पारंपरिक खेती को अलविदा कह, इस किसान ने बनाया नया मुकाम
किसानों के लिए नकदी फसल मानी जाने वालों में गेंहू, धान, गन्ना और मोटे अनाजों को ही मानते हैं। लेकिन एक ऐसा किसान भी है जो यूपी के बाराबंकी के रहने वाले हैं। उन्होंने इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि सिर्फ मोटे अनाज ही किसानों के नकदी का मुख्य जरिया है। अंबिका प्रसाद रावत एक ऐसा नाम है जिसने इस पुरानी अवधारणा को गलत साबित कर एक इतिहास बना डाला।
अंबिका का मानना है कि और भी कई फसलें हैं जिनसे किसानों को नकदी के रुप में प्राप्त किया जा सकता है। अंबिका प्रसाद रावत पारंपरिक खेती को दरकिनार करते हुए रावत ने सब्जियों की खेती करनी शुरू कर दी । और देखते ही देखते उनकी ये सोच उनके कमाई का मुख्य साधन बन गया।
दरअसल, अंबिका प्रसाद रावत ने आलू, लौकी और टमाटर जैसी सब्जियों की खेती से बाराबंकी के किसानों के सामने एक नई मिसाल बन गए हैं। मुख्यालय से 38 किमी उत्तर दिशा मे फतेहपुर व सूरतगंज के ब्लॉकों के छोटे और मझोले किसानों के लिए आलू और लौकी, टमाटर और लौकी जैसी सह फसली खेती वरदान साबित हो रही है।
किसान अक्टूबर में आलू की बुवाई के समय आलू की आठ लाईनों के बाद एक पक्ति उन्नत प्रजाति देशी लौकी की बुवाई करते हैं, जनवरी में आलू की खुदाई कर देते हैं और फरवरी के अंत से लौकी का उत्पादन शुरू हो जाता है यह सह फसली खेती भी किसानों को खूब भा रही है। फसल समाप्त होने पर लौकी की लताओं को हैरो से जुताई करके मिट्टी में मिला देते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
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कस्बा बेलहरा के किसान शोभाराम मौर्य के मुताबिक, लौकी की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 15 से 20 हजार की लागत आती है और एक एकड़ में लगभग 70 से 90 कुन्तल लौकी का उत्पादन हो जाता है बाजारों में भाव अच्छा मिल जाने पर 80 हजार से एक लाख रुपए की शुद्ध आय होने की सम्भावना रहती है।
उन्होंने कहा कि रबी के मौसम में लौकी की खेती जो सितम्बर-अक्टूबर में होती है इसमें केवल हाईब्रेट वीज का प्रयोग किया जाता है जिससे जाड़ों के दिनों में भी अच्छा उत्पादन होता रहता है। बता दें कि अंबिका प्रसाद रावत को इस पहल के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है। और रावत निरंतर इस तरह की खेती करने के लिए लोगों को भी उत्साहित कर रहे हैं।
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