स्मृति ईरानी, जेटली बन सकते हैं मंत्री तो, धूमल क्यों नहीं?
आशीष बागची
यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि धूमल हिमाचल में जेटली, ईरानी फार्मूले जैसा लाभ नहीं पा सकते क्या? चुनाव में हार से क्या मतलब? जनता नकारे हम तो सिर माथे रखते हैं। दरअसल, हिमाचल में सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल की हार ने बीजेपी को नया चेहरा लाने पर मजबूर किया है, लेकिन रोचक स्थिति गुजरात की है, जहां सीएम विजय रुपाणी का विकल्प तलाशा जा सकता है। यहां स्मृति ईरानी का नाम भी उछाला जा रहा है। गुजरात का कारण भी है। विजय रुपानी जैन समुदाय से आते हैं, जिसकी संख्या गुजरात में एक से दो प्रतिशत ही है। दूसरी बात ये है कि गुजरात का जो सौराष्ट्र इलाका है, यहां भाजपा बुरी तरह पराजित हुई है।
इसलिए माना जा रहा है कि गुजरात के अगले मुख्यमंत्री सौराष्ट्र से हो सकते हैं। और ज्यादा संभावना ये है कि पटेल समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं।
पर सोचने वाली बात तो हिमाचल में अधिक है। यहां सारी तैयारियां हो चुकीं थीं, सिर्फ ताज पहनना था। चुनाव से पहले ही बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी बना दिया था प्रेम कुमार धूमल को। बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक बहुमत भी मिल गया। पर धूमल ही चुनाव हार गए। यही नहीं हिमाचल प्रदेश के बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सत्ती भी ऊना से चुनाव हार गए। अब सबकी इस बात पर नजर है कि वहां अब मुख्यमंत्री कौन होगा? यह तो माना ही जाना चाहिये कि धूमल दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। यदि वह जीतते तो यह तीसरी बार होता जब वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होते। लेकिन मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बावजूद वो खुद चुनाव हार गए।
हालांकि इस झटके के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अब स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा और चार बार के विधायक जयराम ठाकुर के नाम की चर्चा जोरों से चल निकली है। सुनने में आ रहा है कि उन्हें दिल्ली बुला भी लिया गया है और दूसरी तरफ आरएसएस के प्रचारक अजय जामवाल, जो कि मंडी इलाके से ही आते हैं, उनका नाम भी मुख्यमंत्री के संभावितों में लिया जा रहा है।
आपको याद होगा कि कुछ कुछ ऐसा ही वाकया 2008 में कांग्रेस के नेता सी पी जोशी के साथ हुआ था। वो राजस्थान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिल गया। जोशी को मुख्यमंत्री पद का तगड़ा दावेदार माना जा रहा था, लेकिन वो सिर्फ एक वोट से विधानसभा चुनाव हार गए। इस तरह मौका उनके हाथ से फिसलकर अशोक गहलोत के पास चला गया।
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हकीकत यह है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की जीत के बाद अब दोनों प्रदेशों में मुख्यमंत्री को लेकर सस्पेंस पैदा हो गया है। चुनाव से पहले माना जा रहा था कि जीतने के बाद रुपाणी ही प्रदेश के मुखिया बनेंगे, लेकिन नतीजे आने से पहले ही सीएम पद को लेकर उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के बयान से यह संकेत मिला कि अपने सबसे मजबूत गढ़ में पार्टी इस बार नया चेहरा लाकर सरप्राइज दे सकती है।
हालांकि जानकारों का मानना है कि हो सकता है बीजेपी धूमल को मुख्यमंत्री मनोनीत कर दे। उनके पास छह महीने में विधायक बनने का मौका रहेगा। देखना दिलचस्प होगा कि अगर बीजेपी वाकई धूमल के साथ है तो वो उन्हें अभी भी मुख्यमंत्री बना सकती है।
बताया जा रहा कि हिमाचल में अगले दो दिन में बीजेपी की विधायक दल की बैठक होने वाली है। पार्टी आलाकमान ने तीन वरिष्ठ नेताओं जयराम ठाकुर, डॉ. राजीब बिंदल और विपिन परमार को दिल्ली बुलाया है। सोमवार देर शाम संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद बीजेपी ने घोषणा की है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर हिमाचल का दौरा करेंगे और वहां नेताओं की राय जानने की कोशिश करेंगे। उसके बाद सीएम के नाम की घोषणा होगी।ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही रह जाता है कि गुजरात और हिमाचल में कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
(डिस्कलेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। Journalistcafe.com का मकसद किसी की निंदा करना या किसी की छवि धूमिल करना नहीं है, बल्कि समाज को जागरूक करना है।)