इस वजह से 19 महीने में बंद हो गया था हिन्दी का पहला समाचार पत्र, जानें कैसे बदली तस्वीर, कैसे हुआ हिन्दी पत्रकारिता का उदय…
साल 1826 को हिन्दी पत्रकारिता के उदय का काल माना गया है, यह वही साल था जब हिन्दी भाषा का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन की शुरूआत की गयी थी। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाला हिन्दी भाषा का पहला अखबार साप्ताहिक पत्र के रूप में प्रकाशित किया गया था, 8 पन्नो का यह हिन्दी समाचार पत्र मंगलवार के दिन प्रकाशित किया जाता था। इस पत्र का संपादन कानपुर के जन्मे और पेशे से वकील पंडित जुगल किशोर द्वारा किया जा रहा था। यह पत्र इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों के खिलाफ मुखर होकर लिखता था।
कानूनी अड़चनो और आर्थिक तंगी की वजह बंद करना पड़ा था समाचार पत्र
शायद यही वजह थी कि, यह पत्र अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में खटकने लगा था, इस वजह सरकार और समाचार पत्र के बीच पहले खुन्नस और फिर कानूनी लडाईयों का दौर शुरू हो गया था। ऐसे में जहां कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को डाक सुविधाएं दे रखी थी, वही उदन्त मार्तण्ड को इस सुविधा से दूर ऱखा गया था। इसका नतीजा कुछ यूं हुआ कि, साल 1827 की तारीख 19 दिसंबर का दिन हिन्दी पत्रकारिता के काले दिन बनकर आया और इसके साथ ही 19 महीने में अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा देने वाले समाचार पत्र को मजबूरन बंद करना पड़ा था।
इस बंद होने के साथ ही बंद होने के दो कारण सामने आये पहला आर्थिक तंगई और दूसरा कानूनी अड़ंगों की वजह 500 कॉपियों वाले इस पत्र को बंद करना पडा था। बताया जाता है कि, कलकत्ता हिन्दी भाषी लोगों की कमी होने के कारण समाचार पत्र को पाठक नहीं मिल पा रहे थे और हिंदी भाषी राज्यों तक पत्र पहुंचाने के लिए डाक की जरूरत होती थी, जो कि आर्थिक तौर पर काफी महंगा सौदा था। कहते है डाक सुविधा को पाने के लिए समाचार पत्र के संपादक जुगल किशोर ने अंग्रेजी सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई।
इस वजह से मनाया जाता है हिंदी पत्रकारिता दिवस
बेशक यह पत्र 19 माह के बाद में किन्ही कारणों से बंद हो गया लेकिन इस पत्र ने पत्रकारिता जगत को एक नई राह दिखा दी। इस पत्र ने समाज में हिन्दी पत्रकारिता की परिस्थितियां बदल दी और हिन्दी समाचार पत्रों ने समाज में अपना स्थान बना पाने का जज्बा दिया, क्योंकि समाज और राजनीति की दिशा और दशा को बदलने और सुधारने में इस पत्र ने हिन्दी पत्रकारिता ने काफी मदद आज हिंदी पत्रकारिता दिनों दिन समृद्धि की ओर कदम बढ़ा पायी। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रुप में मनाया जाता है। पं. जुगलकिशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरु किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद ही थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पं. जुगलकिशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता जगत में विशेष सम्मान है।
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आजादी के बाद हुआ हिन्दी पत्रकारिता का उदय
यदि बात करें हिन्दी पत्रकारिता के उदय की तो, यह बदलाव हिन्दी पत्रकारिता में आजादी के बाद देखने को मिला। समाचार पत्रों का व्यापक विकास हुआ। भारत के समाचार पत्र पंजीयक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय भाषाओं में सर्वाधिक पत्रों की संख्या हिंदी भाषा की हैं। दूसरे स्थान पर अंग्रेजी भाषा के पत्र हैं। वर्ष 2016-17 की आरएनआई रिपोर्ट से मुताबिक पंजीकृत प्रकाशनों की संख्या 1,14,820 हैं जिनमें सर्वाधिक 46,827 हिंदी भाषा के पत्र हैं एवं दूसरे रहन पर अंग्रेजी भाषा के 14,365 पत्र है।
इस अवधि तक कुल पंजिकृत प्रकाशनों में 3.58 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।सर्वाधिक हिन्दी पत्र उत्तर प्रदेश से प्रकाशित होते है एवं इसके बाद महाराष्ट्र राज्य से निकलते हैं।आजादी के बाद समाचार पत्रों की नीति-रीति में एवं प्रकाशन विधि में बदलाव होते रहे। आज समाचार पत्र ऑफसेट पर रंगीन छपने लगे हैं। समाचार संकलन इंटरनेट से सुविधा जनक हो गया। राष्ट्रवाद के मुद्दे सिमट कर रह गए और आज पत्रकारिता पूंजीपतियों का आधिपत्य बढ़ता गया और सम्पादक की शक्तियां क्षीण हो गई।
उद्योग का रूप ले रही है हिन्दी पत्रकारिता
पत्रकारिता ने उद्योग का रूप ले लिया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति होने पर भी यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज हिंदी पत्रकारिता विकृतियों से घिर कर स्वार्थ सिद्धि और प्रचार का माध्यम बन गई है।कहने को पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है पर उसके समुचित विकास में आज भी अनेक बाधाएं हैं। मध्यम एवं लघु समाचार पत्रों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं। न तो इन्हें पर्याप्त सरकार और सरकारी संस्थाओं के विज्ञापन मिलते हैं और निजी क्षेत्र भी बमुश्किल विज्ञापन देते हैं। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी ये किसी प्रकार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आवश्यकता हैं कि हिंदी पत्रकारिता के समुचित विकास के लिए बड़े समाचार पत्रों के साथ-साथ समस्त समाचार पत्रों का विकास हो और पर्याप्त आर्थिक सहायता उपलब्ध हो। समाज को भी इस ओर पहल करने की दरकार हैं।