Bhagwa Colour: कैसे बना सन्यासियों का रंग ”भगवा” ?
Bhagwa Colour: भारत में सैकड़ो हजारों सालों से साधु – संतों को हमे भगवा रंग में ही देखा है. भगवा वस्त्र के साथ भगवा टीका और यहां तक हमारे पवित्र ग्रंथ पर लपेटा गया कपड़ा भी भगवा रंग का ही होता है, ऐसे में क्या आपने कभी विचार किया है कि, ये रंग भगवा ही क्यों ? लाल, पीला, गुलाबी क्यों नहीं होता है. यदि सालों से एक ही रंग है तो आखिर क्यों और इसके पीछे की वजह क्या है. आइए जानते है…
अग्नि का प्रतीक होता है Bhagwa Colour
दरअसल, माना जाता है कि, भगवा रंग अग्नि का प्रतीक होता है. लिहाजा इसे पवित्र और शुद्धता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए भगवा रंग को मात्र साधु -संतो के लिए ही नहीं बल्कि मंदिर के रंग के लिए भी चुना गया है. मंदिर के ऊपरी हिस्से को भी भगवा रंग ही रंगा जाता है वही महिला साधु भी इसी रंग को धारण करती है.
भगवा पहने से मन पर रहता है नियंत्रण
भगवा रंग ऊर्जा और त्याग का प्रतीक है. माना जाता है कि, भगवा रंग का कपड़ा पहनने से मन पर नियंत्रण रहता है. आपका मन शांत रहता है. लेकिन इसे लेकर कई धर्मों में अलग-अलग विचार हैं. जैसे – कुछ धर्म सफेद या हरा रंग को पवित्र मानते हैं, तो हिंदू धर्म हमेशा से भगवा रंग को पवित्र मानता आया है.
ऐसे बना हिंदुओं का रंग भगवा
आपको बता दें कि, भगवा रंग के हिन्दुओं होने की पीछे एक पौराणिक कहानी भी है. जिसमें बताया गया है कि, पुराने समय में साधु संत एक जगह से दूसरी जगह जब जाते थे, तो अपने साथ अग्नि को साथ लेकर चलते थे, धीरे-धीरे अग्नि के साथ साधु संत भगवा रंग का ध्वज लेकर चलने लगे. इसके बाद में ये रंग उनके वस्त्रों में बदल गया.
इन धर्मों का मुख्य रंग है भगवा
हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों में भी भगवा या केसरिया रंग का खास महत्व है. वेद, उपनिषद, पुराण और श्रुति सब भगवान की प्रशंसा करते हैं. हिंदू नारियां भी सुहाग के प्रतीक के रूप में इसी रंग से अपनी मांग भरती हैं, कुल मिलाकर, साधु, वैरागी, त्यागी, तपस्वी, गृहस्थ सब भगवा कपड़े पहनते हैं.
भगवा और नारंगी में क्या है अंतर?
कई लोग भगवा या केसरिया रंग को नारंगी या आरेंज रंग से तुलना करते हैं, लेकिन दोनों में अंतर है. नारंगी रंग लाल और पीले रंगों के बीच है, जबकि केसरिया रंग पीले रंग की ओर अधिक झुकता है, अक्सर सुनहरे या पीले-नारंगी रंग के रूप में वर्णित किया जाता है.
कौन पहनते है मैरून रंग ?
भगवा रंग के मुख्य रंग क्रोसिन, एक कैरोटीनॉयड रसायन के कारण होता है. मसाला केसर, क्रोकस धागे की नोक का रंग से प्राप्त करते है. 16वीं शताब्दी में इस रंग को “नारंगी” दिया गया है. यह पहले “केसरिया” या “पीला लाल” नाम से जाना जाता था. थेरवाद परंपरा में बौद्ध भिक्षु अक्सर भगवा वस्त्र पहनते हैं, वज्रयान बौद्ध भिक्षु मैरून रंग के कपड़े पहनते हैं.
कौन से साधु पहनते है सफेद कपड़े?
हिंदू धर्म में से बहुत से धर्म निकले है, इन्ही में से एक है जैन धर्म में साधु और संयासी होते है. जैन साधुओं में दो प्रकार होते है – दिगंबर और श्र्वेताम्बर.दिगंबर साधु बिना कपड़ों के ही रहते हैं. इसका अर्थ है कि उन्होंने सभी भौतिक चीजों को त्याग दिया है. श्वेताम्बर वो साधु होते हैं वो सफ़ेद कपड़े पहनते हैं और मुंह पर भी सफेद कपड़ा बांधते हैं.
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कौन पहनते है काले वस्त्र ?
काले कपड़े, खुली जताएं, रुद्राक्ष की माला गले में और नरकंकाल हाथ में होता है, इस तंत्र-मन्त्र में माहिर साधक खुद को तांत्रिक कहते हैं. उन्हें लगता है कि, उनके तंत्र से आप दूसरों से अपने मन का सब कुछ करवा सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि, उन्होंने बहुत सी बीमारियों का इलाज भी तंत्र-मंत्र से किया है. बहुत से अघोरी साधु भी काले रंग के वस्त्र पहनते हैं.