सपा-बसपा का गठबंधन आसान नहीं , फंसेगा पेंच
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के मुकाबले भानुमती का कुनबा जोडऩे की कोशिशों में जुटी समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की कमजोर नब्ज पर वार करके यह संकेत दे दिया है कि महागठबंधन के लिए सीटों की फांस गहरी हो सकती है। सपा और बसपा अभी नीतिगत आधार पर एक होने की बात कह रहे हैं लेकिन, सीटों पर बात होनी अभी बाकी है, जिसमें पेच फंसना तय माना जा रहा है।
सीटें दिए जाने की बात सपा ने उछाली है
रालोद भी अधिक हासिल करने की कोशिश में जुटेगा।कांग्रेस यूपी में कमजोर है और उसकी इस स्थिति को देखते हुए ही सीटें दिए जाने की बात सपा ने उछाली है। रायबरेली और अमेठी को छोड़कर उसके पास गिनाने के लिए कुछ भी नहीं। इसी वजह से सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान को इस बात की पेशबंदी माना जा रहा है कि कांग्रेस अधिक की उम्मीद न करे।
सम्मानजनक स्थितियों में ही समझौता होगा
इसकी एक वजह यह भी है कि गठबंधन की स्थिति में बसपा 40 सीटों से कम पर किसी कीमत पर राजी होने को तैयार नहीं होगी।खुद मायावती भी कह चुकी हैं कि सम्मानजनक स्थितियों में ही समझौता होगा।
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ऐसी स्थिति में कांग्रेस और रालोद दोनों को सपा अपने हिस्से की सीटें देने के लिए बाध्य होगी। बता दें कि गत विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के सहयोग से लड़ा था लेकिन, दोनों 54 सीटों पर ही सिमट गई थीं।
हिसाब से ही सीटों की हिस्सेदारी की बिसात बिछा रहे हैं
कांग्रेस के तो महज सात विधायक ही जीत पाए थे। बसपा को भी महज 19 सीटें ही हासिल हुई थीं लेकिन, उसका अपने बेस वोट बैंक पर कब्जा बरकरार रहा।सपा अध्यक्ष अखिलेश विधानसभा चुनाव के परिणाम से सबक लेते हुए राजनीतिक हैसियत के हिसाब से ही सीटों की हिस्सेदारी की बिसात बिछा रहे हैं।
इसी नजरिए से उन्होंने कांग्रेस को कम सीटें दिए जाने का संकेत दिया है लेकिन, महागठबंधन के लिए अभी उन्हें बसपा और रालोद के मोर्चे से निपटना बाकी है। पिछले दिनों लोकसभा के तीन उपचुनाव और विधानसभा के एक उपचुनाव में बसपा ने अपने वोटों को सपा और उसके सहयोगी दलों के लिए ट्रांसफर कराकर अपनी ताकत का अहसास कराया है और सीटों की सौदेबाजी में वह पीछे हटने को शायद ही तैयार हो।साभार
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