वाराणसीः काशी कई सदियों से हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल रहा है. यह शहर अपनी पारम्परिक कला, मंदिर और पर्यटक स्थलों के लिए देश समेत पूरी दुनियां में काफी प्रसिद्ध है. ऐसा ही पर्यटक स्थल गंगा नदी के किनारे घाटों की श्रृंखला में एक है दशाश्वमेध घाट. दशाश्वमेध घाट बनारस के सबसे प्राचीन, शानदार घाटों में से एक है.
नाम का अर्थ –
दशाश्वमेध संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है-
दश का अर्थ है दस अश्व – घोड़ा
मेध – बलिदान अर्थात् दस घोड़ों का बलिदान.
यज्ञ में अश्वों की बलि –
दशाश्वमेध घाट का इतिहास बहुत पुराना है, इसका निर्माण कई सदियों पूर्व किया गया था. यह घाट पुराने विश्वनाथ मंदिर के पास गंगा नदी पर स्थित है.
दशाश्वमेध घाट को लेकर दो अलग अलग किंवदंतियां प्रचलित है.
पहली यह कि भगवान ब्रह्मा ने शिव जी के स्वागत के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था. उस यज्ञ के दौरान यहां दस घोड़ों की बलि दी गई थी. दस घोड़ों की बलि देने के कारण इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा.
और दूसरी यह है कि राजा वीर सिंह ने इस जगह पर 10 बार अश्वमेध यज्ञ कराया था जिसकी वजह से भी इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा.
धार्मिक महत्व –
दशाश्वमेध घाट का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है. यह घाट हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. यहां गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा को शुद्धि मिलती है.
इस घाट की आरती है बेहद खास-
दशाश्वमेध घाट की असली खूबसूरती यहां की गंगा आरती है, जिसका आयोजन हर शाम 45 मिनट के लिए होता है. यह गंगा मां को समर्पित होती है जो देखने में बहुत आकर्षक और भावपूर्ण होती है. गंगा आरती देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. पर्यटक स्थल होने के नाते देश के अलावा विभिन्न देशों से आए विदेशियों का भी जमावड़ा लगा रहता है. सालों से यह घाट तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए जाना जाता है. घाट के पास कई धार्मिक स्थल और आकर्षक पर्यटक स्थल हैं जो काशी की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं.
घाट के कुछ दूर पर महाश्मशान यानी मणिकर्णिका घाट है जो हमें हर रोज जीवन के सत्य से परिचय कराता है. इस घाट पर कुछ समय बिताने से मानो इंसान नकारात्मक विचारों को त्यागकर आध्यात्मिक व सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है. घाट से सूर्योदय व सूर्यास्त का दृश्य अत्यन्त मनमोहक लगता है.
written by – Sakshi shukla