वायु प्रदूषण के प्रकोप को नहीं रोक पा रहे हैं केजरीवाल, आखिर क्यों ?
लॉकडाउन के उन दिनों में हमें पर्यावरण के संदर्भ में कई तरह की “good news” सुनने को मिली थी। तस्वीरें बयां कर रही थी कि वाकई पर्यावरण में सुधार आया है। उन्हीं कुछ तस्वीरों से हम आपको रूबरू कराते हैं। तस्वीरें न सिर्फ भारत की थी बल्कि पूरी दुनिया से एनवायरनमेंट को लेकर “good news” आई थी।
लेकिन अब क्या हुआ ?-
अनलॉक के चौथे चरण में ही हमें फिर से दिल्ली की भयावह तस्वीर का सामना करना पड़ रहा है। लगातार दिल्ली की एयर क्वालिटी बद से बदत्तर होने लगी है। सीजन की शुरुआत में दिल्ली में वायु प्रदुषण का 200 AQI था, जो सोमवार की सुबह बढ़ के 400 AQI पहुंच गया था। आंकड़ों से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वायु प्रदूषण का क्या आलम है दिल्ली में।
कौन है ज़िम्मेदार ?-
सर्दी की शुरुआत से ही दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर को लेकर चिंता गहराई रहती है और बहुत ही आसानी से इस दुविधा के ज़िम्मेदार पंजाब और हरियाणा के किसानों को ठहरा दिया जाता है। लेकिन आंकड़े ये बताते हैं कि इस संकट के एकमात्र ज़िम्मेदार सिर्फ किसान नहीं हैं बल्कि इसमें कई अलग-अलग केंद्र बिंदु भी हैं।
‘सफ़र’ के एक सर्वे के हिसाब से दिल्ली में वायु प्रदूषण के पाई चार्ट में किसानों द्वारा जलाई गई पराली सिर्फ 16 प्रतिशत अकाउंट होती है यानि इसका मतलब ये है कि बाकी के 84 प्रतिशत कहीं और से आते हैं। दिल्ली में PM 2.5 प्रदूषकों में से एग्जॉस्ट और गाड़ियों एवं इंडस्ट्रीज से हो रहे एमिशन 18 से 40 प्रतिशत के बीच रहे और वहीं PM 10 प्रदूषकों में से डस्ट, जोकि रोड से निकलती है वो 36 से 66 प्रतिशत का योगदान करती है।
क्या हो सकता है नया कानून
वायु प्रदूषण के नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार भी कड़ी मेहनत कर रही है। 10,000 इलेक्ट्रिक बसों के साथ “गाड़ी ऑफ” वाली अपील के साथ इस बार फिर दिल्ली सरकार एक नया कानून लाने का मन बना रही है।
नए कानून को लेकर मार्केट में काफी सुगबुगाहट चल रही है लेकिन समझना ये होगा कि आखिर नए कानून का दायरा क्या होगा ? इस कानून का स्वरुप कैसा होगा ? कितने नए तरह के प्रावधान इसमें आ पाएंगे ? ये सारे सवाल अभी तक वेटिंग रूम में ही हैं।
कई सारे एक्ट्स और सेक्शन डालने के बाद कोई भी कानून बहुत ठोस दिखने लगता है। साथ ही यह सियासी दांव-पेंच का शिकार भी बन जाता है। लेकिन मुख्य रूप से अगर वायु प्रदूषण को ख़त्म या कम करने की बात करें तो कई कानून हो सकते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो सिर्फ कागज़ी रह जाते हैं। वहीं कुछ ऐसे हैं जो विरोध और सियासी हवा के शिकार बन जाते है और देखते ही देखते वो सारे कानून उसी मैली हवा में मिल जाते हैं।
अंतत: सवाल इस बात का है कि आखिर क्यों तमाम कानूनों और प्रावधानों के बावजूद हम अपने शहरों को वायु प्रदूषण से नहीं बचा पाते हैं? और इतना ही नहीं बल्कि हर मौसम में सरकार नए कानूनों के ढकोसले भी दे देती है। अब ये हमें और आप को सोचना है कि आखिर कब तक इन ढकोसलों और झूठे वादों का सहारा लिए हम एक भयावह परेशानी को नज़रंदाज़ कर सकते हैं।
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