Diwali 2024: बाजारों में बढ़ी मिट्टी के दिए और बर्तनों की मांग…

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लखनऊ: दीपावली त्योहार के मद्देनजर कुम्हारों में उत्साह व खुशी की लहर है. कहते हैं कि एक जमाना था कि मिट्टी के बर्तनों की बहुत महत्ता थी. गांवों में ही नहीं शहरों में भी मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कुम्हार व उसका परिवार काम में लगा रहता था. वहीं आधुनिकता की चकाचौंध में धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों का चलन कम होता चला गया और चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक सामान का क्रेज बढ़ गया. दीपावली जैसे त्यौहार पर तमाम लोग रोशनी के लिए बिजली की झालरों, मोमबत्तियों पर ही पूरी तरह निर्भर हो गए.

फिर बढ़ने लगी मिटटी के बर्तनों की मांग…

बता दें कि पिछलों कई वर्षों से देखा जा रहा है कि मिट्टी के दीयों व कुल्हड समेत अन्य प्रकार के मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ने लगी है. सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि नवरात्र, दशहरा, करवाचौथ धनतेरस, गोवर्धन पूजा भैया दूज जैसे त्योहारों पर भी मिट्टी के दीये बर्तन अब लोगों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं. कुम्हारी कला में निपुण लोगों का कहना है कि उनकी पीठी दर पीढी इसी काम में लगी रही है परंतु इस कार्य में पिछले कुछ वर्षों में उन लोगों को काफी परेशानियां झेलनी पड़ी है.

हालांकि शासन की मंशा के अनुरूप कुम्हारी कला को बढ़ावा देना तो पहले ही शुरू कर दिया गया है. अब दीपावली के सीजन में मिट्टी को दीये तथा विभिन्न तरह के बर्तनों की मांग एकाएक बढ़ने से गांव-गांव, शहर-शहर बर्तन बनाने के लिए चाक घूमने लगे हैं.

पुरानी परंपराओं की ओर लौट रहे लोग

आधुनिकता के दौर में कहा जा सकता है कि लोग अब धीरे- धीरे पुरानी परंपराओं की ओर लौट रहे हैं. दीप पर्व दीपावली की तैयारियां जोरों से शुरू हो गई है. इन दिनों कुम्हार मिट्टी के दीये व कलश तैयार करने में जुटे हुए हैं. दीपोत्सव में जगमग रोशनी बिखेरने के लिए कुम्हारों द्वारा बढ़ी तादात में दीये, ग्वालिन व कलश आदि बनाये जा रहे हैं. सुबह से लेकर शाम तक मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने का काम चल रहा है. एक और तेजी से घूमते चाक पर हुनरमंद अंगुलियां मिट्टी को मनचाहा आकार देने में लगी रहती है, तो उनकी गृहणी तैयार दीये, बर्तन धूप में रखकर सुखाने का काम कर रही है.

बच्चे सूखकर आग में पक चुके बर्तनों पर रंग चढ़ा रहे हैं. इस तरह से पूरा परिवार मिलकर मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने में एक-दूसरे का सहयोग कर रहा है. लगता है कि मिट्टी के बर्तन बनाने वालों यानि कुम्हारी कला के निपुण लोगों के एक बार फिर अच्छे दिन आ जाएंगे.

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चाइनीज झालरों से होता है काफी नुकसान…

वहीं, कुम्हारों का ये भी कहना है कि झालरों व इलेक्ट्रिक दीए आने से प्रतिवर्ष उन्हें काफी नुकसान हो रहा है. झालरों की रोशनी में मिट्टी के दीपक की रोशनी फीकी पड़ती जा रही है. हम लोग दूसरों के घरों को तो रोशन करते हैं पर हमारा घर व जीवन खुद ही अंधेरे में होता जा रहा है. माटीकला में निपुण इन कुम्हारों व उनके परिवारों ने आम जनमानस से इस बार दिवाली को ये अपेक्षाएं भी की है कि, “बनाकर मिट्टी के दिये जरा सी आस पाली है. मेरी मेहनत को खरीदना मेरे घर भी दीवाली है”

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मतलब साफ है कि ये माटी को अपनी अंगुलियों से मनचाही आकृति देने वाले लोग इस बार दीपावली में हमसे आपसे ये अपेक्षा रखते है कि हम आप इलेक्ट्रिक लाइटों की अपेक्षा मिट्टी की दियालियों व मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग ज्यादा करेंगे. जिससे इनकी बिक्री बढ़ेगी और आय अधिक होने से त्योहार इनके घरों में भी अच्छे से मनाया जा सकेगा. साथ ही आधुनिकता के इस दौर में बाजार में उपलब्ध रेडीमेड इलेक्ट्रिक प्रोडक्टसों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा और लुप्त हो रही माटी कला को संरक्षित भी किया जा सकेगा.

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