वीरेंद्र सिंह : कर्जमाफी, किसानों की समस्या का स्थाई समाधान नहीं
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की किसान इकाई के प्रमुख वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि कर्जमाफी किसानों की समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। उनका कहना है कि किसानों की उपज का उचित मूल्य ही इस समस्या को कम कर सकता है।
वह यह भी मानते हैं कि एम.एस.स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें व्यवहार्य नहीं हैं, क्योंकि उपज की लागत निर्धारित करने वाली सरकारी संस्था इसमें असफल रही है।
मस्त ने मीडिया के साथ विशेष बातचतीत में कहा, “कर्जमाफी स्थाई समाधान नहीं है, बल्कि इससे सिर्फ छोटी अवधि में राहत मिलेगी। केंद्र सरकार कर्जमाफी की स्थिति में नहीं है।” वह मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसानों की कर्जमाफी की मांग के सवाल का जवाब दे रहे थे।
उत्तर प्रदेश से तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए मस्त ने कहा कि किसानों और उनकी आय को प्रभावित करने वाले कारकों में पारिवारिक विवाद प्रमुख कारणों में से एक है।
उन्होंने कहा, “उनकी समस्याओं का राजनीतिक ढंग से समाधान किया जाना चाहिए और जब तक किसानों को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त नहीं किया जाता, यह समस्या बरकरार रहेगी।”
देश के कई हिस्सों में किसान आंदोलनों के बीच मस्त ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि किसानों के जीवन को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारण यह है कि उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य कैसे मिले। उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त कैसे किया जाएगा।”
मस्त ने कहा, “एक किसान के नाते मैंने पाया है कि परिवारों में विवाद किसानों की समस्या का एक प्रमुख कारण है। जब परिवार विभाजित होता है, तो जमीन का भी बंटवारा होता है, जिस वजह से खेती की लागत बढ़ती है, जिससे उपज प्रभावित होती है। निस्संदेह यह सामाजिक समस्या है, लेकिन हमें इसके लिए राजनीतिक समाधान खोज निकालने की जरूरत है।”
मस्त ने कहा कि किसानों की आय एक-दो दिन में दोगुनी नहीं हो सकती, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा, “हमारा ध्यान सिंचाई की स्थिति सुधारकर, कम दर पर बिजली मुहैया कराकर और सड़कों को जोड़कर खेती की लागत कम करने पर है।”
उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें तभी लागू की जा सकती हैं, जब कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) सही तरीके से आगत लागत निधारित करे, जिसमें वह असफल रहा है।
मस्त ने विभिन्न भौगोलिक स्थितियों के आधार पर आगत लागत का हवाला देते हुए कहा कि सीएसीपी इसका जायजा लेने में असफल रही है। उन्होंने कहा, “तटीय क्षेत्रों में कृषि लागत गैरतटीय क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है।”
एम.एस.स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने कृषि पर आने वाले कुल खर्च पर अतिरिक्त 50 फीसदी सहित न्यूनतम समर्थन मूल्य का सुझाव दिया है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस गोलीबारी में छह किसानों की मौत के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा कि आंदोलन, विरोध और असहमतियां आदर्श लोकतंत्र का हिस्सा हैं, लेकिन इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है।
मस्त ने कहा, “मैं किसानों पर गोलीबारी का समर्थन नहीं करता। आंदोलन के समय गोलीबारी नहीं की जानी चाहिए और जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें दंडित करने की जरूरत है। इसकी भी जांच कराने की जरूरत है कि किन परिस्थितियों में पुलिस ने किसानों पर गोलीबारी की। जब किसी आंदोलन के दौरान हिंसा होती है तो उसमें लोग मरते हैं।”
उन्होंने आंदोलन कर रहे किसान समुदाय से अपनी नकारात्मक छवि बनाने से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “जो लोग कृषि संकट का समाधान चाहते हैं, उन्हें सुझाव देने चाहिए।”
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मस्त ने यह भी कहा कि कृषि संकट और किसानों की समस्याएं इस देश के लिए नई नहीं हैं और यह सच नहीं है कि 2014 में भाजपा के केंद्र में आने के बाद यह समस्या उत्पन्न हुई है।
मस्त ने कहा, “वास्तव में, जिन लोगों ने आजादी के बाद देश पर शासन किया, उन्होंने इन समस्याओं के समाधान के लिए कुछ नहीं किया। नरेंद्र मोदी इस देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो किसानों की परवाह करते हैं। इस तरह की समस्याएं सिर्फ सरकार पर आश्रित रहकर सुलझाई नहीं जा सकतीं। सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए।”
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