फिर गहराया हिमांचल के संजौली मस्जिद का विवाद, हिंदुओं में आक्रोश
भारत की अन्य मस्जिदों को लेकर भी मचा विवाद....
हिमांचल प्रदेश की राजधानी शिमला के सबसे बड़े उपगर संजौली मस्जिद विवाद पूरे देश में छाया हुआ है. मस्जिद में हुए अवैध निर्माण के बाद हिन्दूओं में काफी आक्रोश है, जबकि शिमला में कई दिनों से इसको लेकर हिन्दू संगठन के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. इस दौरान मस्जिद के आसपास का पूरा इलाका जंग का मैदान बना हुआ है.
14 साल पुराना है मामला?…
गौरतलब है कि शिमला की संजौली मस्जिद पर जो बवाल हुआ है वह आज का नहीं बल्कि आज से 14 साल पुराना मामला है. यह मामला अभी शिमला की नगर निगम की कोर्ट में लंबित है. बताया जा रहा है कि पिछले महीने मारपीट की घटना के बाद यहां फिर से इस मस्जिद का मुद्दा जोर शोर से उठ गया.
जानें क्या है मस्जिद का पूरा मामला…
मस्जिद का पूरा मामला जानने के लिए आपको चलना होगा आज से 17 साल पहले, यानि 2007 में. कहा जा रहा है कि इस मस्जिद का निर्माण साल 2007 में शुरू हुआ था. वहीं, इस मस्जिद के निर्माण को अवैध बताते हुए 2010 में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद पिछले 14 सालों में चार मंजिले जोड़ी गईं. इस मामले में कोर्ट में करीब 45 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन कोई फैसला सामने नहीं आया है.
व्यापारी पर हिंसा के बाद फ़ैली चिंगारी…
बता दें कि, यह चिंगारी तब आग की तरह फ़ैल गई जब 30 अगस्त को अल्पसंख्यक समुदाय के आधा दर्जन लोगों ने कथित तौर पर मल्याणा इलाके में व्यापारी यशपाल सिंह और कुछ अन्य पर रॉड और लाठियों से हमला किया. इस मामले में चार लोग घायल हो गए थे, जबकि हमला करने वालों में गुलनवाज (32), सारिक (20), सैफ अली (23), रोहित (23), रिहान (17) और समीर (17) और रिहान के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. पांच आरोपी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, जबकि एक देहरादून का है. यह भी बताया जा रहा है कि हमले के बाद सभी मस्जिद में छिप गए थे.
मस्जिद का अवैध निर्माण हुआ हिन्दू- मुस्लिम
बता दें कि, मामला मस्जिद विवाद और अवैध निर्माण का है, लेकिन आज के राजनीति में ऐसा विवाद तत्काल दो समुदाय के बीच आ जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ है इस मस्जिद को लेकर, अब शिमला में यह विवाद अवैध का न होकर हिन्दू- मुस्लिम हो गया है. इसमें अब हिन्दू संगठन विरोध कर रहे है. जबकि मुस्लिम अब कोर्ट के फैसले पर इसे तोड़ने के लिए राजी हैं.
मंत्री ने मस्जिद को बताया अवैध निर्माण
इतना ही नहीं जहां एक तरफ सरकार इसमें उचित कार्यवाही की बात कह रही है वहीं मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा, ‘बिना मंजूरी के निर्माण शुरू कर दिया गया. यह एक अवैध ढांचा था. पहले, एक मंजिल बनाई गई, फिर बाकी मंजिलें बनाई गईं. यहां संजौली बाजार की महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है. चोरियां हो रही हैं. झगड़े हो रहे हैं. लव जिहाद एक और गंभीर मुद्दा है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. यह हमारे देश और राज्य के लिए खतरनाक है. मस्जिद सरकारी जमीन पर बनी है और मामला पिछले 14 साल से अदालत में विचाराधीन है. आपको बता दें कि यह कोई पहली बार नहीं है जब शिमला की संजौली मस्जिद को लेकर विवाद हो रहा है. इससे पहले भी कई बार देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी मस्जिदों का विवाद चला है और अभी काफी विवाद चल रहे हैं.
जून 2022 में तुर्की की इंटरनेशनल न्यूज वेबसाइट टीआरटी वर्ल्ड ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया है कि भारत में कम से कम 5 धार्मिक स्थल हिंदू समूहों के दावों के अधीन हैं. ये हैं….
– मथुरा में शाही मस्जिद
– धार में भोजशाला परिसर
– दिल्ली में कुतुब मीनार
– लखनऊ में टीली वाली मस्जिद
– अजमेर में हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह
– मध्य प्रदेश में कमाल-उद-दीन मस्जिद
बंदायूं की शाही इमाम मस्जिद…
अब हम जानते हैं कि देश में वो कौन सी प्रमुख मस्जिदें हैं, जिन्हें विवादित माना जा रहा है. इसमें बदांयूं की शाही इमाम मस्जिद भी है. ये 800 साल पुरानी है. यह मस्जिद मुस्लिम बादशाह शम्शुद्दीन इल्तुतमिश ने 1223 में बनवाई थी. इसमें तब से लगातार ही नमाज अदा की जा रही है. इसका मामला भी अब कोर्ट में है. इसे 10वीं सदी में भगवान शिव के मंदिर को ध्वस्त करके बनाया गया था. याचिका में दावा किया गया कि इस जगह के असली मालिक हिंदू हैं, लिहाजा उन्हें यहां पूजा करनी चाहिए.
क्या है धर्म स्थल कानून…
गौरतलब है कि आजाद भारत में पूजा स्थल 15 अगस्त, 1947 तक बने हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाता है. साथ ही, यह किसी भी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर भी रोक लगाता है. इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त, 1947 तक बने हुए सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखी जाएगी. चाहे वह मस्जिद, मंदिर, चर्च या कोई और सार्वजनिक पूजा स्थल हो. यह सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों के त्यों बने रहेंगे. इसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ़ से नहीं बदला जा सकता.
मथुरा की शाही ईदगाह को लेकर
मथुरा में शाही ईदगाह को लेकर विवाद स्थानीय अदालत में है. इस ईदगाह को 1670 में औरंगजेब ने बनवाया था. इसे लेकर कम से कम 12 याचिकाएं अदालत में हैं. इनमें दावा किया गया है कि ये ईदगाह कृष्ण की जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है.
वाराणसी धरहरा मस्जिद…
वाराणसी की ही धरहरा मस्जिद पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की आधिकारिक साइट कहती है कि ये मस्जिद वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से पूर्व की ओर है. ये वास्तुकला की हिंदू-मुगल शैली का एक उदाहरण है. इस स्मारक को स्थानीय तौर पर माधोदास का धरहरा कहा जाता है. कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 12वीं शताब्दी (गहड़वाला काल) के विष्णु के एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर, जिसे विष्णु माधव के नाम से जाना जाता है, की जगह पर किया गया है.
कुतुब मीनार पर क्या दावा
कुतुब मीनार 240 फिट ऊंची है और दिल्ली का सबसे दर्शनीय स्थल है. इसे दिल्ली के पहले सुल्तान कुतबुद्दीन ऐबक ने 1192 में दिल्ली के तत्कालीन हिंदू शासकों को हराने के बाद बनवाया था. इतिहासकारों के अनुसार इसे बनवाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिर ध्वस्त किए गए. इसके मलबे का इस्तेमाल यहां मस्जिद निर्माण में हुआ. हालांकि एक सिविल कोर्ट ने इससे संबंधित याचिका को खारिज कर दिया था.
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धार भोजशाला को लेकर क्यों विवाद
मध्य प्रदेश में धार भोजशाला परिसर फिलहाल एएसआई के अधीन है. ये 11वीं सदी में बना एक स्मारक है. इसके बारे में हिंदू संगठनों का दावा है कि यहां हिंदू देवी सरस्वती का मंदिर था. मुस्लिम इसे कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं. हालांकि वर्ष 2003 में एएसआई ने ये व्यवस्था की कि हिंदू यहां हर मंगलवार को पूजा कर सकें. जबकि मुस्लिम शुक्रवार को. इसका मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है. हिंदू संगठन इसका नाम भी बदलकर सरस्वती सदन रखवाना चाहते हैं.
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लखनऊ की टीली वाली मस्जिद और अजमेर की दरगाह
टीली वाली मस्जिद 16वीं सदी की है. ये विवादित है. इसे लक्ष्मण टीला बताया जाता है. राजस्थान में अजमेर की दरगाह को लेकर दावा है कि यहां पर कभी मंदिर था. हिंदू संगठन चाहते हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसकी जांच करे. यहां की दीवारों और खिड़कियों पर स्वस्तिक के निशान हैं. महाराणा प्रताप सेना ने इसे लेकर याचिका दायर की है.