बाबा विश्वनाथ देते हैं तारक मंत्र, जानें तिलभांडेश्वेर महादेव का पौराणिक इतिहास…
वाराणसी: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी ऐसे ही तीनों लोकों से न्यारी नहीं है. यहां पर बाबा विश्वनाथ के साथ हैं माता अन्नपूर्णा जो लोगों को अन्न प्रदान करती हैं तो वही बाबा काल भैरव काशी के कोतवाल हैं. यहां पर बाबा विश्वनाथ स्वयं लोगों को तारक मंत्र देते हैं. काशी में 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं जो स्वयंभू हैं और हर शिवलिंग का अपना महत्व है. इसमें अतिप्राचीन तिलभांडेश्वर महादेव का भी पौराणिक इतिहास है. यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है और पांडेय हवेली में स्थित है. मंदिर के गर्भगृह में बाबा का विशाल शिवलिंग विराजमान है. वैसे तो इस मंदिर में 365 दिन भक्तो की भीड़ उमड़ती है परंतु सावन में इनका दर्शन का करने का महत्व और भी बढ़ जाता है.
कैसे हुई तिलभांडेश्वर महादेव की उत्पत्ति
तिलभांडेश्वर महादेव जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है तिल. जो शिवलिंग तिल के समान बढ़ता हो वैसा इनके नाम से ही प्रतीत हो रहा है. इस पर कई जानकारों से बातचीत की गई परंतु तिलभांडेश्वर महादेव की उत्पईत्ति कब और कैसे हुई यह कोई ठीक ठीक नही बता सका. बातचीत के दौरान लोगों ने बताया कि शिवलिंग अनादिकाल से विद्यमान है. पुराणों वे अनुसार स्वंयम्भू तिलभांडेश्वर शिवलिंग महान ऋषि विभाण्ड के तपोस्थली के नाम से जाना जाता है. ऋषि विभाण्ड यहीं पर पूजन-अर्चन, अनुष्ठान, साधना करते थे. तब भगवान यहां पर स्वयं प्रकट हुए और उनसे कहा कि यब सिद्ध शिवलिंग कलयुग पर्यन्त रोज एक तिल के बराबर बढ़ता रहेगा.
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सावन के सोमवार को दर्शन-पूजन का विशेष महत्व
तिलभांडेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग का काशी खंड में भी का उल्लेख मिलता है. सोमवार और प्रदोष व्रत के दिन यहां पर दर्शन पूजन का विशेष महत्व है और इस दिन लाखों की संख्या में शिवभक्त मंदिर पहुंचने हैं और विशेष पूजन-अर्चन करते हैं. इस बाबा के साथ ही रुद्राक्ष शिवलिंग का भी दर्शन होता है. माना जाता है कि बाबा का शिवलिंग प्रतिदिन तिल के बराबर बढ़ता रहता है. इसलिए इनका नाम तिलभांडेश्वर पढ़ा. हालाँकि शिवलिंग की कितनी गहराई है वो आज तक नही पता चल पाया है. सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां विशेष झांकी सजाई जाती है. बाबा दरबार में भक्त काल सर्प दोष की शांति पूजन के लिए आते है. इस मंदिर में दर्शन पूजन करने वाले लोगों की सभी मनवांछित फल पूरे होते हैं.