ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाती है अपरा एकादशी, 15 मई को रखा जाएगा व्रत
लखनऊ : हिंदू सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। हर साल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। जिसमें हर महीने दो एकादशी होती हैं। इन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के आधार में बांटा गया है। सभी एकादशी तिथि का अपना महत्व है। इनमें ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली एकादशी को विशेष फलदायी बताया गया है। हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली अपरा एकादशी 15 मई को है। अपरा एकादशी व्रत 15 मई की रात 2.46 बजे से 16 मई की रात 1 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के चलते अपरा एकादशी का व्रत 15 मई को रखा जाएगा।
अपरा एकादशी ब्रह्म हत्या से दिलाती है मुक्ति
अपरा एकादशी वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे अचला एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही व्रत उपवास भी रखा जाता है। इस एकादशी को करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है। यह व्रत ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति भी दिलाता है। इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर और गंगाजल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
अपरा एकादशी का पुराणों में महत्व
पुराणों में अपरा एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत करने से गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। घर धन-धान्य से संपन्न बनता है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्य भवसागर तर जाता है और उसे प्रेत योनि के कष्ट नहीं भुगतने पड़ते हैं।
अपरा एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका एक छोटा भाई था जिसका नाम वज्रध्वज था। वज्रध्वज अपने बड़े भाई के प्रति द्वेष की भावना रखता था। अवसरवादी वज्रध्वज ने एक दिन राजा की हत्या कर दी और उसके शव को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। माना जाता है कि अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी।
राजा धर्मात्मा की आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को परेशान करती थी। एक बार एक ऋषि जब इस रास्ते से गुजर रहे थे, तब उन्होंने राजा की प्रेतआत्मा को देखा। अपने तपोबल से उन्होंने उनके प्रेत बनने का कारण जान लिया। ऋषि ने राजा की प्रेतात्मा को पीपल के पेड़ से नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया।
राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर इसका पुण्य प्रेत को दे दिया। व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा प्रेतयोनि से मुक्त हो गई और वह स्वर्ग चला गया।
ऐसे करें अपरा एकादशी व्रत-पूजा
अपरा एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान किया जाता है। इसके पश्चात पीले रंग के स्वच्छ पहनना इस दिन बेहद शुभ मानते हैं। भक्त विष्णु भगवान के समक्ष मंदिर में दीप प्रज्वलित करते हैं। इसके अलावा गंगा जल, पुष्प और तुलसी दल अर्पित किया जाता है। भगवान विष्णु की आरती होती है। भगवान विष्णु को भोग में सात्विक चीजें चढ़ाई जाती हैं और पूजा के पश्चात भोग का वितरण होता है। भगवान विष्णु की आरती गाई जाती है और ध्यान भी किया जाता है।
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