‘बीजेपी को टैगोर का राष्ट्रवाद पर लिखा निबंध पढ़ना चाहिए’

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त्रिपुरा में बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा लेनिन की मूर्तियां तोड़े जाने के बाद से देश भर में हंगामा मचा हुआ है। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में इस बात पर लोग अपनी तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। इसी मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश(Akhilesh Yadav) यादव ने बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला है। अखिलेश यादव ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 48 देश घूम आए हैं लेकिन वो एक देश बता दें जहां पर इस तरह होती हैं।

‘बीजेपी को टैगोर का राष्ट्रवाद पर लिखा निबंध पढ़ना चाहिए’

सपा प्रमुख ने पूछा है कि आकिर किस देश में लोग जाति के नाम पर लड़ते हैं और इस तरह से मूर्तियां तोड़ते हैं। अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) ने ये बयान हिंदी न्यूज़ चैनल के साथ इंटरव्यू में दिया। मूर्तियों को तोड़े जाने पर अखिलेश ने कहा ‘ये व्यवहार किसी भी राजनीतिक दल या फिर उसके कार्यकर्ताओं का ठीक नहीं है। मैं समझता हूं कि खासतौर पर बीजेपी के लोगों को रविंद्र नाथ टैगोर का वो निबंध जरूर पढ़ना चाहिए जो उन्होंने राष्ट्रवाद पर लिखा है। अगर वो लोग उसे पढ़ लेंगे तो शायद थोड़ी बहुत समझ आ जाएगी। ये लोग जिस तरह का जहर घोलना चाहते हैं उससे देश का नुकसान होगा, समाज का नुकसान होगा।’

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’48 देश घूमने वाले पीएम बताएं किस देश जाति को लेकर होता है झगड़ा’

पीएम मोदी पर हमला बोलते हुए अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) ने कहा कि, ‘आप एक तरफ तो 48 देश घूम आए, जिन 48 देशों में आप गए हैं उनमें कोई एक देश भी ऐसा बता दो जहां जाति को लेकर झगड़ा हो। कहां मूर्तियां गिर रही हैं, कहां लोग बेरोजगारी के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। अरे 48 देश घूम कर आए हैं..अपने लोगों को समझाइए कि इन 48 देशो में भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पूजा जाता है।

‘काम में वो हार गए हैं, तभी तो वो कह रहे हैं कि क्या सांप क्या छछुंदर’

अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) ने ये भी कहा कि, ‘ये हमारा देश हिंसा वाला देश नहीं है। अगर गांधी जी के नारे को दुनिया पहचान रही है तो थोड़ी बहुत समझ बीजेपी और उनके कार्यक्रताओं को होनी चाहिए। अगर नहीं है तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दोबारा पढ़ें और रविंदर नाथ टैगोर को दोबारा पढ़ें, शायद पढ़ने से उन्हें तोड़ी बहुत समझ आ जाएगी। शायद वो भाषा बिगड़ी हुई इसलिए है कि शायद वो जानते हैं कि जमीन पर उनकी हालत बिगड़ी हुई है। काम में वो हार गए हैं, तभी तो वो कह रहे हैं कि क्या सांप क्या छछुंदर। वो लोग हम पर उंगलियां उठा रहे हैं लेकिन अपने गिरेबान में नहीं झांक रहे हैं।’

जनसत्ता

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