बिहार भाजपा के सह प्रभारी सुनील ओझा का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन
मिर्जापुर जिले के कछवां क्षेत्र के गड़ौली धाम के संस्थापक और भाजपा बिहार प्रांत के सह प्रभारी सुनील भाई ओझा गुरूवार की दोपहर पंचतत्व में विलीन हो गए. उनका अंतिम संस्कार धाम के ही गंगा घाट पर किया गया. उनके बड़े बेटे विरल और छोटे बेटे रूत्वीज ने मुखाग्नि दी. इस दौरान उनकी पत्नी, बहुएं, गोद ली बेटी सहित भाजपा के कई पदाधिकारी, मंत्री व विधायक मौजूद रहे.
देर रात वाराणसी लाया गया शव
सुनील ओझा का शव बुधवार की देर रात वाराणसी लाया गया. अंतिम दर्शन के लिए मंडुवाडीह स्थित महावीर हाइट्स सोसाइटी के उनके अस्थायी आवास पर शव रखा गया. गुरूवार की सुबह आठ बजे उनकी शवयात्रा मिर्जापुर के गड़ौली धाम के लिए रवाना हुई. पार्टी के झंडे में लिपटा सुनील ओझा का पार्थिव शरीर पूर्वाह्न 11.30 बजे गड़ौली धाम पहुंचा. यहां एक घंटे तक अंतिम दर्शन के लिए रखा गया.
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ये गणमान्य रहे उपस्थित
इस दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी सहित कई सासंदों व विधायकों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके परिजनों ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किया. बेटी गंगा ने भी चरण छूकर अपने बाबा को अंतिम विदाई दी. उनके पार्थिव शरीर को गंगा घाट ले जाया गया, जहां अंतिम संस्कार हुआ. उनके बेटों विरल और रूत्वीज ने पिता को मुखाग्नि दी.
गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में हुआ था निधन
सुनील ओझा का निधन बुधवार की सुबह 4.30 बजे गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में हुआ था. कुछ महीने पहले ही उनका उत्तर प्रदेश से बिहार ट्रांसफर किया गया था. इसके पहले सुनील ओझा यूपी के सह प्रभारी थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफार्म पर सुनील ओझा के साथ की फोटो शेयर करते हुए गहरा दुख व्यक्त किया है. मूल रूप से गुजरात के रहने वाले सुनील ओझा ने अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत गुजरात के भावनगर से की थी. सुनील ओझा 1998 और 2002 में भावनगर (दक्षिण) निर्वाचन क्षेत्र से गुजरात विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. वर्ष 2007 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए. जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब ओझा ने उनके नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया था और 2007 के चुनावों से पहले पार्टी छोड़ दी थी.
महागुजरात जनता पार्टी में हुए थे शामिल
इसके बाद वह स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. बाद में सुनील ओझा एक अन्य बागी नेता व मोदी सरकार में पूर्व मंत्री गोवर्धन झड़फिया की महागुजरात जनता पार्टी में शामिल हो गए. हालांकि 2011 में वह एक बार फिर भाजपा के करीब आ गए और उन्हें गुजरात भाजपा का प्रवक्ता बना दिया गया. जब 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो सुनील ओझा, अरुण सिंह और सुनील देवधर को चुनाव संचालन की जिम्मेदारी
सौंपी गई थी. 2014 से पहले अमित शाह को यूपी भाजपा का प्रभारी बनाया गया तो सुनील ओझा को सहप्रभारी बनाया गया था. 2019 में उन्हें गोरक्ष प्रांत की भी जिम्मेदारी दी गई थी. गढ़ौली धाम में सरकारी खर्च पर 1008 सामूहिक विवाह कराने के बाद विवाद में आए ओझा का स्थानांतरण प्रदेश सह प्रभारी के रूप में बिहार कर दिया गया था.