सावधान! कहीं आपके किचन में तो पैठ नहीं बना रहा चीनी लहसुन…
भारतीय बाजारों में इस समय लहसुन का दाम आसमान छू रहा है. इस बीच सब्जी बाजारों में ‘चीनी लहसुन’ की बिक्री खुलेआम हो रही है. इस पर भारत सरकार ने प्रतिबन्ध लगा रखा है. कहा जा रहा है कि यह लहसुन सेहत के लिए हानिकारक है इसलिए इस पर बैन लगा रखा गया है.
क्या कहते हैं किसान
इसी को लेकर Journalist Cafe की टीम ने कानपुर के तहसील घाटमपुर के लहसुन किसान प्रवीण कुमार से बातचीत की जिसमें उन्होंने बताया कि- हर साल हम लोग करीब 1 से 5 बीघे यानि करीब दो एकड़ लहसुन की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि एक बीघे में करीब 25 से 35 हजार रुपये का खर्च आता है. बुवाई के समय इसमें उर्वरक और पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किया जाता है जिससे इसमें कीड़े न लगे और फसल को नुकसान न पहुंचे.
फसल की पैदावार को लेकर Journalist Cafe से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि, अगर किसी बीमारी और कोई बाधा के फसल हुई तो करीब एक बीघे में 30 से 35 क्विंटल लहसुन पैदा हो जाता है. इसके लिए इसमें हर 25 दिन में पानी देना होता है और 45 दिन पर पेस्टीसाइड का छिड़काव करना होता है वो भी केवल दो बार.
देशी तरीका छोड़ करने लगे हाइब्रिड खेती
आज के समय में अधिक मेहनत और खर्च के चलते अब हम लोग देशी को छोड़ हाइब्रिड की तरफ जा रहे हैं. जिसके कारण ज्यादा दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं इसके लिए ज्यादा उर्वरक और दावा का इस्तेमाल होता है.
उन्होंने यह भी कहा कि- आज से करीब 5 साल पहले जब मेरे पिता जी लहसुन की खेती करते थे तब तब इतना ज्यादा दवा और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं होता था. मेरे पिता केवल खेत में लहसुन को मशीन से बो देते थे और हर 25 दिन में पानी दे देते थे उसके बाद एक बार निराई और एक बार देशी उर्वरक यानि (गोबर) दे देते थे, लेकिन अब ऐसा करने पर कुछ पैदा नहीं होता.
किसान ने बताया कि जो कीटनाशक दवा छिड़काव के लिए इस्तेमाल की जाती है.वो इतनी हानिकारक होती है कि यदि उसका कुछ भी अंस शरीर में पड़ जाए तो वहां जलन होने लगती है और यदि कोई व्यक्ति इसे खा ले या पी ले तो उसकी जान जा सकती है.
जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर का बयान …
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने बताया है कि कीड़ों से बचाने के लिए छह महीनों तक इस पर मिथाइल ब्रोमाइड छिड़का जाता है, जिसकी वजह से इसमें पेस्टीसाइड का लेवल बहुत ज्यादा हो जाता है. इस वजह से इससे पेंट में इंफेक्शन और अल्सर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है. ये किडनी पर भी बुरा असर ड़ालता है
सरकार 2014 में लगा चुकी है प्रतिबंध…
FSSAI ने 2014 में चाइनीज गार्लिक के निर्यात और बिक्री पर बैन लगा दिया था. इसके अंदर कैंसर पैदा करने वाले केमिकल की मात्रा बहुत ज्यादा मिली थी. ऐसा करने वाला भारत अकेला देश नहीं था, कई दूसरे देशों में भी इस फूड पर बैन लगा दिया गया था.
चीन के लहसुन में फाइटोसैनिट्री का खतरा
कानपुर स्थिति चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्विधालय के प्रोफेसर ने Journalist Cafe को बताया कि यूनाइटेड स्टेट्स इंटरनेशनल ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट बताती है कि चीन के लहसुन पर कई सारे देश बैन लगा चुके हैं. क्योंकि चीन में उगने वाले लहसुन में फाइटोसैनिट्री का खतरा पाया गया है.
क्यों देसी लहसुन की जगह मार्केट में पहुंच रहा चीनी गार्लिक?
दिल्ली की सब्जी मंडियों में लहसुन की कीमत इन दिनों आसमान छू रही है. लहसुन के थोक रेट 150-240 रुपये प्रति किलोग्राम तक चल रहा है, जो रिटेल बाजार में जाकर 350 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रहा है. इस बढ़ी कीमत की वजह से भी चीनी लहसुन की बाजार मौजूदगी बढ़ रही है, क्योंकि ये व्यापारियों को काफी सस्ता मिल रही है और इसमें मुनाफा काफी है.
क्या है देशी और चीनी लहसुन की पहचान…
बता दें कि चीनी लहसुन दिखने में खिला खिला होता है. इसकी कलियां काफी मोटी होती हैं. हालांकि इसमें उतना स्वाद नहीं होता है. इसकी वजह मिलावटी रासायनिक पदार्थ हैं. यहां तक कि सिंथेटिक भी चाइनीज लहसुन में मिलाया जाता है, जिसकी वजह से कैंसर तक हो सकता है.
अगर वहीँ देशी लहसुन की पहचान करें तो सबसे अच्छा है. देसी लहसुन की पहचान है कि इसकी कलियां छोटी या नॉर्मल साइज की होती हैं. देसी लहसुन की गांठों पर काफी दाग-धब्बे होते हैं. इनका छिलका एकदम सफेद नहीं होता है. देसी लहसुन कहीं ज्यादा खुशबूदार होता है. इसकी कलियों को रगड़ने पर हाथ पर हल्की चिपचिपाहट महसूस होती है.
भारत में इतना पैदा होता है लहसुन…
आपको बता दें कि भारत को मसालों का देश कहा जाता है. भारत में करीब 32.7 लाख टन लहसुन का उत्पादन होता है, जबकि चीन में 2 से 2.5 करोड़ टन लहसुन का उत्पादन होता है. चीनी लहसुन का ग्लोबल मार्केट में रेट 1250 डॉलर प्रति टन है, जबकि भारत का लहसुन 450 से 1000 डॉलर प्रति टन तक मिलता है. ऐसे में भारत के लहसुन की डिमांड बढ़ रही है जिसके चलते बाजारों में चीनी लहसुन की खपत ज्यादा हो रही है.
भारत का लहसुन एक्सपोर्ट
भारत मसालों का देश माना जाता रहा है. प्राचीन काल से ही भारत से मसाला ट्रेड होता रहा है. बीते कुछ सालों से भारत के मसाला एक्सपोर्ट में लहसुन की हिस्सेदारी बढ़ी है. स्पाइस बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 की अप्रैल से जनवरी के बीच लहसुन के एक्सपोर्ट में 159% की ग्रोथ दर्ज की गई है. इस दौरान भारत ने 57,346 टन लहसुन एक्सपोर्ट किया है.
नेपाल की जरिए भारत आ रहा चीनी लहसुन…
कहा जा रहा है कि चीनी लहसुन भारत में नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहा है. यदि यह आयात रोक दिया जाता है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं. हालांकि, निरंतर आयात से गिरावट भी हो सकती है. अल्पावधि में, लहसुन की कीमतों में तेजी रहने की उम्मीद है. डेढ़ महीने के भीतर, चीनी लहसुन भारतीय बाजार में बाढ़ ला सकता है, जिससे काफी दबाव पड़ेगा. भारत में चीनी लहसुन के प्रमुख वितरण केंद्रों में कोयंबटूर, असम, मणिपुर-गुवाहाटी और दिल्ली शामिल हैं.