खुशियों को गले लगाएं, आत्महत्या की प्रवृत्ति को दूर भगाएं
सामाजिक परिवर्तन से बढ रहा तनाव और अवसाद, बोले खुशहाली गुरु
समाज में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं. खासतौर से युवाओं के साथ ही बच्चों व ज्यादा उम्र के लोगों में भी यह प्रवृत्ति देखने को मिल रही. काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डा. संजय गुप्ता (खुशहाली गुरु) ने इसको लेकर जर्नलिस्ट कफे से विस्तार से बातचीत की. उनका मानना है कि इस तरह की घटनाओं के लिए समाजिक परिवर्तन सबसे अहम कारण है. इसकी वजह से लोगों में तनाव व अवसाद बढ़ रहा है. नींद कम आना अथवा अधिक आना तनाव का लक्षण है. समाज में तनाव और वर्कलोड बढ़ता जा रहा है. लोग समाज से काटने लगे हैं और अकेले रहना पसंद कर रहे हैं. जब संयुक्त परिवार था तो लोग कम सुसाइड या आत्महत्या करते थे, क्योंकि परिवार के लोग संयुक्त रूप से रहते थे और किसी भी प्रकार की समस्या आने पर आपस में समझते थे और एक दूसरे को समझाने का भी कार्य करते थे.
खुदकुशी की प्रवृत्ति जेनेटिक भी
अब जब लोग अकेले रहने लगे हैं तो कोई भी समझने वाला नहीं है और यह आत्महत्या की प्रवृत्ति एक दिन की नहीं होती यह धीरे-धीरे पनपती है. तीन से चाह माह में एक समय आता है कि यह प्रवृत्ति पूरी तरह से घर कर जाती है. आत्महत्या की प्रवृत्ति लोगों में जेनेटिक भी होती है. अगर किसी के माता-पिता या परिवार का कोई भी सदस्य आत्महत्या किया रहता है तो ऐसे परिवार में आत्महत्या करने का चांस ज्यादा रहता है. आज लोग तनाव से गुजर रहे हैं.
डाक्टर ने बातचीत के दौरान बताया कि अगर 100 लोग हमारे पास आते हैं तो उसमें से 25 लोग आत्महत्या के करीब रहते हैं. लोग चाहें तो खुद से अथवा किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लेकर योग, एक्सरसाइज, काउंसिलिंग व उपचार के जरिए तनाव को समाप्त कर सकते हैं. इससे उनका जीवन फिर खुशहाल होगा.
तेजी से बदल रहा सामाजिक ढांचा
उन्होंने बताया कि सामाजिक ढांचा तेजी से बदल रहा है. पुरानी व नई पीढ़ी के बीच असमंजस की स्थिति बढ़ रही है. मेल जोल नहीं हो पा रहा. कोरोना काल में लोग परिवार के साथ थे तो सामंजस्य न होने की वजह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़े.
कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे की बात ही नहीं सुनना चाहता है. खुद को सही साबित करने के चक्कर में तनाव बढ़ रहा है. बीमार व्यक्ति के परिवार के सदस्य भी इसको समझ नहीं रहे हैं जिससे जोखिम बढ़ा है.
90 फीसद नहीं आ पाते अस्पताल, संसाधनों की कमी
डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि तनाव की स्थिति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. 25 से 30 लोग अस्पताल आते हैं. इनमें कुछ लोगों के पास अटेंडेंट होते हैं, वहीं कुछ के साथ अटेंडेंट नहीं होते हैं. इससे अस्पताल में भर्ती नहीं हो पाते हैं.
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कभी-कभी बेड अथवा संसाधनों की कमी की वजह से अस्पताल में भर्ती नहीं हो पाते हैं. ऐसे में हाई रिस्क वाले मरीज भी बाहर रहते हैं. इससे खतरा और अधिक रहता है. 90 फीसद मरीज तो मनोचिकित्सक तक पहुंच भी नहीं पाते.
कभी-कभी इंसान खुद से कम नहीं कर पाता तनाव
कभी-कभी इंसान खुद से तनाव को कम नहीं कर पाता है. ऐसे में उसे विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए. नींद कम अथवा अधिक आना, गैस बनना, भूख-प्यास कम अथवा ज्यादा होना, अच्छा न सोच पाना सभी कामों में बुराई देखना, तनाव के लक्षण हैं. लोग इसे कम करने के लिए शराब, सिगरेट, गुटखा, खैनी खाते हैं, लेकिन इससे एक बीमारी के साथ लोग कई अन्य बीमारियों को पैदा कर देते हैं.
एक समय ऐसा भी आता है जिसमें डिप्रेशन, डाइविटिज और हृदय रोग साथ-साथ चलते हैं. इसलिए लोगों को सचेत होने की जरूरत है. बीएचयू मनोचिकित्सा विभाग में ओपीडी समेत अन्य सुविधाए हैं. लोग यहां आकर उपचार करा सकते हैं.
तनाव परीक्षण को लेटेस्ट स्केल
बताया कि तनाव मांपने के लिए स्केल बनाया गया है. छात्रों के लिए स्टूडेंट स्ट्रेस डाइमेंसन क्वेश्चनेयर है. इससे 15-20 मिनट में जांच पूरी हो जाती है. इसके बाद पूरी कुंडली (डाइग्राम) बन जाती है.
इससे पता चल जाता है कि किस-किस क्षेत्र में अधिक तनाव है. तनाव के कई कारण होते हैं. यदि कोई छात्र है तो सिर्फ पढ़ाई से ही स्ट्रेस नहीं होगा, बल्कि सभी पहलुओं को देखना पड़ता है. छात्र परिवार से भी दूर रहता है. उसका अपना दायरा, वित्तीय, व्यक्तित्व, बचपन, सोच आदि भी इसके कारण हो सकते हैं.
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खुद को बदलना होगा
मनोचिकित्सक संजय गुप्ता ने बताया कि जिंदा तो है परंतु वह तनाव में है. इसे कम करने का तरीका जानना जरूरी है. स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए खुद को बदलना होगा. अपना अहम छोड़कर खुद को समय के हिसाब से ढालें और सामंजस्य बैठाएं. यदि हर व्यक्ति दूसरे के नजरिये को समझने की कोशिश करें, तो तनाव की स्थिति नहीं पैदा होगी.
भाग दौड़ की जिंदगी दिन प्रतिदिन दे रही टेंशन
मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ती जा रही हैं, जिसके कारण उसकी जिंदगी भी काफी भागम भाग हो गई है. इससे टेंशन दिनों दिन बढ़ता जाता है. डाक्टर गुप्ता ने बताया कि यदि इंसान के तनाव का स्तर आज 150 है और दूसरे दिन कुछ नहीं भी हुआ तो इसका लेवल 20 प्वाइंट बढ़ सकता है. ऐसे ही बढ़ते-बढ़ते 300 तक पहुंच जाता है. इसी बीच यदि कोई डांट दे अथवा कोई बात हो जाए तो दिमाग में नकारात्मक विचार बनने लगते हैं. धीरे-धीरे तनाव बढ़ने के साथ ही व्यक्ति आत्महत्या के रास्ते पर चला जाता है.
शारीरिक व्यायाम तनाव कम करने का माध्यम
बीएचयू के साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खेल मैदान हैं. युवा व अन्य लोग रोज एक से डेढ़ घंटे खेल जरूर खेलें. शारीरिक व्यायाम भी तनाव को कम करने का जरिया है. इससे शरीर में एंडारसेंस पैदा होते हैं. यह फील गुड चीज होती है. यदि कोई टेंशन में है और जाकर एक-डेढ़ घंटे खेल ले तो उसका तनाव कम हो जाएगा.
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समाज में खुशहाली लाने को हैप्पी इंडिया कैंपेन
डाक्टर गुप्ता ने कहा कि खुशियां दिनोंदिन कम होती जा रही हैं. लोगों को खुश रखने का तरीका बताने के लिए ही 2015-16 से हैप्पी इंडिया कैंपेन शुरू किया गया है. इसका स्लोगन है दुखों का अंत हो, खुशियों का सवेरा आए. समाज में जागृति से ही दुखों का अंत होगा. लोगों को समझना होगा कि तनाव हमे त्रस्त नहीं, हमारा नाश कर सकता है.
योग व प्राणायाम से कम होगा तनाव
डाक्टर संजय गुप्ता ने बताया कि डीप ब्रिदिंग एक्सरसाइज (लंबी सांस लेना), योगा, प्राणायाम, सकारात्मक सोच विकसित करें. इससे तनाव का लेवल नहीं बढ़ेगा.
वहीं लगातार व्यायाम से धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा. इसके बाद लोग पूरी तरह से स्वस्थ व खुशहाल हो जाएंगे.