Dastan-e-Uttar Pradesh: स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तर प्रदेश ने निभायी थी महत्वपूर्ण भूमिका
Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया, लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं.
यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कि कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के आठवें पन्ने के साथ आपको उस समय के उत्तर प्रदेश की कथा बताने जा रहा हूं जब हमारे देश और प्रदेश दोनों ही अंग्रेजी शासन से मुक्त होकर आजादी की हवा में सांस लेने लगा था, वो देशवासियों के लिए खुशी और हर्ष का काल था जब हमें हमारे ही देश में अपने हिसाब और आजादी से रहने का अधिकार मिला था तो, आइए सुनते है स्वतंत्रता के पश्चात का काल की कथा…
आजादी की लड़ाई में इन नेताओं ने निभाई भूमिका
1947 में संयुक्त प्रान्त नव निर्मित स्वतंत्र भारतीय गणराज्य की सरकारी शाखा बन गया था. दो साल बाद संयुक्त राज्य में टिहरी गढ़वाल और रामपुर के स्वतंत्र राज्यों को शामिल किया गया. 1950 में नया संविधान लागू होने के साथ इस संयुक्त राज्य का नाम 24 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना गया. इस राज्य ने स्वतंत्रता के बाद से भारत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
इसने देश को कई प्रधानमंत्री जैसे जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव और भारतीय जनसंघ बाद में भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को दिया है. हालाँकि, राज्य की राजनीति विभाजित रही है और कम ही मुख्यमंत्री ने पाँच वर्ष की अवधि पूरी की है. इस राज्य का पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत थेे. 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं थी.
यूपी की राजनीति में बना रहा उतार-चढ़ाव
देश में संविधान लागू होने के बाद से देश और प्रदेश में राज्य स्तर पर उतार-चढाव की स्थित रही है, वही 1990 के दशक की शुरूआत से राज्य सरकार का नियंत्रण अक्सर भाजपा और सपा के साथ – साथ बहुजन समाज पार्टी के हाथों में स्थानांतरित होती रही है, जो अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते रहे है और अन्य वंचित लोग कई सारे मौकों पर यूपी के कुछ समय के लिए राष्ट्रीय सरकार के सीधे नियंत्रण में रहा है, जैसे कि, 1992-93 में अयोध्या में 16वीं शताब्दी की मस्जिद, बाबरी मस्जिद को हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा नष्ट किए जाने के बाद हुए घातक दंगों हुए.
Also Read : Dastan-e-Uttar Pradesh: वो साल जब भारतीयों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ शुरू किया विद्रोह
1990 में अलग राज्य की उठी थी मांग
उत्तर प्रदेश की स्थापना के तुरंत बाद राज्य के हिमालयी भागों में अशांति फैल गई. वहां के लोगों ने महसूस किया कि दूर लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उनके हितों की सुरक्षा करना असंभव हो गया है, क्योंकि राज्य की बड़ी जनसंख्या और भौतिक संसाधनों के कारण ऐसा हुआ है.
उनके असंतोष को अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, व्यापक बेरोजगारी और गरीबी ने बढ़ा दिया. 1990 के दशक में उनकी अलग राज्य की मांग बढ़ी, 2 अक्टूबर 1994 को मुज़फ्फरनगर में एक हिंसक घटना से आंदोलन तेज हो गया. जिसमें पुलिस ने राज्य समर्थक प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें कई लोग मारे गये. आखिरकार, नवंबर 2000 में उत्तरांचल को एक नया राज्य (बदला हुआ नाम दिया गया, 2007 में उत्तराखंड) उत्तर प्रदेश का उत्तर-पश्चिमी हिस्सा भाग से अलग होकर बनाया गया था.