विश्व कप 1983 में भारत की जीत ने बदल दिए थे क्रिकेट के तेवर

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36 बरस पहले भारत को पहली बार विश्व क्रिकेट का सिरमौर बनाने वाली कपिल देव की टीम को आज भी ‘क्रिकेट के मक्का’ पर मिली उस ऐतिहासिक जीत का मंजर याद है जब लाडर्स की बालकनी पर खड़े होकर उन्होंने विश्व क्रिकेट के शिखर पर दस्तक दी थी।

25 जून 1983 को शनिवार था और पूरा देश मानों थम गया था जब दो बार की चैपिंयन रही वेस्टइंडीज को हराकर भारत ने पहली बार विश्व कप जीता था।

उसके बाद से 36 साल बीत गए लेकिन क्रिकेटप्रेमियों को आज भी याद है कप हाथ में थामे कपिल के चेहरे पर खिली मुस्कान। हर चार साल में विश्व कप के दौरान टीवी पर बारंबार वह नजारा आंखों के सामने आ जाता है।

उसके बाद भारत को 28 बरस इंतजार करना पड़ा जब अप्रैल में वानखेड़े स्टेडियम पर दोबारा विश्व कप उसकी झोली में आया। युवराज सिंह और हरभजन सिंह की आंखों से गिरते आंसू, विराट कोहली के कंधे पर सचिन तेंदुलकर और पूरे देश में मानों दीवाली सा जश्न।

सुनील गावस्कर, कपिल देव और क्रिस श्रीकांत की पीढ़ी के जुनून को सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी और वीरेंद्र सहवाग जैसे सितारों ने आगे बढ़ाया।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय क्रिकेट आज जिस मुकाम पर है उसका श्रेय 1983 की टीम को जाता है।

कपिल ने हाल ही में एक वेब शो पर कहा कि उन्हें बहुत सी बातें याद नहीं है। अपने करियर में अनगिनत उपलब्धियां हासिल कर चुके दिग्गज के लिये यह स्वाभाविक भी है और उम्र का तकाजा भी।

मदन लाल को हालांकि अभी भी सब कुछ याद है। उन्होंने कहा, ‘मैं अपने कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि कैसे भूल सकता हूं। मुझे बहुत कुछ याद है। कपिल की वो पारी, वेस्टइंडीज को हराना, कीर्ति आजाद का इयान बाथम को आउट करना और आस्ट्रेलिया को हराना।’

श्रीकांत ने एक कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें यकीन था कि भारत सेमीफाइनल में नहीं पहुंचेगा तो वह अमेरिका में हनीमून के लिये जाना चाहते थे।

उन्होंने कहा था, ‘मैं 23 बरस का था और नयी नयी शादी हुई थी । मेरी पत्नी 18 बरस की थी और दो महीने पहले ही शादी हुई थी। हम अमेरिका जाना चाहते थे। हमने लंदन से न्यूयार्क की टिकट भी 10000 रूपये की करा ली थी।’

2011 विश्व कप जीतने वाली टीम के हर सदस्य को बीसीसीआई ने दो करोड़ रूपये दिये लेकिन 1983 विश्व कप विजेता उतने खुशकिस्मत नहीं थे।

उन्होंने कहा, ‘लता मंगेशकर ने नेशनल स्टेडियम में हमारे लिये कन्सर्ट किया था। उससे हुई कमाई में से हम सभी को एक एक लाख रूपये दिया गया। मेरे पास अपना घर भी नहीं था , कार तो भूल ही जाइये। भारत के लिये नौ साल खेलने के समय तक मेरे पास एक मोटरबाइक थी।’ लेकिन 1983 की जीत ने उन्हें वह पहचान दी जिसे वह बाद में भुना सके।

पूर्व मुख्य कोच और चयनकर्ता मदन लाल ने कहा, ‘मैं आज राष्ट्रीय चैनल पर विशेषज्ञ के तौर पर जाता हूं। हमारी सफलता काफी अहम थी और अगली नस्ल को इसका फायदा मिला जिससे मैं खुश हूं।’

यशपाल शर्मा ने कहा, ‘मैल्कम मार्शल के साथ तो मेरी एक डील थी। वो आते ही मुझे एक बाउंसर देता था।’

सुनील वाल्सन तो क्विज का एक सवाल ही बन गए थे कि वह कौन सा खिलाड़ी था जिसने 1983 विश्व कप में एक भी मैच नहीं खेला।

उन्होंने कहा, ‘कपिल, मदन और रोजर इतनी अच्छी गेंदबाजी कर रहे थे कि मौका मिलना मुश्किल था। मुझे बाहर बैठना पड़ा लेकिन इसका कोई खेद नहीं।’

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