“धूमिल की कविता में है जनाकांक्षाओं की अभिव्यक्ति”- प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी
वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिन्दी विभाग द्वारा विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी के संरक्षण में धूमिल जयंती पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें धूमिल के रचनाकर्म और कविताओं पर चर्चा परिचर्चा हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा कि धूमिल का दौर दिनकर तथा दुष्यंत जैसे प्रखर और तेजस्वी कवियों का दौर था.धूमिल ने अपनी कविताओं में तत्कालीन व्यवस्था का बड़ी निर्ममता से पोस्टमार्टम किया और जनाकांक्षाओं को व्यक्त किया.
डॉ. अशोक कुमार ज्योति धूमिल पर कही ये बात
धूमिल ने नवगीत और गद्य भी लिखा है. हिंदी कविता के थे एंग्री यंग मैन प्रो. श्रद्धा सिंह ने कहा कि धूमिल कविता को बेकसूर आदमी के हलफनामे के रूप में देखते थे उन्हें हिंदी कविता का एंग्री यंग मैन कहा जाता है.प्रो. श्री प्रकाश शुक्ल ने कहा कि धूमिल की कविताओं में प्रश्नाकुलता और आलोचनात्मक तेवर ही है जो हमारे मानस में आज भी गूंजता रहता है. मुख्य अतिथि प्रो.आर. एन.त्रिपाठी(समाजशास्त्र विभाग) ने कहा कि धूमिल में सत्य कहने की अपार क्षमता थी. डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि व्यक्ति, तंत्र और संसद यही तीन धूमिल की कविताओं के केंद्र में हैं.
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संगोष्ठी में शामिल हुए ये लोग
डॉ. प्रभात कुमार मिश्र ने बताया कि धूमिल और मुक्तिबोध एक दूसरे के पूरक हैं. आज़ाद भारत की वास्तविक स्थिति इन दोनों की कविताएं मिला देने से पता होती है. डॉ. राजकुमार मीणा ने अपने वक्तव्य में कहा कि धूमिल आज भी हमारे बीच प्रासंगिक हैं. डॉ. विंध्याचल यादव ने बताया कि धूमिल ने अपनी कविताओं में तमाम राजनीतिक विसंगतियों पर प्रहार किया था. दिव्या शुक्ला, अक्षत पाण्डेय, राहुल तिवारी, लक्ष्मी सेठी, आयूषी मिश्रा, अवनीष शुक्ल ने भी धूमिल की कविता पाठ किया और अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक ठाकुर ने किया. धन्यवाद ज्ञापन ज्योतिका उड़ाव ने किया. इस अवसर पर विभाग के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं भी उपस्थित रहे.