काशी के इस कुंड में स्नान करने से होती है संतान की प्राप्ति और दूर होते हैं कुष्ठ रोग
लाखों लोग संतान की प्राप्ति को लेकर लगते हैं आस्था की डुबकी
काशी तीनों लोको से न्यारी है. लोग जहां मोक्ष की कामना से यहां आकर मरना चाहते हैं, तो वही काशी में संतान की प्राप्ति के लिए भी स्नान और पूजन करते हैं. हम आज ऐसे ही पौराणिक कुंड की बात बताने जा रहे हैं, जिस कुंड के बारे में मान्यता है कि यहां स्नान से संतान की प्राप्ति होती हैं. वहीं असाध्य कुष्ठ रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है. यह पौराणिक कुंड वाराणसी के भेलूपुर थाना क्षेत्र के अस्सी- भदैनी क्षेत्र में है. वैसे तो काशी तीर्थनगरी की हर नदी, कुंड, तालाब को ही जलतीर्थ की मान्यता मिली हुई है. इसी में से एक लोलार्क कुंड भी है. यहां निःसंतान दंपती आस्था और विश्वास की डुबकी लगाते हैं. भादो माह की षष्ठी तिथि को यहां इसी मान्यता के साथ लोग स्नान करने पहुंचते हैं. हर वर्ष सूर्य षष्ठी पर लोलार्क कुंड में डुबकी लगाने के लिए आस्था का सैलाब पहुंचता है. अस्सी-भदैनी स्थित प्रसिद्ध लोलार्क कुंड पर इस बार भी सूर्य षष्ठी 8 सितम्बर को आस्था का मेला गुलजार होगा.
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काशी के लक्खा मेलों में शुमार लोलार्क षष्ठी स्नान की मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना लेकर आने वाले दंपतियों की मनोकामना लोलार्केश्वर महादेव पूरी करते हैं. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को लोलार्क कुंड में स्नान के लिए दंपती बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, बंगाल, नेपाल सहित आसपास के जिलों से काशी पहुंचेंगे. सिर्फ आसपास के जनपदों या जिलों से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आस्थावान संतान प्राप्ति की कामना से पहुंचते हैं.
मंदिर के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय ने बताया कि लोलार्क कुंड में स्नान का विषेश महत्व है.
पश्चिम बंगाल के राजा ने कराया था निर्माण
यहां हर साल सूर्य षष्ठी पर देश के अलग- अलग प्रांतों से आए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. लोलार्केश्वर महादेव मंदिर के पुजारी के अनुसार पश्चिम बंगाल स्थित कूच विहार स्टेट के एक राजा चर्मरोग से पीड़ित और निःसंतान थे. यहां स्नान करने से न केवल उनका चर्मरोग ठीक हुआ बल्कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. उन्होंने इस कुंड का निर्माण सोने की ईंट से कराया था. काशी खंड के अनुसार भगवान सूर्य ने लोलार्क कुंड पर सैकड़ों वर्ष तक भगवान शिव की आराधना की थी. उन्होंने जो शिवलिंग यहां स्थापित किया उसे लोलार्केश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. पुराणों में वर्णित है कि देवासुर संग्राम के समय भगवान सूर्य के रथ का पहिया यहां गिरने के कारण कुंड का निर्माण हुआ. आज भी उदय होने वाले सूर्य की पहली किरण इस कुंड में पड़ती हैं. यहां स्नान मात्र से चर्म रोग दूर होते हैं और संतान कामना पूरी होती है. स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी.
कुंड में तीन बार लगानी चाहिए डुबकी
पुजारी रमेश कुमार पांडेय ने बताया कि संतान की कामना से दंपती लोलार्क छठ के दिन लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करते हैं. कुंड में स्नान के बाद दंपती को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए. दंपती अपने भीगे कपड़े भी छोड़ देते हैं. कुंड में स्नान के बाद दंपती को लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन करना चाहिए. स्नान के दौरान दंपती जिस फल का दान कुंड में करते हैं, मनोकामना पूर्ति तक उसे उसका सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और स्नान करने वाली माताओं की मनोकामना पूरी होती है. पुजारी ने बताया कि यह इकलौता ऐसा शिवलिंग है जिसका पूर्व दिशा की तरफ अर्घा है. मान्यता है कि इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने से वह सीधे सूर्य को प्राप्त होता है, भगवान शिव और सूर्य दोनों प्रसन्न होते हैं.
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भीड़ नियंत्रित करने में पुलिस प्रशासन के छूट जाते हैं पसीने
इस स्नान पर्व के नजदीक आते ही शासन और जिला प्रशासन एक सप्ताह पूर्व ही तैयारी में जुड़ जाता है. यहां की हर गली श्रद्धालुओं से पट जाती है. स्नानार्थियों की भीड़ का नियत्रित करने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. सुरक्षा की दृष्टि से एक बार में लगभग 100 से 150 श्रद्धालुओं को स्नान करने के लिए छोड़ा जाता है. वहीं लोगों को कुंड तक पहुंचाने के लिए लगभग 2 किलोमीटर दूर से ही लाइन लगानी पड़ती है. वहीं ऐसे लोग भी आते हैं जो संतान प्राप्ति के बाद यहां पर बच्चों का मुंडन कराते हैं और हलवा पूरी चढ़ाते हैं.