राष्ट्रपति चुनाव की वजह से बिछड़ रहे नीतीश-लालू!

0

राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को चुनावी अखाड़े में उतारकर चुनाव को रोचक बना दिया है। मीरा कुमार का मुकाबला केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार और बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद से है। दोनों उम्मीदवार दलित समुदाय से हैं और दोनों का संबंध बिहार से है। बिहार मीरा कुमार की जन्मस्थली है, तो कोविंद के लिए यह राज्य उनकी कर्मस्थली है। ऐसे में इस चुनाव में जीत किसी भी उम्मीदवार की हो, जीत बिहार की ही होगी।

देश की 17 विपक्षी पार्टियों की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई बैठक में राजग के रामनाथ कोविंद से मुकाबला करने के लिए मीरा कुमार को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के फैसले के बाद यह तय हुआ कि इस चुनाव में मुख्य मुकाबला दो दलित चेहरों के बीच है। कोविंद जहां बिहार के राज्यपाल रहे हैं, वहीं मीरा इस प्रदेश की बेटी हैं।

वैसे, इस चुनाव में इन दोनों उम्मीदवारों को लेकर भले ही कई समानताएं हों, लेकिन बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में उम्मीदवार के समर्थन को लेकर फूट दिखाई दे रही है। राष्ट्रपति चुनाव में जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन देने की घोषणा की है, जबकि महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और राजद मीरा कुमार के साथ हैं।

राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि लालू प्रसाद का विपक्ष के साथ जाने के अलावा कोई चारा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि भले ही लालू नीतीश से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का दबाव डाल रहे हों, लेकिन नीतीश की पहचान निर्णय नहीं बदलने वाले नेता की रही है।

किशोर कहते हैं कि अगर संख्या बल पर गौर किया जाए तो वह कोविंद के साथ है, ऐसे में विपक्ष ने केवल इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए चुनावी मैदान में अपना उम्मीदवार उतारा है। किशोर का दावा है कि इस फैसले से राज्य में महागठबंधन की सरकार को कोई परेशानी नहीं होने वाली है।

बकौल किशोर, “नीतीश के मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जहां राजद के साथ बने रहना जहां जद (यू) की मजबूरी है, वहीं लालू को अपने पुत्रों को मंत्री पद पर बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार का साथ देना उनकी मजबूरी है। हां, यह अलग बात है कि नीतीश राजग के साथ जा सकते हैं, लेकिन लालू के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) में बने रहने के अलावा कोई और उपाय नहीं है।”

Also read : प्रधानमंत्री मोदी 3 देशों की यात्रा के लिए रवाना हुए

इधर, जद (यू) लालू के पुनर्विचार करने की अपील को नकारते हुए स्पष्ट कर चुका है कि वह राष्ट्रपति चुनाव में कोविंद के साथ है। कोविंद का ताल्लुक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से रहा है। आरएसएस भाजपा का मार्गदर्शक संगठन है, जिसकी विचारधारा को कांग्रेस सहित अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार मानती हैं।

वैसे, नीतीश के फैसले के बाद चुनावी समीकरण बदल गए हैं। इसमें भी बिहार की भूमिका अहम हो गई है तथा राजग के कोविंद की जीत की संभावनाओं को बल मिल गया है। वैसे लालू प्रसाद, मीरा कुमार को ‘बिहार की बेटी’ बताकर नीतीश पर दबाव बढ़ा रहे हैं।

पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि इस चुनाव में मुख्य मुकाबला कोविंद और मीरा के बीच है। उन्होंने कहा, “लालू भले ही मीरा को ‘बिहार की बेटी’ बताकर नीतीश पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के ‘लाल’ कोविंद के लिए भी यह बात बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी पर लागू होगी।”

उन्होंने आगे कहा, “यह चुनाव स्पष्ट रूप से दो विचारधाराओं की लड़ाई है, जिसमें आंकड़े कोविंद के पक्ष में हैं। वैसे इस चुनाव में जीत किसी की भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि इस चुनाव में राष्ट्रपति भवन जाने का रास्ता बिहार से ही गुजरेगा।”

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More