Baati Chokha ने बनाई Silver Jubilee, हर साल बनाया जाएगा बाटी- चोखा Day

हर वर्ष 25 फरवरी को बाटी-चोखा दिवस मनाने का निर्णय

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varanasi: काशी की पहचान केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ही नहीं है, बल्कि यह अपने विशिष्ट व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है. खानपान की इसी विलक्षण परंपरा में बाटी-चोखा का अनूठा स्वाद एक खास जगह रखता है. शुद्ध और स्वदेशी भोजन बाटी चोखा. इस विशिष्ट स्वाद को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करता है बाटी चोखा रेस्टोरेंट, जिसने इसी लक्ष्य के साथ इसे काशी में स्थापित किया है.

क्यूं खास हैं 25 फरवरी का दिन

25 साल पहले, 25 फरवरी को तेलियाबाग में बाटी चोखा रेस्टोरेंट की शुरुआत हुई थी. इस खास दिन को यादगार बनाने के लिए, बाटी चोखा रेस्टोरेंट परिवार ने इस वर्ष 25 फरवरी को ‘बाटी चोखा दिवस’ के रूप में मनाया है. इस प्रकार, 25 फरवरी को न सिर्फ बाटी चोखा रेस्टोरेंट की स्थापना के दिन के रूप में बल्कि ‘बाटी चोखा दिवस’ के रूप में भी मनाया जाएगा.

किसकी थी ये सोच

यह बात बनारस के कुछ लोगों को बेहद खटकती थी और वे आपस में इस पर चर्चा भी करते थे, लेकिन इसका मुकाबला करने का कोई रास्ता सूझ नहीं पा रहा था. क्योंकि यह एक बड़ा जोखिम भरा कदम था. हालांकि, सन 1997 में बनारस ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के इस पौष्टिक बाटी चोखा के स्वाद को बड़े पैमाने पर पहुंचाने की जिम्मेदारी एक शख्स ने उठाई, जिसका नाम सिद्धार्थ दुबे है.

 

बाटी चोखा के स्वाद को बड़े पैमाने पर पहुंचाने की ललक

सिद्धार्थ दुबे ने तेलिया बाग में एक रेस्टोरेंट खोला, जिसका नाम रखा बाटी चोखा. शुरुआत में रेस्टोरेंट को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. बहुत से परिवार अपने बच्चों के साथ आते थे. जबकि बड़ों को बाटी चोखा का स्वाद पसंद आता था, बच्चे चाऊमीन, मोमो और चिली पनीर जैसे व्यंजन मांगते थे. अपने सिद्धांत से बाध्य होने के कारण, बाटी चोखा रेस्टोरेंट बच्चों की मांग को पूरा नहीं कर पाता था, जिससे पूरा परिवार रेस्टोरेंट छोड़कर चला जाता था. कर्मचारियों और मित्रों सभी ने सलाह दी कि कम से कम बच्चों के लिए तो पाश्चात्य भोजन का प्रबंध कर लेना चाहिए. लेकिन, सिद्धार्थ के मन में अपने बाटी चोखा के स्वाद को बड़े पैमाने पर पहुंचाने की ललक और जुनून था. इसलिए वे हर तरह की सलाह और नुकसान की अनदेखी करते हुए अपने मिशन में लगे रहे.

कब हुई बाटी चोखा की स्थापना

बाटी चोखा रेस्टोरेंट की स्थापना को 25 फरवरी 1997 को हुई थी . 25 वर्ष इसके पूरे होने पर बाटी चोखा रेस्टोरेंट एक नए मिशन के साथ 25 फरवरी को “बाटी चोखा दिवस” के रूप में है. देश में पहली बार किसी एक व्यंजन के नाम पर ऐसा दिवस मनाया जा रहा है, जिसे बड़ी मान्यता मिल रही है. इस दिन बाटी चोखा रेस्टोरेंट एक और नई पहल कर रहा है, ताकि तेज़ी से बदलते दौर में भी अगले हज़ारों वर्षों तक बाटी चोखा का स्वाद न बदले.

टाइम कैप्सूल से जिंदा रहेगा बाटी चोखा का इतिहास

रेस्टोरेंट परिसर में बने टाइम कैप्सूल को ज़मीन में गाड़ा जा रहा है. इसमें बाटी चोखा बनाने के सभी सामग्री जैसे चने का सत्तू, मिर्च का अचार, सरसों का तेल आदि को हज़ारों वर्षों तक सुरक्षित रखने की विधि से संरक्षित किया गया है. इस कैप्सूल में रेस्टोरेंट में आए ग्राहकों की टिप्पणियाँ भी लिखित रूप में संरक्षित की गई हैं.

अपनी परंपरा को संजोह कर रखने के लिए डाली गई टाइम कैप्सूल

बाटी चोखा इस नाम से आप सभी परिचित हैं ये उत्तर भारत का का एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यंजन हैं. यह बनारस के तेलियाबाघ स्थित बाटी चोखा रेस्टोरेंट जिसने 25 फरवरी,2024 को अपने 25 वर्ष पूरे कर लिए. ये ना सिर्फ यह एक रेस्टोरेंट हैं बल्कि ये एक ऐसा रेस्टोरेंट जो अपने खास माहौल की वजह से जाना जाता हैं. यह रेस्टोरेंट अपने रीति रिवाजों और परम्पराओं के लिए भी प्रचलित हैं रेस्टोरेंट के संचालक सिद्धार्थ का मानना है कि लोगों को आधुनिकता के साथ अपनी परम्पराओं और रीति रिवाजों से जुड़ा रहना चाहिए.

महिला सशक्तिकरण को देता है बढ़ावा

 

यह भारत का पहला ऐसा रेस्टोरेंट है जो महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करता है, क्योंकि यहां के सह कर्मियों में ज्यादतर संख्या महिलाओं की है. मान्यता है कि गांव की महिलाओं के हाथ में जो स्वाद होता है वो आजकल के फैंसी बाबरची के हाथों में नहीं होता.

अमीन सयानी ने गाया था रेस्टोरेंट के लिए गीत

बता दें कि बाटी-चोखा रेस्टोरेंट में आने वाले लोगों को बिलकुल घर के अलावा गंवई माहौल मिलता हैं. यहां की सजावट पुराने समय के गांव के संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. जहां आज कल के फ़ैन्सी रेस्टोरेंट वेस्टर्न संस्कृति को अपना रहे हैं वहां यह रेस्टोरेंट आज भी गांव की पुरानी परम्पराओं को जिंदा रखे हुए हैं. यहां आपको मशहूर रेडियो उद्घोषक अमीन सयानी का गाया हुआ बिनाका गीत माला सुनने को मिलता है जो कि उन्होंने सिर्फ इस रेस्टोरेंट के लिए लिखा व गाया था.

सबके संग एक समान होता है व्यवहार

यहाँ पर लोग जूते चप्पल बाहर उतारकर जमीन पर बैठकर साथ मिलकर भोजन करते हैं. यहां पर जाति, धर्म, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब नहीं देखा जाता. सबको एक समान रूप से व्यवहार किया जाता हैं. यहां का बाटी-चोखा खाने के लिए लोग देश के विभिन्न हिस्सों समेत विदेश से आते हैं.

बाटी चोखा को पहले माना जाता था गरीबों का भोजन

बाटी चोखा बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होने के बावजूद लंबे समय तक गरीबों के भोजन के रूप में ही जाना जाता रहा. यह व्यंजन केवल ठेलों और खोमचों तक सीमित रह गया था और बदलते रेस्टोरेंट व पांच सितारा होटलों के दौर में इसे वहां जगह नहीं मिली. वहीं, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक विदेशी व्यंजन जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर, मोमो आदि को इन रेस्टोरेंट व होटलों में बड़ी जगह मिली. लेकिन बनारस के बाटी-चोखा ने इन सभी मिथकों को छोड़ इसे पौष्टिक, सात्विक समेत आधुनिक भोजन की श्रेणी में ला दिया है.

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