देवशयनी एकादशी आज, जानें व्रत और पूजन की सम्पूर्ण विधि…
देवशयनी एकादशी आज मनाई जा रही है, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसके एकादशी के अगले चार महीने तक श्रीहरि विष्णु योग निद्रा में रहते हैं. इसलिए अगले चार महीने तक कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होगा. इस चार महीने की अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है. तपस्वियों का भ्रमण भी इस एकादशी से बंद हो जाता है. इन दिनों ब्रज की यात्रा भी नहीं की जा सकती है, आइए आपको देवशयनी एकादशी पर श्रीहरि की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पारण का समय बताते हैं.
क्यों सो जाते है भगवान विष्णु ?
हरि और देव का अर्थ होता है तेज तत्व. इस समय के दौरान प्रकृति, सूर्य और चंद्रमा का तेज कम होता जाता है. इसलिए कहते हैं कि देव शयन हो गया है, यानी देव सो गए हैं. तेज तत्वों या शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों का कोई लाभ नहीं होता है, कार्य में भी बाधा आने की संभावना है. यही वजह है कि, इस समय में मंगल काम पर रोक होती है, देव सोने के बाद कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है.
देवशयनी एकादशी की पूजा कैसे करें?
देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें, उन्हें पीली वस्तुएं, खासकर पीला कपड़ा अर्पित करें और श्रीहरि को धूप, दीप, फूल और फल अर्पित करें. फिर भगवान के विशेष मंत्र का जाप करें और फिर आरती करें. आरती के समाप्त होने पर (‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।) मंत्र से भगवान विष्णु की प्रार्थना करें और उनसे सुख-समृद्धि बरकरार रखने की विनती करें.
पारण का शुभ मुहूर्त
द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले देवशयनी एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए. हिंदू पंचांग के अनुसार, 18 जुलाई को देवशयनी एकादशी का पारण सुबह 5 बजकर 35 मिनट से लेकर 8 बजकर 20 मिनट तक किया जाएगा.
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देवशयनी एकादशी के पश्चात न करें ये काम….
– देवशयनी एकादशी के बाद चातुर्मास में शुद्ध भोजन करें .
– इस समय प्याज, लहसुन, मछली, मांस और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए.
– चातुर्मास के चार महीनों के दौरान जातक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, अगर नहीं तो तामसिक प्रवृत्तियां लोगों को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश करती हैं.