अक्षय पुण्य फल की कामना के संग मनाया जाने वाला पर्व अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर्ष, उमंग एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। अक्षय नवमी को आंवला नवमी या कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय नवमी जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इस दिन किए गए पुण्य और पाप, शुभ-अशुभ समस्त कार्यों का फल अक्षय (स्थायी) हो जाता है। तीन वर्ष तक लगातार अक्षय नवमी का व्रत-उपवास एवं पूजा करने से अभीष्ट की प्राप्ति बतलाई गई है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार यह पर्व 23 नवम्बर, सोमवार को मनाया जायेगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 22 नवम्बर, रविवार को रात्रि 10 बजकर 52 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 23 नवम्बर, सोमवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगी।
अक्षय नवमी का व्रत 23 नवम्बर, सोमवार को रखा जायेगा। अक्षय नवमी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण-श्रीविष्ण की पूजा अर्चना तथा आंवले के वक्ष के समीप या नीचे बैठकर भोजन करने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है।
पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् अक्षय नवमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा की जाती है।
आज के दिन भगवान श्रीविष्णु का प्रिय मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करने पर भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर भक्त को उसकी अभिलाषा-पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं।
पूजा का विधान-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पर्व पर आंवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय फल (कभी न खत्म होनेवाले पुण्यफल) की प्राप्ति होती है। साथ ही सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है।
इस पर्व पर आंवले के वृक्ष की पूजा पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से की जाती है। पूजन करने के पश्चात् वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करनी चाहिए। कुष्माण्ड (कोहड़ा) का दान भी किया जाता है।
आंवले के वृक्ष के समीप या नीचे ब्राह्मण को सात्विक भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए। कोहड़े में अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोना, चांदी व नगद द्रव्य रखकर भूदेव कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को दान देने का भी विधान है।
इसके अलावा अन्न, घी एवं अन्य जरूरी वस्तुओं का दान देना भी अक्षय फल की प्राप्ति कराता है। आज के दिन गोदान करने की भी महिमा है।
धार्मिक-पौराणिक मान्यता-
इस दिन किए गए दान से जीवन में जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों का शमन हो जाता है। इस दिन पितृलोक में विराजित पितरों को शीत (ठण्ड) से बचाने के लिए संकल्प करके भूदेव (ब्राह्मण) को ऊनी वस्त्र, कम्बल देने की शास्त्रीय मान्यता है।
ज्योर्तिविद् विमल जैन के अनुसार आंवले के पूजन के लिए यदि आंवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो मिट्टी के नए गमले में आंवले का पौधा लगाकर उसकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए जिससे जीवन में कल्याण होता रहे।
आंवले के पूजन से सुहागिन महिलाओं का सौभाग्य अखण्ड रहता है। आंवले के वृक्ष के पूजन से सन्तान की प्राप्ति भी बतलाई गई है। आंवला नवमी पर्व पर तन-मन-धन से पूर्णतया शुचिता के साथ व्रत आदि करना चाहिए।
यदि तीन वर्ष तक लगातार व्रत करें तो मनोकामना की पूर्ति के साथ अभीष्ट की प्राप्ति भी होती है। व्रतकर्ता को व्यर्थ की वार्तालाप से बचना चाहिए तथा दिन में शयन नहीं करना चाहिए। साथ ही मन-वचन-कर्म से शुभ कृत्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
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