केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल: जाने भारत के सबसे बड़े फ़ोर्स के बारे में, आज हुआ था लागू
आंतरिक सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) भारत संघ का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है. यह सबसे पुराना केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल (अब केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) में से एक है, जिसे वर्ष 1939 में क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के रूप में गठित किया गया था. क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस द्वारा भारत की तत्कालीन रियासतों में आंदोलनों एवं राजनीतिक अशांति तथा साम्राज्यिक नीति के रूप में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में लगातार सहायता करने की इच्छा के मद्देनजर, वर्ष 1936 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मद्रास संकल्प के मद्देनजर सीआरपीएफ की स्थापना की गई.
आजादी के बाद 28 दिसम्बर, 1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया था. तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नव स्वतंत्र राष्ट्र की बदलती जरूरतों के अनुसार इस बल के लिए एक बहु आयामी भूमिका की कल्पना की थी. वर्ष 1950 से पूर्व भुज, तत्कालीन पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (पीईपीएसयू) तथा चंबल के बीहड़ों के सभी इलाकों द्वारा सीआरपीएफ की सैन्य टुकड़ियों के प्रदर्शन की सराहना की गई.
भारत संघ में रियासतों के एकीकरण के दौरान बल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जूनागढ़ की विद्रोही रियासत और गुजरात में कठियावाड़ की छोटी रियासत (जिसने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मना कर दिया था) को अनुशासित करने में इस बल ने केंद्र सरकार की मदद की.
आजादी के तुरंत बाद कच्छ, राजस्थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच के लिए सीआरपीएफ की टुकडि़यों को भेजा गया. तत्पश्चात पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा शुरू किए गए हमलों के बाद इनको जम्मू-कश्मीर की पाकिस्तानी सीमा पर तैनात किया गया. भारत के हॉट स्प्रिंग (लदाख) पर पहली बार 21 अक्टूबर, 1959 को चीनी हमले को सीआरपीएफ ने नाकाम किया.
सीआरपीएफ के एक छोटे से गश्ती दल पर चीन द्वारा घात लगाकर हमला किया जिसमें बल के दस जवानों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. उनकी शहादत की याद में देश भर में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है.
वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर बल ने अरूणाचल प्रदेश में भारतीय सेना को सहायता प्रदान की. इस आक्रमण के दौरान सीआरपीएफ के 8 जवान शहीद हुए. पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर वर्ष 1965 और 1971 में भारत पाक युद्ध में भी बल ने भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया.
भारत में अर्द्ध सैनिक बलों के इतिहास में पहली बार महिलाओं की 1 टुकड़ी सहित सीआरपीएफ की 13 कंपनियों को आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के एक अंग के रूप में सीआरपीएफ के कर्मियों को हैती, नामीबीया, सोमालिया और मालद्वीव के लिए वहां की कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए भेजा गया.
70 के दशक के पश्चात जब उग्रवादी तत्वों द्वारा त्रिपुरा और मणिपुर में शांति भांग की गई तो वहां सीआरपीएफ बटालियनों को तैनात किया गया था. इसी दौरान ब्रह्मपुत्र घाटी में भी अशांति थी. केरिपुबल की ताकत न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल्कि संचार तंत्र व्यवधान मुक्त रखने के लिए भी शामिल किया गया. पूर्वोत्तर में विद्रोह की स्थिति से निपटने के लिए इस बल की प्रतिबद्धता लगातार उच्च स्तर पर है.
80 के दशक से पहले पंजाब में जब आतंकवाद छाया हुआ था, तब राज्य सरकार ने बड़े स्तर पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की तैनाती की मांग की थी. बता दें 230 बटालियनों और विभिन्न अन्य प्रतिष्ठानों के साथ, सीआरपीएफ भारत का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल माना जाता है.
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल का मिशन है कि वह संविधान को सर्वोपरि बनाये रखते हुए, प्रभावशाली एवं दक्षतापूर्ण तरीके से विधि-व्यवस्था, लोक व्यवस्था एवं आन्तरिक सुरक्षा को कायम रखने में सरकार को समर्थ बनाये, ताकि राष्ट्रीय-अखण्डता अक्षुण्ण बनी रहे और सामाजिक-सौहार्द तथा विकास का मार्ग प्रशस्त हो.
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