नहीं रहीं दादी…64 साल के करियर में की एक लाख से अधिक डिलिवरी
पद्मश्री डा भक्ति यादव उर्फ दादी का सोमवार को इदौर में अपने घर में निधन हो गया। उनके पुत्र ने बताया दादी को ऑस्टियोपोरोसिस के अलावा उन्हें कई और गंभीर बीमारियां थीं।
सरकारी अस्पताल में नौकरी नहीं की
तीन अप्रैल 1926 को उज्जैन के माहिदपुर कस्बे में जन्मीं डॉ.भक्ति यादव ने इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से एमबीबीएस किया था। अपने बैच में वह अकेली लड़की थीं। मध्यप्रदेश की भी वह पहली महिला चिकित्सक थीं। उन्हें उस समय सरकारी अस्पताल में नौकरी के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने गरीबों की सेवा को अपना मकसद बना लिया था। उन्होंने सरकारी अस्पताल में नौकरी नहीं की।
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मोमबत्ती की रोशनी में प्रसव करवाती थी
दादी गरीब परिवारों की मरीजों को वे निःशुल्क दवाएं देती थीं। उनके करीबियों का कहना है कि करीब बीस साल से उन्होंने मरीजों से फीस लेना बंद कर दिया था। उनके पास गुजरात और राजस्थान तक से मरीज आते थे। इतना ही नही दादी क्योकि उस समय बिजली का बहुत अभाव होता था, गांव और बिजली नहीं पहुंच पाती थी उन क्षेत्रों में वे मोमबत्ती की रोशनी में प्रसव करवाती थी। डॉक्टर दादी ने नंदलाल भंडारी मैटरनिटी होम से अपना मेडिकल करियर शुरू किया। कपड़ा मिलों के मजदूरों की पत्नियों के लिए बने इस अस्पताल में उन्होंने कई दशक तक सेवाएं दीं।
मोदी ने भी दुख जताया है
तब वहां बिजली नहीं होती थी। लालटेन और मोमबत्ती के सहारे वह प्रसव करवाती थीं। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख जताया है। डॉक्टर दादी देश की पहली महिला डॉक्टर थीं जिन्होंने 64 साल के मेडिकल करियर में एक लाख से ज्यादा महिलाओं की डिलिवरी करवाई। मरीजों के प्रति इसी समर्पण के चलते उन्हें इसी साल पद्म श्री सम्मान से नवाजा गया था। उन्होंने मजदूरों और गरीबों की सेवा के लिए सरकारी नौकरी तक नहीं की। डॉ. भक्ति यादव का दुनिया से चले जाना दुखद है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं। उनका काम हम सबके लिए एक प्रेरणा है।
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