साइकिल की सवारी करेंगे जगदंबिका पाल !
सोशल मीडिया में समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की वायरल हो रही फोटो ने सियासी भूचाल ला दिया है। ये फोटो है भारतीय जनता पार्टी के सांसद जगदंबिका पाल की। सोशल मीडिया में वायरल हो रही इस फोटो में अखिलेश यादव और भाजपा के सांसद जगदंबिका पाल एक अन्य शख्स के साथ बैठे नजर आ रहे हैं।
यकीन नहीं हुआ न, पर ये सच है। ये सवाल यकीनन आपके मन में भी उठ रहे होंगे। जिस पार्टी को अखिलेश यादव कोसते नहीं थकते थे, उसी पार्टी के सांसद के साथ चाय पीते नजर आ रहे हैं। हालांकि, किसी दूसरे दल या पार्टी के नेताओं के साथ किसी के मिलने और बात करने की मनाही नहीं है। लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव की नजदीकी और किसी विपक्षी से मुलाकात क्या इशारे कर रही है….ये तो हर सियासी शख्सियत वाला व्यक्ति देख कर अंदाजा लगा सकता है। खैर, अखिलेश यादव और जगदंबिका पाल की ये मुलाकात और दोनों के बीच हुई बातचीत अभी पर्दे के पीछे ही है। वायरल हो रही इस फोटो ने सियासी हलचल मचा दी है। जो भी देख रहा है हैरत में पड़ जा रहा है।
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आपको बता दें कि जगदंबिका पाल डुमरियागंज सीट से सांसद हैं। जगदंबिका पाल भाजपा के टिकट पर 2014 में चुनकर संसद पहुंचे थे। बताया जा रहा है कि क्षेत्र में जगदंबिका पाल से कार्य़कर्ता और जनता दोनों ही नाराज हैं। ऐसे में 2019 में संभव है कि जगदंबिका पाल को भाजपा टिकट भी न दे। …शायद यही वजह है कि जगदंबिका पाल दूसरों के दरवाजों पर दस्तक देते नजर आ रहे हैं।
खतरे में है टिकट
जगदंबिका पाल का राजनीतिक सफर हमेशा से उतार चढ़ाव भरा रहा है।संसदीय क्षेत्र से जगदंबिका पाल की साख पहले से ही कमजोर है और डूबते के लिए तो तिनके का सहारा ही काफी है। शायद यही वजह है कि जगदंबिका पाल सपा की ओर झुकते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही साफ कर चुके हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत पार्टी है मगर राज्य में इसका अस्तित्व अलग है।
कांग्रेस में रह चुके हैं जगदंबिका पाल
इसी सीट से पाल 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे। 2014 में पाल को भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ना पड़ा। उतार-चढ़ाव भरे राजनीतिक सफर में पाल के सारे सपने यहां भी चकनाचूर हो गए। इसके बाद पाल भाजपा में शामिल हो गए।
2004 में उन्हें डुमरियागंज संसदीय सीट से टिकट तब मिला जब इस सीट से कांग्रेस लगभग समाप्त हो चुकी थी और इसके उम्मीदवार 40 हजार वोट में सिमट गए थे। 2004 में पाल चुनाव हार जरूर गए थे लेकिन कांग्रेस का ग्राफ पौने दो लाख तक पंहुच गया था और वह 2009 में वे चुनाव जीतने में सफल हुए। अब जैसी की चर्चा है तो ऐसा लगता है कि पाल को फिर विपरीत परिस्थिति में राजनीति में अपनी नई राह बनानी पड़ सकती है।
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