राजनीतिक प्रतिद्वंदिता की भेंट चढ़ी ’बनारसी बोली’
बोली को भाषाई श्रेणी में रखते हुए कांग्रेस के विज्ञापन पर लगा रोक तो उठे सवाल
वाराणसी: जिला निर्वाचन विभाग के एक निर्णय से बनारसी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं. भारतेंदु हरिश्चंद्र की जिस खड़ी भाषा पर बनारस गर्व करता था. बनारसी बोली के गर्भ से निकली हिंदी का दावा करते हुए इतराता था उसी बनारसी ठेठ को राजनीति की भेंट चढ़ते हुए देखकर लोग निराश हैं.
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भले ही बात राजनीतिक प्रचार से जुड़ी है लेकिन प्रशासनिक कार्यवाही से बनारसी खुद को आहत महसूस कर रहे हैं. बनारस की अड़ियों पर इस मुद्दें ने जोर पकड़ लिया है. प्रशासन के इस निर्णय पर सवाल उठाने लगे हैं. इसी के साथ भोजपुरी को भाषा घोषित करने की मांग भी जोर पकड़ ली है. अजय राय ने भी राजनीति की भेंट चढ़ी बनारसी बोली को लेकर आरोप लगाया है.
भोजपुरी को भाषा की श्रेणी में शामिल करने के लिए कई वर्षों से संघर्ष कर रहे डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि प्रशासन का यह निर्णय भोजपुरी बोलने वालों को आहत करने वाला है. भारतीय राजनीति में भोजपुरी बेल्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इस इलाके ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए हैं. कई नेता प्रदेश की बागडोर संभाले हैं. पद्म पुरस्कारों में बहुत से नाम भोजपुरी बेल्ट से हैं. अकेले बनारस ने कई भारत रत्न दिए हैं. बौद्धिक संपदा के तौर पर बनारस इतनी उर्वरक भूमि है जिसे इन हस्तियों के नामों की सूची से समझा जा सकता है. जब हिंदी बेल्ट से इतर के लोग तेलगु, मराठी, गुजराती समेत अन्य भाषा में विज्ञापन दे सकते हैं. चुनाव प्रचार कर सकते हैं तो बनारसी बोली में किसी भी दल के प्रचार पर रोक लगाना समझ के परे है. चुनाव आयोग की गाइड लाइन भाषाई श्रेणी को आधार बनाकर जारी किया गया है. बनारसी ठेठ भोजपुरी में शामिल है जिसे भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. भाषा के आधार पर रोक लगाना नियम संगत नहीं है. कहा कि उनके विज्ञापन में कई आपत्तिजनक शब्द या वाक्य नहीं है तो भाषा के आधार प्रशासन का यह निर्णय गलत है.
प्रो. सतीश राय कहते हैं कि बनारस में राजनीति खूबसूरत लोकतंत्र की प्रस्तुति करती है. इसकी बानगी यहां की अड़ियां हैं जहां पर सभी दलों के लोग एकसाथ बैठते हैं. फ्रेंडली चर्चा करते हैं. आखिर कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय की बनारसी ठेठ बोली में हुई अपील में कोई ऐसे शब्द या वाक्य नहीं है जो आपत्तिजनक है. इंडिया गठबंधन प्रत्याशी और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष अजय राय ने आरोप लगाया है कि काशी के सांसद एवं मेरे प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के दबाव में चुनाव आयोग एवं उसका प्रशासन तंत्र मुझे बनारस के लोगों से ’बनारस की हिन्दी’ में संवाद करने से रोक रहा है. समाचार पत्रों के विज्ञापन के माध्यम से मेरी अपील के ड्राफ्ट को प्रकाशन की अनुमति यह कहकर नहीं दी गई कि वह भोजपुरी में लिखी हुई है. कहते हैं कि आप लोग इसे खड़ी बोली में लिखिये, तब हम इसकी अनुमति देंगे, क्योंकि हम किसी क्षेत्रीय भाषा में अनुमति नहीं दे सकते. जनतंत्र में जनता की भाषा में जनता से संवाद को रोकने की यह प्रशासनिक तानाशाही हमारी अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार को कुचलने और काशी की जनभाषा को सत्ता के इशारे पर अपमानित करने का शर्मनाक कृत्य है.
लोकतंत्र की ताकत से जनता देगी जवाब
अजय राय ने कहा कि ’भोजपुरी बनारस की हिन्दी’ है. संविधान की आठवीं अनुसूची में उसको क्षेत्रीय भाषा की मान्यता भी नहीं है. हमारी अपील बनारस की भाषा में और देवनागरी लिपि में लिखी हुई है. उसी देवनागरी लिपि में खड़ी बोली हिन्दी भी लिखी जाती है. काशी में ही भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने पश्चिम की खड़ी बोली को हिन्दी भाषा बनाया था और भोजपुरी उसके पहले से बनारस के लोगों की संवाद की भाषा है. उन्होंने कहा कि बनारस के लोगों से बनारस की भाषा में संवाद से विशुद्ध राजनीतिक विद्वेष के वशीभूत मुझे रोकने की हठधर्मी राजनीतिक पक्षपात का शर्मनाक कृत्य है, जिसकी हम कड़ी निन्दा करते हैं. इसका सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि हमारे विज्ञापन को जहां एक ओर प्रशासन ने भोजपुरी में होने से रोक रखा है. वहीं, आनन फानन में उसकी सूचना नरेन्द्र मोदी के चुनाव व्यवस्थापन के लोगों को देकर दोपहर बाद पीएम मोदी का टूटी फूटी भोजपुरी के लिखित संवादवाचन का वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया गया. काशी के लोग उनकी शह पर काशी की भाषा का अपमान सहन नहीं करेंगे और इस साज़िश का उत्तर लोकतंत्र की ताकत से देंगे.