क्‍यों मोदी काशी से हटना चाहते हैं?

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ऐसा क्‍या हो गया कि भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह को यह स्‍पष्‍ट करना पड़ा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस से ही 2019 का चुनाव लड़ेंगे किसी और जगह से नहीं। इस बारे में चर्चाएं हैं कि थमने का नाम नहीं ले रही हैं।

इसके पीछे ठोस वजह

लोकसभा के गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों में जबसे भाजपा की हार हुई है यह चर्चा तेज हुई है।
लोगबाग इसके कारण भी गिनाते हैं कि जो वादे 2014 के लोकसभा चुनावों में किये गये थे उनमें से तीस प्रतिशत पर भी बीते चार सालों में अमल नहीं हुआ।

ये वादे थे-

– स्मार्ट सिटी योजना-शहर को खास बनाने के लिए – ऊर्जा गंगा-पाइप लाइन के जरिये घरों तक गैस पहुंचाने के लिए
– जल परिवहन-बनारस से हल्दिया तक
– हृदय योजना-शहर के ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों के कायाकल्प के लिए
– अमृत योजना-सभी के पेयजल के लिए
– आईपीडीएस-बिजली के तारों को भूमिगत करने के लिए
– ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर-बुनकरों के लिए
– सड़कों का जाल-बनारस के आसपास – महामना एक्सप्रेस-बनारस से दिल्ली
– मालवीय चेयर फॉर रेलवे टेक्नोलॉजी
– महामना मालवीय कैंसर सेंटर बीएचयू
– सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल बीएचयू
इन वादों के लागू न हो पाने की स्थिति में यह कयास जोर पकड़ रहा है कि दरअसल वादे तो बड़े-बड़े किये गये थे पर वे जमीन पर कम ही दिखाई पड़े। इस ‘कोढ़ में खाज’ का काम किया है बनारस के घाटों के किनारे बसे अनेक मकानों को तोड़कर कारीडोर बनाने के प्रशासन के प्रयासों ने, जिसका इन दिनों जमकर विरोध हो रहा है।

बात सामान्‍य कतई नहीं

ऐसी कयासबाजियों के बीच अमित शाह का उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आकर हाल में यह कहना कि पीएम मोदी के किसी और सीट से चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही नहीं है, सामान्‍य बात नहीं मानी जा सकती।

एसपी-बीएसपी के गठजोड़ से हिली भाजपा

दरअसल उत्‍तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी के गठजोड़ के चलते जब से लोकसभा के दो उपचुनावों के नतीजे आये हैं, भाजपा अंदर से हिली हुई सी जान पड़ने लगी है। इसलिए अमित शाह को जगह-जगह जाकर यह कहना पड़ रहा है कि एक बार फिर से हम यूपी में परचम लहराएंगे।

इतनी जल्‍दी क्‍यों खोले पत्‍ते?

राजनीतिक जानकार पूछते हैं कि यह कमाल की बात है कि अमित शाह इतनी जल्‍दी और इतना पहले अपने पत्ते कभी नहीं खोलते हैं। अगर अभी से ये बनारस की बात कह रहे हैं तो कोई बात जरूर होगी। इसका मतलब है कि 180 डिग्री वाली कोई जगह अर्थात् गुजरात का ही कोई स्थान भी चयनित कर लिया गया होगा।

क्‍या पटना जाने का इरादा है?

बनारस यानी काशी में एक कहावत आम है- “रांड़, सांढ, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे सो सेवें काशी। कहावत का सार है कि अगर काशी का वासी बनना है तो चारों से बच-बचा कर रहना होगा। जब नरेंद्र मोदी 2014 में काशी से चुनाव लड़ने आये थे, उस समय उन्‍होंने कहा था- “गंगा ने बुलाया है”। हालत यह है कि काशीवासियों का मानना है कि पीएम मोदी ने मां गंगा से पंगा ले लिया है।

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अगला चुनाव लड़ना उनके लिए अनिष्‍टकारी होगा क्‍योंकि उन्‍होंने शपथ ली थी कि बनारस चकाचक होगा और मां गंगा निर्मल हो जायेंगी। लेकिन नमामि गंगे योजना का अता पता नहीं है। आश्वासन का 30 प्रतिशत काम भी पूरा नहीं किया गया है।

सपा-बसपा का गठजोड़ बना रहा तो दिक्‍कत आ सकती है

काशी में कई लोग यह कहते मिलते हैं कि अगर सपा चीफ अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती का गठबंधन 2019 लोकसभा चुनाव तक बरकरार रहा तो पीएम के लिए बनारस के बने बनाये रस का स्वाद लेना कठिन हो सकता है।

गुजरात छोड़ने का फैसला सही नहीं

राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि हाल में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव के परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी को मोदी के वापस गुजरात जाने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है. पार्टी जिस चेहरे को सामने रखकर अपना हर चुनाव लड़ रही है और जीत का दावा कर रही है, उसी के गढ़ में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन ने बीजेपी को अपनी समीक्षा करने को मजबूर कर दिया है। नरेन्द्र मोदी या बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कभी नहीं चाहेंगे कि गुजरात उनके हाथ से फिसल जाए। इसलिए फिलहाल पार्टी के सबसे कद्दावर नेता नरेन्द्र मोदी को अहमदाबाद से भी चुनाव लड़ाया जा सकता है।

बिहार से भी चुनाव लड़ने की चर्चा तेज

दूसरी ओर मोदी के बिहार से चुनाव लड़ने की भी एक बड़ी वजह नजर आती है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विजय रथ लेकर निकली भारतीय जनता पार्टी सीधे तौर पर बिहार में जीत हासिल नहीं कर सकी है। यहां अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना उसका पुराना सपना है। इस सपने का पूरा होना इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि यहां 40 लोकसभा सीटें हैं।

यह जरूर है कि वर्तमान में बीजेपी के पास 31 सीटें हैं लेकिन आगामी चुनाव में भी वहीं जादू चल पायेगा जो 2014 की चुनाव में चला था, इसमें संशय है। इसलिए, बिहार में विधान सभा और लोकसभा सीटों को अपनी झोली में डालने के लिए बीजेपी नरेन्द्र मोदी पर बिहार वाला दांव खेल सकती है।

2014 में भी दो जगह से मोदी चुनाव लड़े थे

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने बनारस और वडोदरा सीट से चुनाव लड़ा था। वडोदरा सीट को छोड़कर बनारस से सांसद बने रहना तय किया। राजनीति के पंडितों की मानें तो बीजेपी के पीएम उम्‍मीवार के तौर पर नरेन्द्र मोदी की बनारस से चुनाव लड़ने की यही बड़ी वजह रही।

जैसी रणनीति बनाई परिणाम वैसा ही आया

भाजपा काशी शहर से पूर्वांचल की सीटों को प्रभावित करना चाहती थी। हुआ भी बिल्कुल वैसा ही। यूपी की 80 सीटों में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऐसी-ऐसी सीटें मिलीं जिन पर जीत की कोई उम्मीद नहीं थी।
बनारस की सीट का महत्‍व

बीजेपी जानती है कि बनारस की सीट से चुनाव लडऩे का मतलब है कि यूपी के साथ बिहार को भी साधा जा सकता है। पीएम मोदी ने फ्रांस व जर्मनी के राष्ट्रपतियों को काशी लाकर भविष्य की राजनीति का रास्ता साफ किया है। समय आने पर बीजेपी अब कहेगी कि गंगा इतनी साफ हो रही है कि बड़े यूरोपियन देशों के राष्ट्रपति भी यहां पर नौका विहार करने आते हैं। डीरेका में हुई सभा में पीएम मोदी ने अब तक किये गये अपने विकास कार्यों को गिनवाया है साथ ही काशी की जनता को बताया कि कैसे आठ सौ करोड़ की योजना से शहर की तस्वीर पूरी तरह बदल जायेगी। इससे यह संकेत देने की कोशिश की गयी कि वे बनारस छोड़कर कहीं नहीं जा रहे, और शायद शाह का बयान इसी संदर्भ में आया होगा।
बहरहाल कयास तो कयास है। लोकसभा चुनावों में अभी लगभग एक साल की देरी है। देखना दिलचस्‍प होगा कि तबतक मोदी काशी की सीट पर ही बने रहते हैं या किसी और सीट की राह आसान करने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।

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