खम ठोक कर सियासी अखाडे में विरोधियों को दी पटखनी
मुलायम को धरतीपुत्र का मिला था खिताब, प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक रहे सूरमा
लखनऊ: पहलवानी का अखाड़ा हो या राजनीति का अखाड़ा हमेशा अपने चरखा दांव के लिए मशहूर समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को पहलवान का दर्जा मिला हुआ है. एक ऐसा पहलवान जिसने ख़म ठोककर राजनीति की और सियासी अखाड़े में अपने विरोधियों को चित कर दिया. एक ऐसा पहलवान जिसने अपने विरोधियों को ऐसी पटखनी दी की सियासत के सूरमा दोबारा उसके सामने कभी खड़े हो पाने की स्थिति में नहीं आ पाए. जी, हां हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव की. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां समाजवादी पार्टी से पहले कांग्रेस ने काफी लंबे समय तक सत्ता में शासन किया है, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने मंडल कमीशन की राजनीति से उपजे सामाजिक समीकरण के ताने-बाने को ऐसा साधा की तीन दशक तक पार्टी यूपी की राजनीति में अपनी जगह तलाशने में असफल रही. मुलायम सिंह यादव ने समीकरण को मजबूत कर यूपी की राजनीति को एक अलग आकार दिया. इतना ही नहीं वर्ष 1990 में अयोध्या के राम मंदिर में कार्य सेवकों पर गोली चलवाकर वह चर्चा में आए. वहीं आज धरतीपुत्र कहे जाने वाली मुलायम सिंह की जयंती है।
राजनीति को दो भागों में बांटा
अयोध्या में कारसेवकों पर गोली कांड के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति दो भागों में बट गई. राजनीति के दो फाट हो जाने से एक फाट मुलायम सिंह यादव के साथ जुड़ा तो वहीँ दूसरा उनका विरोधी हो गया. मुलायम का विरोधी खेमा बार-बार बदलता रहा और जो वर्ग हमेशा मुलायम के साथ जुड़ा रहा उनको लाभ मिला. मुलायम का जो विरोधी दल था वह कभी उत्तर प्रदेश में मायावती के साथ जुड़ा, तो कभी बीजेपी के साथ तो, कभी कांग्रेस के साथ. इसके बावजूद सभी परिस्थितियों में मुलायम सिंह हमेशा प्रासंगिक बने रहे. यही उत्तर प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा कारण है कि मुलायम के विरोधी राजनीति के बावजूद भी अंतिम समय तक उनके खिलाफ बयान देने से बचते रहे. यही कारण है कि पहलवानी के अखाड़े से लेकर राजनीति के मैदान तक उनको हमेशा पहलवान ही माना गया और उन्हें राजनीति का पहलवान ऐसा ही नहीं कहा गया उनके पीछे कुछ महत्वपूर्ण बातें और उनके कार्य भी हैं…
कई दशक तक चर्चा के केंद्र में रहे मुलायम
आपको बता दें कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से आने वाले मुलायम सिंह करीब पांच दशक तक राजनीति की चर्चा के केंद्र में बने रहे. वह तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चौथी बार समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत में आए तो उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश यादव को सीएम बना कर केंद्र की राजनीति में खुद को सीमित कर लिया. मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस विरोधी राजनीति सोच के साथ सियासी अखाड़े में कदम रखा और राम मनोहर लोहिया के सानिध्य में उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और फिर चरण सिंह ने उन्हें 1986 में बुलंदी तक पहुंचाया.
1939 में हुआ था जन्म…
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई गांव में हुआ था. मुलायम के पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मारुति देवी था, उनके पिता किसान थे। कहा जाता है कि मुलायम सिंह को बचपन से ही पहलवानी करने का शौक था. उन्होंने कुश्ती के कई दांव -पेंच सीखे. उनमें से चरखा दांव की चर्चा तो सियासी महक में तक में होती रही है. मुलायम के चरखा दांव में जो भी पहलवान फंसा वह कभी पार नहीं पा सका. कुछ यही हाल उन्होंने राजनीति के सियासी विरोधियों का भी किया की जो भी उनके दांव में फंसा कभी भी उनके सामने नहीं खड़ा हो पाया. वह देश के रक्षामंत्री तो बने लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बन सके.
15 साल की उम्र में गए जेल…
आपको बता दें कि महज 15 साल की आयु में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार जेल यात्रा की थी. उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे. इसके साथ ही देश में समाजवाद का आंदोलन शुरू हो गया. डॉ राम मनोहर लोहिया अगुवाई कर रहे थे. मुलायम सिंह यादव को भी यह भाने लगा. कांग्रेस विरोध के आंदोलन में भी शामिल होने लगे और देश की राजनीति के साथ-साथ 1954 में यूपी में इस आंदोलन का असर दिखा. जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे इसके बाद सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए नेताओं को जेल में डालना शुरू किया था. उनमें मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। उस समय मुलायम सिंह की उम्र महज 15 वर्ष की थी.
नत्थू सिंह बने मुलायम के राजनीति गुरु…
मुलायम सिंह ने शुरुआत से ही एक अच्छे नेता की क्वालिटी दिख रही थी. जिसे स्थानीय नेता नत्थू सिंह ने पहचाना. मुलायम की राजनीति यात्रा में नाथू सिंह ने सहयोग दिया. नाथू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी परंपरागत सीट जसवंत नगर छोडी. मुलायम को टिकट दिलाने के लिए नाथू सिंह डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के यहां पहुंच गए. डॉ लोहिया ने मुलायम का टिकट फाइनल कर दिया. इसके बाद राजनीति के मैदान में उतरे मुलायम सिंह ने अपने पहले ही गांव में कांग्रेसी दिग्गज को पटखनी दे दी और इसी के साथ 28 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव यूपी विधानसभा के सबसे युवा विधायक चुने गए.
1989 में पहली बार बने थे सीएम
1989 में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली. उस समय मुलायम की सरकार ज्यादा चल नहीं पाई और 1991 में गिर गई. इसके बाद मुलायम सिंह ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन किया. 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने काशीराम और मायावती के पार्टी बसपा से हाथ मिलाया. मुलायम एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
दिसंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव ने फिर एक बार सीएम पद की शपथ ली. इस बार भी उनकी सरकार नहीं चल सकी बसपा ने समर्थन वापस ले लिया. उत्तर प्रदेश में सबसे बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम और मायावती के बीच दूरी बढ़ गई. दरअसल मुलायम सरकार की सहयोगी बसपा ने समर्थन वापसी के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी. मीटिंग शुरू होते ही बसपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया जिसके बाद मुलायम की सरकार गिर गई और मायावती बीजेपी के समर्थन से सीएम बन गई.
कार सेवकों पर दिया गोली चलाने का आदेश
देश की राजनीति को बदलने में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद ने बड़ी भूमिका निभाई. 30 अक्टूबर 1990 को राम भक्तों ने अयोध्या में कार सेवा की घोषणा की थी. उस दौरान हजारों की संख्या में कार सेवक बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे कि तभी मुलायम सिंह यादव ने एक ऐसा फैसला लिया जिसे प्रदेश के साथ-साथ देश की राजनीति की दिशा और दशा ही बदल दी. मुलायम सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस आदेश के बाद अयोध्या की सड़क राम भक्त कर सेवकों के खून से लाल हो गई. इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव की छवि एक हिंदू विरोधी नेता के तौर पर बन गई. हिंदूवादी संगठनों ने इस घटना के बाद मुलायम सिंह को एक नया नाम दे दिया और उन्हें मुल्ला मुलायम कहना शुरू किया.
इसी के बाद कांग्रेस का परंपरागत मुस्लिम वोट मुलायम के साथ जुड़ गया. यादव समाज पहले से ही उनके साथ खड़ा था. ऐसे में प्रदेश की राजनीति में उन्होंने नये समीकरण को स्थापित कर दिया. इस घटना के बाद मुलायम सिंह की सरकार फिर चली गई लेकिन बाबरी विध्वंस के 1 साल बाद भी फिर से सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए.
गेस्ट हाउस कांड के बाद बदली स्थिति…
प्रदेश में 1992 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद एक बार फिर से राजनीति स्थिति बदल गई और वह सियासत के सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरे. 1996 में मैनपुरी से पहली बार वह चुनकर लोकसभा पहुंचे. केंद्र में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर मुलायम सिंह यादव ने किंग मेकर की भूमिका निभाई. थर्ड फ्रंट की सरकार में वह रक्षा मंत्री बनाए गए. हालांकि यह सरकार 98 में गिर गई. मुलायम ने 29 अगस्त 2003 को तीसरी और आखरी बार सीएम पद की शपथ ली. वह वर्ष 2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार के मददगार के तौर पर उनकी भूमिका दिखी.