दूल्हा बने चारो भाई और बाराती बनी समूची अयोध्या
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का छठां दिन
वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में आज रविवार को तो जनकपुर और अयोध्या दोनों पर खुशियों की बरसात हो रही थी. जनकपुर जहां सीता राम के विवाह की तैयारियों में मगन था तो अयोध्या बारात लेकर जनकपुर पहुंचने की खुशी से लबरेज थी. बारात लेकर चलने की जल्दी सबको थी. चारों भाई जब दूल्हा बनकर जनकपुर पहुंचे तो यूं लगा कि जैसे देवलोक धरती पर उतर आया हो. रामलीला के छठें दिन खुशी से सराबोर माहौल में श्रीराम विवाह का प्रसंग मंचित किया गया. लीला के इस प्रसंग के साथ पूरा वातावरण श्रद्धा और शनिवार की लीला को विश्राम दिये जाने के बाद रविवार को लीला शुरू ही इस प्रसंग के साथ हुई. राजा जनक के दूतों ने अयोध्या पहुंचकर राजा दशरथ को जनक जी का पत्र दिया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. उन्होंने गुरु वशिष्ठ, भरत और अपनी रानियों को जनक का पत्र पढ़कर सुनाया.
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निमंत्रण मिलते ही बाराती बनकर चल पड़ी अयोध्या
पत्र में बारात लेकर आने का निमंत्रण के साथ धनुष यज्ञ का वृतांत था. राजा दशरथ भरत को बारात की तैयारी करने को कहते हैं. सभी बाराती बनकर श्रीराम के विवाह के लिए चल पड़ते हैं. हाथी, घोड़े, रथ और गाजे-बाजे के साथ बारात जनकपुर पहुंचती है. राजा जनक बारात का आतिथ्य सत्कार करते हैं और जनवासे में ठहराते हैं. राम और लक्ष्मण भी वहां पहुंच जाते हैं. इसके बाद चारों भाई दूल्हा बन कर घोड़े पर सवार होकर जनकपुर पहुंचते हैं, जहां महिलाएं उनका परिछन करती है. ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा जी लग्न पत्रिका नारदजी से जनक के पास भिजवाते हैं. विवाह का मुहूर्त होने पर जनक अपने दूत को भेजकर राजा दशरथ को विवाह मंडप में बुलवाते हैं. गुरु वशिष्ट के साथ सभी विवाह मंडप में गए. यह देख देवता पुष्प वर्षा करते हैं. तभी वहां शिव जी पार्वती जी के साथ बैल पर सवार होकर डमरू बजाते हुए पहुंचे. चारों ओर हर-हर महादेव के उद्घोष से वातावरण शिवमय हो जाता है. भगवान शिव ने सीता राम के विवाह को जगत के लिए कल्याणकारी बताया. देवता श्रीराम की जय जयकार करने लगे.
सास सुनयना दामाद श्रीराम के चरण को धोकर नेत्रों से लगाया
गुरु वशिष्ठ कन्या को विवाह मंडप में बुलाने के लिए कहते हैं. मंडप में सभी अपने आसन पर बैठते हैं, उधर जनक की पत्नी सुनयना चांदी के कलश में श्रीराम का पांव धोकर पांच बार अपने नेत्रों से लगाती हैं. सबसे पहले विधि विधान से श्रीराम सीता का विवाह होता है. वशिष्ठ की आज्ञा से मांडवी, उर्मिला एंव श्रुतकीर्ति तीनों कुंवारियों को मंडप में बुलाया गया. उनका भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन,के साथ विवाह हुआ. राजा जनक दशरथ से कहते हैं कि हम सब प्रकार से संतुष्ट हैं. सखियां दूल्हा-दुल्हन को कोहबर में ले जाती हैं. वहां राम की आरती उतारती हैं अंत में वर को जनवासे में भेज दिया जाता है. देवता जय जयकार करते हैं. इसके बाद आरती के साथ आज की लीला को विश्राम दिया जाता है.
“का हो फलाने प्रभु के बारात में चलत हऊवा न?
वाराणसी में जग विख्यात रामनगर की रामलीला यूं तो हर चीज़ में ख़ास होती ही है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत इसका लोगों से आत्मिक और भावनात्मक जुड़ाव होता है. लीला का एक-एक प्रसंग लोगों की भावनाओं के साथ ऐसा जुड़ जाता है कि लोग जैसे त्रेता युग को ही जीने लगते हैं. प्रभु श्री राम के जीवन चरित्र को आंखों के सामने घटित होते देखा, ये भी उन्हीं के अनुरूप अपने प्रतिक्रिया देने लगते हैं. ऐसा ही कुछ रविवार की लीला में देखने को मिला. आज प्रभु की बारात निकालनी थी. न किसी को बारात में चलने का न्योता मिला, न किसी ने दिया गया. फिर भी हजारों बराती इस बारात में शामिल होने के लिए उमड़े थे. नित्य लीला प्रेमियों की तो बात ही निराली थी. भगवान श्री राम के बारात में शामिल होने के लिए वह आज खास तैयारी करके आए थे, जैसे उन्हीं के घर की बारात हो. एकदम नए कपड़े, खास तरह का इत्र, माथे पर चंदन की खास अदाकारी वाला लेप, जो भी राह में मिला उसे इत्र लगाने के बाद पूछना कि “का हो फलाने प्रभु के बारात में चलत हऊवा न? चला ई मौका जीवन में फिर कभी न मिली. यही हाल पूरे रामनगर का था. सब एक-दूसरे से यह जरूर पूछते फिरे कि बारात में चल रहे हैं ना? देखते देखते पूरा नगर बाराती बन गया. आम हिंदू परिवारों में जो-जो वैवाहिक रस्में होती है, सब श्री राम विवाह में निभाई गई. जनकपुर से थोड़ी दूर जनवासा बना था. पूरी तरह दूल्हे के भेष में मऊर लगाकर चारों भाई बैंड बाजे के साथ घोड़े पर सवार होकर जनकपुर पहुंचे. जहां दरवाजे पर परिछन, द्वारपूजा आदि रस्में निभाई गई. लीला प्रेमियों के लिए यह अविस्मरणीय नजारा था. ब्रह्मा और माया के मिलन का ऐसा सीधा साक्षात्कार मिलना अन्यत्र कहीं संभव नहीं है.
राज्यपाल के चलते आधे घण्टे देर से शुरू हुई रामलीला
विश्व प्रसिद्ध रामनगर में यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के रामनगर किले में आगमन के चलते रामनगर की रामलीला रविवार को आधे घण्टे देर से शुरू हुई. राज्यपाल के किले में होने के चलते कुंवर अनंत नारायण सिंह व्यस्त थे. लिहाजा उनकी शाही सवारी समय से नही निकल सकी. राजपरिवार के एक रिश्तेदार ने साढ़े पांच बजे पहुंच कर लीला शुरू कराई. कुंवर अनंत नारायण सिंह संध्या पूजन के बाद सीधे जनकपुर पहुंच कर लीला में शामिल हुए.
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