वाराणसी: रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के ठाठ भी लाजवाब है. इस लीला में हर प्रसंग के बाद प्रभु राम, लक्ष्मण और माता जानकी कांधे पर सवार होकर चल पड़ती है. फिर नए जगह पर लीला के अगले प्रसंग का मंचन होता है. खास बात यह है कि प्रभु राम और लक्ष्मण के पीछे भक्त और काशी नरेश भी हाथी पर सवार होकर चल पड़ते है. यह लीला रामनगर में पांच किलोमीटर के दायरे में घूम घूम कर होती है. नेमी लोग संपूर्ण लीला स्थल पर घूम-घूम कर लीला देखते हैं.
अलग- अलग स्थानों में होती है लीला
हर एक दिन 3 से 4 अलग अलग जगहों पर इस लीला के अलग अलग प्रसंगों का मंचन होता है. बता दे कि यह लीला 30 दिनों तक चलता है. लीला के मचंन के शुरुआत से पहले चुप रहो….सावधान की आवाज भी सुनाई देती है. फिर हर तरह सन्नाटा छा जाता है और फिर तेज आवाज में रामयमी के जरिए लीला का प्रसंग सुनाया जाता है. जिसे लीला स्थल पर रहने वाले ज्यादातर नेमी रामायण पाठ का वाचन साथ साथ करते हैं.
हर लीला के लिए अलग स्थान
इस विश्व प्रसिद्ध और ऐतिहासिक रामलीला के लिए रामनगर में अयोध्यापुरी, पंचवटी, रामबाग, जनकपुरी, चित्रकूट, अवध, भारद्वाज आश्रम, रामेश्वर, लंका, पम्पासर, सुबेल गिरी, निषाद आश्रम जैसे कई स्थान है. जहां अलग अलग दिन अलग अलग लीलाओं का मंचन होता है. जो अपने आप में अद्भुत और अलौकिक है.
अद्भुत और अलौकिक लीला का होता है मंचन
लीला देखने वाले आए लोग बताते हैं कि रामनगर की रामलीला बेहद ही अद्भुत और अलौकिक होती है. आज भी लोगों का इस लीला के प्रति इतना आस्था और विश्वास है कि इस लीला में आज भी प्रभु श्री राम का दिव्या और अलौकिक साक्षात दर्शन होता है, इसलिए वो हर दिन इस लीला को देखने यहां आते है. वहीं अन्य लीला प्रेमी (नेमी) ने बताया कि उन्होंने ऐसी अनोखी और ऐतिहासिक लीला पहले कभी नहीं देखी है. पूरे विश्व में ऐसी लीला और कहीं नहीं होती है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के जो लीला प्रेमी है जो नेमी है वह भी अनोखे और अलग तरह के होते हैं.
अद्भुत लीला इस बार 16 अक्टूबर तक चलेगी
बता दें कि अनंत चतुर्दशी यानी 17 सितंबर से इस बार लीला की शुरुआत हुई है. जो 16 अक्टूबर अक्टूबर तक चलेगा. इस लीला को निहारने हर दिन काशी नरेश हाथी पर सवार होकर आते है. और विभिन्न स्थानों पर घूम-घूम कर लीला देखते हैं. राजा रामचंद्र, लक्ष्मण और मां सीता का विधि विधान के साथ भव्य आरती की जाती है. और यह आरती अपने आप में बहुत ही भब्य और अलौकिक होती है. इस आरती को देखने के लिए देसी नहीं विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं. आरती देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं. लोगों की ऐसी भीड़ रहती है कि तिल रखने की भी जगह नहीं होती.