दान, शिक्षा, पत्रकारिता और क्रांति की अलख जगाते रहे बाबू शिवप्रसाद गुप्त

Babu Shivprasad Gupta kept lighting the flame of charity, education, journalism and revolution.

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# शिवप्रसाद गुप्ता एक समृद्ध व्यापारी थे जिन्होंने सामाजिक, शैक्षणिक और पत्रकारिता के क्षेत्र में निभाई थी प्रमुख भूमिका

बाबू शिवप्रसाद गुप्त का आजादी से पहले काशी के सार्वजनिक जीवन में शीर्षस्थ स्थान था. बनारस के बड़े व्यापारियों में वह शामिल थे. उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किये. सामाजिक, शैक्षणिक, पत्रकारिता और आजादी के आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वहीं कांग्रेस पार्टी में उनका अहम योगदान था. जर्नलिस्ट कैफे ने काशी विद्यापीठ के राजनीति विज्ञान के  पूर्व प्रो.सतीश राय  से शिवप्रसाद गुप्त के बारे में बातचीत की.

सरस्वती और माता लक्ष्मी दोनों का रहा आशीर्वाद

प्रो.सतीश राय ने बताया कि काशी शिक्षा और संस्कृति की नगरी हैं. बनारस विद्वानों का गढ़ हमेशा से रहा है. देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान बनारस में हमेशा से जीवन व्यतीत करते आये हैं. बनारस में एक ऐसा समुदाय हमेशा से पाया जाता है जो व्यापार से भी जुड़ा रहा है और शिक्षा से भी. यानि जिसके ऊपर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त रहा. इन लोगों में बाबू शिवप्रसाद गुप्त का नाम पहले स्थान पर रहा.

काशी विद्यापीठ की स्थापना की

उन्होंने बताया कि शिवप्रसाद ने विश्व भ्रमण किया था. वहीं उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी. उन्होंने कई संस्थाओं का निर्माण काशी में किया. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय की स्थापना उनमें से प्रमुख है. वर्ष 1920 में कई गांधीवादी विचारधारा के लोगों को इससे जोड़ा गया. इसकी प्रेरणा उन्हें जापान भ्रमण के दौरान मिली थी, जहां बिना सरकारी मदद के संस्थाएं चलाई जा रहीं थी. इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने काशी में इसकी पहल की. बता दें कि महात्मा गांधी भी उसी दौरान अफ्रीका से लौटे थे. इसके बाद उन्होंने सत्याग्रह नामक जन आंदोलन की शुरुआत देशभर में की. इस दौरान उन्होंने पश्चिमी वस्त्रों के बहिष्कार का आंदोलन चलाया, साथ ही खादी वस्त्रों के प्रयोग की मुहिम चलाई. गांधी ने अंग्रेजो द्वारा चलाए जा रहे शिक्षण संस्थान का विरोध किया. वहीं इस दौरान देश में काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई.

प्रो.सतीश राय  ने बताया कि शिवप्रसाद गुप्त ने महात्मा गांधी से बातचीत कर विश्वविद्यालय की पहल को शुरु करने काम किया. महात्मा गांधी ने शिवप्रसाद गुप्त को भगवान दास से बात करने का सुझाव दिया था. इसके बाद भगवान दास को विद्यापीठ का पहला कुलपति नियुक्त किया गया. राष्ट्रपिता की प्रेरणा से शिवप्रसाद गुप्त ने इस संकल्प को पूरा किया. शुरुआत में इसकी नींव एक नर्सरी के रूप में रखी गई जहां पर स्वतंत्रता सेनानियों को तैयार करने का काम किया गया. वहीं गांधीजी की विचारधारा के प्रचार-प्रसार का काम भी किया गया. इसके साथ ही समाजवादी विचारधारा का उदय भी यहां से हुआ. देश-भर से कई विद्यार्थी, शिक्षा के लिये काशी पहुंचे. वहीं कई आचार्यों ने सरकारी नौकरी छोड़कर इस विश्वविद्यालय में शिक्षा देने का काम किया. काशी विद्यापीठ से चंद्रशेखर आजाद, लालबहादुर शास्त्री, कमलापति त्रिपाठी, रघुराज शास्त्री समेत तमाम बड़े-बड़े नेता जुड़े थे.

पत्रकारिता में भी दिया अहम योगदान

प्रो.सतीश राय  ने बताया कि शिवप्रसाद गुप्त ने राष्ट्रीय नवचेतना को जागृत करने के लिये पत्रकारिता में भी अहम योगदान दिया. पत्रकारिता के क्षेत्र में ज्ञानमंडल लिमिटेड की स्थापना की. इसमें कई अखबार एवं मैगजीन निकले. जिसमें दैनिक पत्र के रूप में आज अखबार को शुरु करने का काम किया गया. इसमें बाबू राव विष्णुराव पराड़कर और कमलापति त्रिपाठी को भी आज अखबार से जोड़ने का काम किया. इसके बाद आज अखबार ने आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

भारत माता मंदिर की नींव रखी

उन्होंने बताया कि शिवप्रसाद गुप्त जब विश्व भ्रमण के दौरान इंग्लैंड पहुंचे तब उन्होंने एक म्यूजियम में इंग्लैंड का उभरा हुआ नक्शा देखा. इससे प्रेरणा लेकर उन्होंने भारत माता का ऐसा स्वरूप गढ़ने का काम किया. उन्होंने काशी विद्यापीठ के पास भारत माता मंदिर की नींव रखी. संगमरमर से बने इस नक्शे में माउंट एवरेस्ट से लेकर समुद्र की गहराई को ध्यान में रखकर निर्माण किया गया है. इस मंदिर का 1936 में महात्मा गांधी ने उद्घाटन किया.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये भी दिया था दान

प्रो.सतीश राय के अनुसार शिवप्रसाद गुप्त का बीएचयू के निर्माण में सीधा योगदान नहीं था लेकिन उन्होंने अप्रत्याशित रूप से इसके निर्माण में मालवीयजी की मदद की थी. उनके संबंध मालवीयजी से बेहद मधुर थे. वह एक बड़े दानी भी थे. बीएचयू में गुप्त दान से लेकर अनाज की व्यवस्था शिवप्रसाद ने की. जब मालवीयजी, कोलकाता और हावड़ा में दान के सिलसिले में पहुंचे थे तो शिवप्रसाद गुप्त ने बड़े-बड़े व्यापारियों से मालवीय जी को दान दिलवाने में मदद की थी.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, परोपकारी और राष्ट्रवादी कार्यकर्ता के रूप में काम किया

बाबू शिव प्रसाद गुप्त का जन्म 28 जून, 1883 में हुआ था. वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, परोपकारी, राष्ट्रवादी कार्यकर्ता और महान द्रष्टा थे. कांग्रेस के अपने समय के बड़े नेता रहे और वह उत्तर प्रदेश के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके थे. बाबू शिवप्रसाद गुप्त का हिन्दी भाषा से भी गहरा नाता था. वह हिन्दी के प्रचारक थे. उस समय उन्होंने अपनी गाड़ी का नम्बर हिन्दी में लिखवाया था. हालांकि नियम के अनुसार अंग्रेजी में नम्बर लिखवाना अनिवार्य था. इसके बाद भी उन्होंने हिन्दी का नम्बर प्लेट नहीं हटवाया. इसके कारण उन्हें कई बार चालान भरना पड़ा. उस समय प्रति चालान 20 रुपये हुआ करता था जिसकी परवाह किये बगैर उन्होंने कई बार जुर्माना जमा किया. लेकिन हिंदी में नम्बर प्लेट नही हटाया.

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