विपक्षी एकता बैठक में छूटी बसपा, क्या बिना बसपा के सफल होगी एकजुटता
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी दलों की तैयारियां तेज हो गई हैं। कुछ चुनावी पार्टियां नए गठबंधन की तलाश में हैं तो कुछ पुराने गठजोड़ को ही मजबूत करने में जुटी हैं। इसी के तहत शुक्रवार को पटना में सबसे बड़ी विपक्षी दलों की बैठक आयोजित हो रही है। इस बैठक में कई चुनावी समीकरण खुलकर सामने आएंगे। मगर, इस बैठक में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बसपा प्रमुख मायावती बन गई है। इसकी वजह है कि पटना में होने वाली विपक्षी दल एकता बैठता में बहुजन समाज पार्टी को निमंत्रण नहीं दिया गया है।
बैठक में बसपा को नहीं दिया निमंत्रण
बता दें, आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के लिए प्रमुख विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद चल रही है। 23 जून को पटना में विपक्षी एकजुटता के लिए बड़ी बैठक होने जा रही है। यह बैठक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुलाई है। इस बैठक में सपा से लेकर कांग्रेस, आरजेडी, एनसीपी सहित करीब 16 विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल होंगे। लेकिन इस बैठक में बीएसपी को नही बुलाया गया है। यहीं नहीं किसी भी नेता ने मायावती से औपचारिक व अनौपचारिक किसी भी रूप में संपर्क नहीं किया है। इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि अब विपक्षी दलों को बसपा पार्टी से कोई नुकसान नहीं होने वाला है। या ये भी समझा जा सकता है कि विपक्षियों को लगता है कि बसपा पार्टी का अस्तित्व खत्म हो चुका है।
लखनऊ में मायावती से नहीं मिले नीताश
बिहार के पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बड़ी बैठक को लेकर उत्तर प्रदेश में भी गतिविधियां तेज हो चुकी हैं। 23 जून को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने के लिए पटना पहुंचेंगे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को बैठक में आने का निमंत्रण खुद सीएम नीतीश कुमार ने लखनऊ आकर दिया है। लखनऊ में नीतीश कुमार सपा प्रमुख अखिलेश यादव से तो मिले पर उन्होंने मायावती से मुलाकात नहीं की थी। इसपर मायावती ने ट्वीट कर एकता बैठक पर प्रश्नचिन्ह भी लगाया है।
मायावती ने लिखा, “यूपी में लोकसभा की 80 सीट चुनावी सफलता की कुंजी कहलाती है, किन्तु विपक्षी पार्टियों के रवैये से ऐसा नहीं लगता है कि वे यहाँ अपने उद्देश्य के प्रति गंभीर व सही मायने में चिन्तित हैं। बिना सही प्राथमिकताओं के साथ यहाँ लोकसभा चुनाव की तैयारी क्या वाकई जरूरी बदलाव ला पाएगी?वैसे अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी को ध्यान में रखकर इस प्रकार के प्रयास से पहले अगर ये पार्टियाँ, जनता में उनके प्रति आम विश्वास जगाने की गज़ऱ् से, अपने गिरेबान में झाँककर अपनी नीयत को थोड़ा पाक-साफ कर लेतीं तो बेहतर होता। ’मुँह में राम बग़ल में छुरी’ आख़िर कब तक चलेगा?”
बैठक को लेकर बसपा में हलचल
पटना में हो रही बैठक पर सभी की निगाहें हैं। इस बैठक को लेकर बसपाई खेमे में इसको लेकर हलचल भी है। माना जा रहा है कि 21 जून को बुलाई गई बैठक इसी का नतीजा है। हालांकि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन का कहना है कि एनडीए को हराने के लिए जो भी दल साथ मे आएंगे उनसे गठबंधन के रास्ते खुले हैं, चाहे वो बीएसपी हो या कोई और। हालांकि इस बैठक में बीएसपी को न्योता नही मिला है। अब सवाल यही है कि आखिर बिना बीएसपी के ये क्या विपक्षी एकता उत्तर प्रदेश में कितना कारगर साबित होगा?
बीएसपी के पास मजबूत वोट बैंक
सवाल ये है कि बिना बीएसपी के क्या उत्तर प्रदेश में ये विपक्षी एकता कारगर होगी। क्योंकि राजनीतिक गलियारे में कहावत है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। देश का सबसे बड़ा सूबा है उत्तर प्रदेश, लोकसभा की 80 सीटें यहां से आती हैं। दरअसल, काफी कमजोर होने के बाद भी बसपा का अपना वोटबैंक है, जिसके आंकड़े खुद गवाह हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब वह शून्य पर आ गई थी, तब भी उसे 19.77 प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव में 5 सीटों पर सपा को जीत मिली थी। 19.43 प्रतिशत वोटों के सहारे उसके 10 प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचे. वहीं, सपा सिर्फ पांच सीटें जीत सकी थी। हालांकि इस गठबंधन में आरएलडी भी थी।
कांग्रेस से बढ़ी बीएसपी की नजदीकियां
अगर पिछले कुछ दिनों की बात करें तो बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने बीजेपी पर सीधा हमला बोल हैं। जबकि इससे पहले तक कांग्रेस और बीजेपी को एक कठघरे में खड़ी करती रही हैं। अब वो कांग्रेस पर सीधे हमला करने से बच रही हैं। सूत्रों की अगर माने तो बसपा सुप्रीमो की तरफ से कांग्रेस को पहले तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में साझेदारी के विकल्प पर विचार करने को कहा गया है। इसके बाद 2024 में उत्तर प्रदेश की 40-40 लोकसभा सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ने का संभावित फार्मूला भी बसपा की ओर से दिए जाने की चर्चा है। बताया जा रहा है कि बसपा के प्रतिनिधि ने कांग्रेस मुख्यालय पहुंचकर कांग्रेस संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी से भेंट कर इसकी संभावनाएं टटोलने की कोशिश की।
बैठक में बसपा को ना बुलाने की वजह
विपक्षी दलों की एकता बैठक में बसपा को नहीं बुलाने की कई वजह हो सकती हैं। आमतौर पर बसपा पार्टी की प्रमुख मायावती बड़े दलों के खेमे में अपना झुकाव दिखाती रहती हैं। ऐसे में विपक्षी दलों के पास कई बड़ी वजह हैं, जिससे बसपा को किनारे कर दिया गया है।
- बसपा पार्टी का भाजपा की तरफ झुकाव बना रहा है। कई बार बसपा का भाजपा से गठबंधन करने की चर्चा भी उड़ी थी।
- बसपा पार्टी ने नए संसद भवन के समय विपक्षी दलों का साथ छोड़ दिया था। ये भी वजह हो सकती है कि विपक्षियों ने बसपा को नहीं बुलाया है।
- लगातार महज कुछ ही सीटों पर सिमटने वाली बसपा पार्टी की नींव अब कमजोर हो चुकी है। ऐसे में अब विपक्षियों को बसपा से एकजुटता का कोई लाभ नहीं दिख रहा।
- यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश याादव से बसपा सुप्रीमो मायावती का छत्तीस का आंकड़ा रहता है। इसलिए भी मायावती को निमंत्रण नही दिया गया है।
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