लॉकडाउन: ताकि कोरोना से जंग कमजोर न पड़े
कोरोना की टेढ़ी रेखा को सीधी करने, यानी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को थामने के लिए भारतीय नेतृत्व द्वारा लिए जा रहे फैसलों की तारीफ की जानी चाहिए। जब स्थिति कुएं और खाई वाली हो, तब यही सोचकर कदम बढ़ाता जाता है कि सबसे बदतर हालात से किस तरह बचा जाए।
लॉकडाउन की समय-सीमा बढ़ाने से जो बहुमूल्य वक्त हमें मिला है, इसका इस्तेमाल निश्चय ही तैयारी में किया जाएगा। लेकिन तैयारी किसलिए? एक रक्षात्मक युद्ध के लिए या आक्रामक जंग के लिए? रक्षात्मक युद्ध सामाजिक-राजनीतिक उपायों से लड़ा जाएगा, जैसे लॉकडाउन और कमजोर तबकों की देखभाल, जबकि आक्रामक जंग विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जीती जाएगी।
स्वास्थ्य-नीति पर काम करने वाले जाने-माने स्कॉलर हार्वे फाइनबर्ग ने अमेरिका में कोरोना से बढ़ते नुकसान को रोकने के लिए छह प्रमुख उपाय सुझाए हैं। पहला, एक स्पष्ट कमांड सिस्टम की स्थापना। दूसरा, व्यापक रूप से टेस्ट, यानी जांच। तीसरा, स्वास्थ्यकर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा-उपकरण मुहैया कराना और मरीजों की बढ़ती संख्या के अनुरूप अस्पताल तैयार करना। चौथा, यह रिकॉर्ड रखना कि कौन संक्रमित है, कौन संक्रमित हो सकता है, पकड़ में न आ पाने वाला संक्रमित कौन है या कौन अब पूरी तरह से स्वस्थ हो चुका है? पांचवां, आम लोगों को प्रेरित करना और उन्हें एकजुट बनाए रखना। और आखिरी, शोध से सीखते हुए रणनीति में लगातार सुधार करना।
ये छह सिद्धांत कोरोना से जंग लड़ रहे भारत या किसी भी अन्य देश पर समान रूप से लागू होते हैं, मगर हर उपाय से जुड़ी सभी देशों की अपनी-अपनी मुश्किलें हैं। भारत के लिहाज से देखें, तो यहां कमांड सिस्टम भी सक्रिय है और जनता भी सहयोग कर रही है, मगर यहां टेस्ट कम हो रहे हैं। फिर, यहां चौथे उपाय के अनुरूप वर्गों का निर्धारण भी नहीं हुआ है। यहां सुरक्षा उपकरण और अस्पतालों में सामान की आपूर्ति-चेन भी कमजोर है। लिहाजा, छठे उपाय को, जो कि शोध-कार्यों का है, न सिर्फ इन तमाम चुनौतियों से जूझना होगा, बल्कि सार्स-कोव 2 (कोविड-19) के खिलाफ पूरी तरह से आक्रामक जंग भी छेड़नी होगी। जाहिर है, हमें हर कदम पर इनोवेटिव तरीके अपनाने होंगे।
चूंकि चुनौतियां गंभीर हैं, इसलिए इस मुश्किल वक्त में उद्योग और शिक्षा जगत की संयुक्त जवाबी प्रतिक्रिया सराहनीय है। जैसे, व्यापक रूप से जांच के लिए टेस्ट-किट की जरूरत। जब इस किट और इससे जुडे़ सामान की वैश्विक आपूर्ति कम होने लगी, तब भारतीय उद्योग और स्टार्टअप स्वेदशी किट तैयार करने में जुट गए। अपने यहां कम टेस्ट करके संक्रमण की अधिकतम जानकारियां जुटाने की रणनीति भी बनाई जा रही है।
देश के मौजूदा डिजिटल और टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठाते हुए आरोग्य सेतु एप लॉन्च किया गया है, जो जांच का तकनीकी विकल्प है। उच्च गुणवत्ता वाले शोध-कार्यों में पूर्व में किए गए निवेश भी सकारात्मक नतीजे दे रहे हैं। जैसे, क्रिस्पर आधारित पेपर-स्ट्रिप टेस्ट बनाने में मिली सफलता। यह न केवल तुलनात्मक रूप से सस्ती है, बल्कि आने वाले दिनों में पीसीआर मशीनों की जरूरत को भी समाप्त कर देगी। यह कामायबी हमें इसलिए मिली, क्योंकि इससे जुडे़ शोध-कार्यों पर हमने वर्षों से मेहनत की है।
इस मुश्किल वक्त में सार्वजनिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर प्रभावी रणनीति बनाने और अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने में विज्ञान मार्गदर्शन कर सकता है।
बेशक नई तकनीक की बाजार तक पहुंच आसान नहीं होती। क्रिस्पर टेस्ट के लिए भी सामग्रियों का मिलना फिलहाल कठिन है। मगर इन बाधाओं को दूर करने के लिए शिक्षा-उद्योग जगत का मजबूत गठबंधन बखूबी काम कर रहा है। इस बीच, देश भर में कई सीएसआईआर और डीबीटी अनुसंधान प्रयोगशालाएं व्यापक तौर पर आरटी-पीसीआर टेस्ट सुनिश्चत करके स्वास्थ्य-क्षेत्र की लगातार मदद कर रही हैं। नई-नई कंपनियां सस्ती और सरल जांच प्रणाली के साथ सामने आ रही हैं। ये कंपनियां जांच के दायरे को बढ़ाने और स्थानीय व व्यक्तिगत जोखिम को प्रभावी ढंग से निर्धारित करने के काम में भी व्यावहारिक मदद कर रही हैं।
व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई), अस्पतालों के बेड, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर और नई एंटी-वायरल दवाओं की चुनौतियों से पार पाना भी एक बड़ी जरूरत है। इस संदर्भ में सीएसआईआर और डीआरडीओ जैसी संस्थाएं उत्पादों की आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एक-दूसरे की प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल कर रही हैं। जब सीम सीलिंग टेप की अनुपलब्धता से वायरस से बचाव करने वाले सूट के उत्पादन में बाधा आने लगी, तो पनडुब्बी के उपकरणों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सीलंट गोंद का विकल्प अपनाया गया, ताकि वायरस-बचाव सूट का उत्पादन बड़ी मात्रा में हो सके व फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसी तरह, स्वदेशी ऑक्सीजन सांद्रक मशीन सीएसआईआर के सहयोग से तैयार की जा रही है, जो मरीजों का जीवन बचा सकती है।
[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख हिदुस्तान अखबार में प्रकाशित है।)
” style=”style-13″ align=”left” author_name=”अनुराग अग्रवाल ” author_job=”डायरेक्टर, सीएसआईआर-आईजीआईबी” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/Anurag-1.jpg”][/bs-quote]
कोरोना के इलाज में जरूरी जीवन रक्षक दवाओं को प्रमुख फार्मा कंपनियों और सीएसआईआर के सहयोग से तैयार किया जा रहा है। पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों पर भी हम पूरा भरोसा कर रहे हैं, क्योंकि स्थानीय रूप से प्रासंगिक शोध-कार्यों को वैश्विक मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ मिलाकर बेहतर नतीजे हासिल करना बेहतर है।
बचाव-कार्यों और आक्रामक उपायों में से यदि किसी की भी उपेक्षा हुई, तो यह युद्ध जीत पाना मुश्किल होगा। स्वास्थ्य तंत्र बेशक अपनी क्षमता के हिसाब से काम कर रहा है, रिसर्च टीम को उसकी जरूरत के हिसाब से पूरा साथ देना होगा। हमें प्रभावी उपचार और टीके की खोज से भी आंखें नहीं मूंदनी चाहिए, क्योंकि यही इस महामारी का असल समाधान है।
जनता को प्रेरित करने के लिए हमारे पास बेहतर नेतृत्व है। इस मुश्किल वक्त में विज्ञान सार्वजनिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर प्रभावी रणनीति बनाने और अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने में मार्गदर्शन कर सकता है। अगर हम ऐसा कर सके, तो न सिर्फ लाखों भारतीयों के दुखों का अंत कर सकेंगे, बल्कि वैश्विक तौर पर उत्पादों की आपूर्ति में मददगार होने के साथ-साथ एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरकर सामने आएंगे।
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