बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम: जब एक भाषा बनी क्रांति की चिंगारी

बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम: जब एक भाषा बनी क्रांति की चिंगारी

बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम:  25 मार्च 1971 की रात, जब पूरी दुनिया सो रही थी, तब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) लहूलुहान हो रहा था. पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत ढाका विश्वविद्यालय और आसपास के इलाकों में एक नृशंस नरसंहार किया. लाखों लोग मारे गए, हजारों महिलाओं का शोषण हुआ, और एक पूरी कौम को कुचलने की कोशिश की गई. लेकिन यही वह रात थी, जब बांग्लादेश के जन्म की पहली ईंट रखी गई.

26 मार्च 1971 को, शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. यही दिन आज बांग्लादेश स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन यह केवल एक दिन की कहानी नहीं थी, बल्कि यह संघर्ष दशकों पुराना था, जिसमें भाषा, राजनीति, और असमानता की चिंगारी धीरे-धीरे एक जलते हुए क्रांतिकारी आंदोलन में तब्दील हो गई.

पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भेदभाव

1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तब धार्मिक आधार पर पाकिस्तान बना. लेकिन पाकिस्तान के दो हिस्से थे- पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश). हालांकि, पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या अधिक थी और उनकी भाषा बंगाली थी, फिर भी सत्ता पूरी तरह से पश्चिमी पाकिस्तान के हाथों में रही.

भाषाई भेदभाव: 1948 में, पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित किया, जबकि पूर्वी पाकिस्तान की 56% आबादी बंगाली बोलती थी. 1952 में जब ढाका में छात्र बंगाली भाषा के लिए प्रदर्शन कर रहे थे, तब पाकिस्तानी सेना ने गोलियां चला दीं. इसी के बाद “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” की नींव पड़ी.

राजनीतिक असमानता: 1970 में हुए आम चुनावों में, शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी “अवामी लीग” ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की. लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सेना और तत्कालीन शासक याह्या खान ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया.

आर्थिक शोषण: पूर्वी पाकिस्तान, जो पूरे देश के कुल निर्यात का 60% उत्पादन करता था, उसे आर्थिक रूप से बेहद शोषित किया जाता था. यहाँ के संसाधनों का इस्तेमाल पश्चिमी पाकिस्तान के विकास के लिए किया जाता था, जबकि पूर्वी पाकिस्तान में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ती गई.

जब पाकिस्तान ने किया नरसंहार

25 मार्च 1971 की रात, पाकिस्तानी सेना ने “ऑपरेशन सर्चलाइट” नाम से एक सैन्य कार्रवाई शुरू की. इस अभियान में ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर नरसंहार किया गया. इस दौरान लाखों लोगों की हत्या कर दी गई और हजारों महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाया गया.शेख मुजीबुर्रहमानइसी के बाद 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इससे पहले ही बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गई थी. 26 मार्च को “बांग्लादेश स्वतंत्रता दिवस” के रूप में मनाने की परंपरा यहीं से शुरू हुई.

जब इंदिरा गांधी बनीं बांग्लादेश की शक्ति

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह दक्षिण एशिया की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था.
भारत ने लाखों शरणार्थियों को आश्रय दिया- इस संघर्ष के दौरान लगभग 1 करोड़ बांग्लादेशी नागरिक भारत में शरण लेने पहुंचे, जिससे भारत पर भारी आर्थिक और सामाजिक दबाव पड़ा.

इंदिरा गांधी का कूटनीतिक प्रयास- तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दुनिया के सामने इस मानवता के संकट को रखा और पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश की.

भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971)- जब पाकिस्तान की सेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारत के हवाई अड्डों पर हमला किया, तो भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए युद्ध छेड़ दिया. सिर्फ 13 दिनों में भारतीय सेना और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

16 दिसंबर 1971- भारतीय सेना के जनरल जे.एस. अरोड़ा के नेतृत्व में ढाका में पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. यह इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था, और इसके साथ ही बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया.

नरसंहार और न्याय

1971 के नरसंहार में 30 लाख लोगों की हत्या की गई थी.
लगभग 2 लाख महिलाओं के साथ पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक दुर्व्यवहार किया.
इस युद्ध के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना समर्थित कई युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चला और उन्हें सजा दी गई.

बांग्लादेश आज

बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है. हालांकि, अगस्त 2024 में बड़े पैमाने पर हुए छात्र आंदोलनों के परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पद से इस्तीफा दे दिया और भारत में शरण ली. इसके बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया, जो वर्तमान में देश का प्रशासन संभाल रही है.

इन राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कपड़ा उद्योग, वैश्विक बाजार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाए हुए है. हालांकि, देश को वर्तमान में उच्च मुद्रास्फीति जैसी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसे नियंत्रित करने के लिए अंतरिम सरकार उपाय कर रही है.

यह सब आसान नहीं था. 1971 का संघर्ष केवल एक भूगोलिक विभाजन नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी क्रांति थी, जिसने यह साबित किया कि जब जनता अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी होती है, तो कोई भी सत्ता उन्हें रोक नहीं सकती.

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