गिरता वोटिंग पर्सेंटेज विफलताओं का सोलह आना सच !
आज यूपी में निकाय चुनावों की मतगणना हो और जैसा कि चुनावी सर्वे में भी आया था जीत का परचम भाजपा का ही लहराया। लेकिन, अगर निकाय चुनावों में हुई वोटिंग के आंकड़ों की बात करें तो गिरता वोटिंग पर्सेंटेंज जनता की बेरूखी को दर्शाता है। अब ऐसे में सरकार का मतदाता जागरूकता के नाम पर करोड़ों खर्च करना पैसे की बर्बादी ही साबित हुआ। यूं भी कहा जा सकता है कि अब जनता को चुनाव की चासनी में भीगे प्रत्याशियों पर भिनभिनाना पसंद ही नहीं आता। इसकी भी एक वजह है… लोगों की धारणा रही है कि महापौर या फिर पार्षद उनके दैनिक जीवन की जन सुविधाओं और मूलभूत समस्याओं के लिए निर्णायक फैसले नहीं ले सकता।
यूपी के सबसे बड़े लड़ैया सपा, बसपा ढेर
यूपी के निकाय चुनाव की जब बात होती है तो बीएसपी और सपा चुनावी मैदान के सबसे बड़े लड़ैया के तौर पर देखे जाते हैं। लेकिन, इस बार के जो परिणाम सामने आएं हैं उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के युवराज की आंखें बड़ी कर दी हैं।
लगातार गिर रहा वोटिंग पर्सेंटेज इस बात की तस्दीक कर रहा है कि राजनीतिक पार्टियों का वायदों पर खरा न उतरना ही मतदाताओं की उदासीनता की बड़ी वजह है। नियमों के मुताबिक, किसी भी बड़े प्रोजेक्ट के लिए शासन से अलग से बजट नहीं मिलता। ऐसे में उसे चुनने से क्या फायदा। जलभराव हो, पीने के पानी की समस्या हो, सफाई या फिर कूड़े के निस्तारण की समस्या निरंतर बरकरार रहना वोटर्स को घरों में ही रहने पर मजबूर कर रहा है।
17 सालों में गिरता रहा वोटिंग प्रतिशत
साल 2000 में हुए निकाय चुनाव के दौरान 57.09 फीसद मतदान हुआ था। लेकिन, इसके बाद से ही पार्षदों की अपने क्षेत्र में लोगों की सुविधाओं और समस्याओं के निवारण में फैली उदासीनता ने जनता की आशाओं पर पानी फेरने का काम किया। यही वजह है कि 2006 के निकाय चुनाव में 51.54 प्रतिशत वोटिंग हुई और फिर साल 2012 के चुनावों में यह प्रतिशत गिरकर 43 फीसद हो गया। वहीं, ताजा 2017 के निकाय चुनावों में भी कोई खास बढ़ोतरी नहीं देखने को मिली। इस साल 49.5 फीसद ही वोटिंग हुई है।
वोटर्स बढ़े लेकिन पर्सेंटेज नहीं
अगर पिछले 17 सालों में वोटरों की संख्या के आकंड़ों का जिक्र करें तो इसमें करीब 1 लाख 96 हजार 277 का इजाफा हुआ है, लेकिन वोटिंग प्रतिशत बढ़ने की जगह गिरता ही जा रहा है। हालांकि, इस बार निकाय चुनाव में वर्ष 2012 के मुकाबले वोटिंग प्रतिशत छह फीसदी बढ़ा है।
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लेकिन, साल 2000 से अब तक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाने से यह बढ़ा हुआ वोटिंग पर्सेंटेंज बौना ही साबित हुआ है। साल 2000 के मेयर और पार्षद पद के चुनाव में कुल 4 लाख 15 हजार 960 मतदाताओं में से 2 लाख 37 हजार 480 वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। यह कुल वोटरों का 57.09 फीसदी बैठता है।
वहीं, साल 2006 में 4 लाख 82 हजार 584 में से 2 लाख 48 हजार 755 मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। जो कुल वोटरों का 51.54 फीसदी बैठता है। जबकि साल 2012 में कुल 5 लाख 46 हजार 938 वोटरों में से 2 लाख 29 हजार 956 वोटरों ने मतदान किया। जो कुल वोटरों का 43 फीसदी बैठता है।
2017 में पिछले वर्ष की तुलना में करीब 65299 वोटर बढ़ गए और 6 लाख 12 हजार 237 मतदाताओं में से मात्र 3 लाख 02 हजार 946 वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जो कुल मतदाताओं का करीब 49.5 फीसदी बैठता है।