अब शादी के लिए लड़का-लड़की की उम्र 18
विवाह के लिए लड़के और लड़की उम्र बराबर होनी चाहिए। 18 साल की उम्र में लड़का या लड़की सरकारें चुन सकते हैं तो उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने के लिए भी सक्षम माना जाना चाहिए। इन्हीं तर्कों के साथ विधि आयोग ने शुक्रवार को विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र सीमा 18 साल करने की सिफारिश की है।
फिलहाल शादी के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र 21 व लड़की की 18 साल है। इसके अलावा आयोग ने कई महत्वपूर्ण मसलों पर अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी हैं।
बाल विवाह निरोधक कानून का उल्लंघन होता है
लॉ कमिशन ने ‘परिवार कानून में सुधार’ पर अपने परामर्श पत्र में कहा है कि शादी की उम्र को लेकर अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग व्यवस्था है। अलग-अलग पर्नसल लॉ के कारण कई बार बाल विवाह निरोधक कानून का उल्लंघन होता है। इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
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कमिशन ने अपने सुझावों में कहा है कि एक अवधारणा बनी हुई है कि विवाह के वक्त लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए। इसका कोई तार्किक आधार नहीं है। भारतीय बालिग अधिनियम 1875 के तहत 18 साल में व्यक्ति को वयस्क माना जाता है। यही उम्र शादी के लिए भी तय होनी चाहिए।
स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत दो अलग धर्म के लोग शादी कर सकते हैं। इसके लिए 30 दिनों के नोटिस पीरियड का प्रावधान है। इस कारण कपल के नजदीकियों को शादी रोकने का मौका मिलता है। यह नोटिस पीरियड खत्म होना चाहिए, या कपल को प्रोटेक्ट किया जाए।
बहुविवाह अपराध, निकाहनामे में हो जिक्र
एक आदमी का कई महिलाओं से शादी करना आईपीसी की धारा-494 के तहत अपराध है। इस्लाम में बहुविवाह प्रथा है, लेकिन इसका कई बार गलत इस्तेमाल होता है। लॉ कमिशन का सुझाव है कि निकाहनामे में स्पष्ट होना चाहिए कि बहुविवाह अपराध है और आईपीसी की धारा-494 के तहत मुकदमा बनता है।
तलाक के बाद सम्पत्ति में हक
लॉ कमिशन ने महिलाओं के घर में सहयोग और योगदान को तरजीह दी है। तलाक के मामले में आयोग ने कहा है कि कि शादी के बाद अर्जित घर की सम्पत्ति में उन्हें बराबरी का हिस्सा मिलना चाहिए।
यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत नहीं
यूनिफॉर्म सिविल कोड की इस स्टेज पर न तो जरूरत है, न ही यह वांछनीय है। आयोग का कहना है कि दुनिया के देशों में विभिन्नता को पहचान देने की कोशिश है। ऐसे में विभिन्नता का मतलब असमानता नहीं है बल्कि यह मजबूत लोकतंत्र का सबूत है। इसके साथ ही विधि आयोग ने तमाम धर्मों के पर्नसल लॉ में बदलाव के भी सुझाव दिए हैं।शादी कर रहे दोनों लोग हर तरह से बराबर हैं और उनकी साझेदारी बराबर वालों के बीच वाली होनी चाहिए।
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