83,500 रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया था। लेकिन मरम्मत पूरी होते-होते यह रकम बढ़ गई। करीब दो सौ साल पहले खर्च की गई यह रकम काफी बड़ी थी।
छोटी-छोटी चीजों का भी हिसाब
दस्तावेज के अनुसार मरम्मत का जिम्मा लेफ्टिनेंट जे टेलर को दिया गया था। उन्हें इंजिनियर इंचार्ज ऑफ द रिपेयर ऑफ द ताजमहल प्रॉजेक्ट का मुखिया बनाया गया था। मरम्मत के दौरान इंजिनियर इंचार्ज को हर महीने का मंथली स्टेटमेंट भी देना होता था। इसका जिक्र ‘डिटेल्ड मंथली अकाउंट ऑफ द एक्सपेंसेस ऑफ द लेबर ऐंड मटीरियल यूज्ड इन द रिपेयर ऑफ द ताजमहल ऐट आगरा’ में मिलता है। ताज की मरम्मत के लिए एक हजार रुपये का पहला ऑर्डर 13 मई 1810 को दिया गया था। यह मार्बल का ऑर्डर था। इस स्टेटमेंट में छोटी-छोटी चीजों का भी हिसाब दिया गया है। इसमें कुली, नाविक, स्टोन कटर, बेलदार और बढ़ई को दिए जाने वाले मेहनताने का भी जिक्र है। मरम्मत के पहले महीने में कुल खर्च 4,136 रुपया हुआ जबकि अडवांस 5000 रुपये मिले थे। मरम्मत पर आने वाले खर्च का हिसाब ‘बोर्ड ऑफ रेवेन्यू कमिटी’ को देना होता था।
गदर के बाद दोबारा हुई मरम्मत
1857 के विद्रोह के दौरान भी ताज को नुकसान पहुंचा था। इस विद्रोह के शांत होने के बाद 1864 में दोबारा मरम्मत करवाई गई। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस के आईजी ऑफ हॉस्पिटल्स जॉन मूर ने आगरा के कलेक्टर पोलाक को पत्र लिखकर ताज की मरम्मत के लिए कहा था। उन्होंने लिखा था कि गदर के दौरान खूबसूरती को नुकसान पहुंचा है। इसके बाद कानपुर के परशुराम को इसकी मरम्मत का जिम्मा दिया गया। परशुराम ने ही प्रिंस ऑफ वेल्स के लिए मार्बल का ताबूत तैयार किया था। इलाहाबाद के क्षेत्रीय अभिलेख अधिकारी एके अग्निहोत्री ताज काफी पहले से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भी कई बार इसकी मरम्मत करवाई और इसकी सुंदरता बनाए रखने की कोशिश की। हालांकि यह लुटेरों के निशाने पर भी रहा, कई बार ताज से बेशकीमती रत्न लूटे गए।
(साभार- एनबीटी)
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