‘RAW’ को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले IPS ‘काव’ सिर्फ एजेंट नहीं थे
‘पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है’। इस कहावत को साकार करने वाले शख्स की कहानी जानकार आप भारतीय होने पर गर्व करेंगे कि इस देश की मिट्टी ने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया है। भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी रॉ पूरी दुनिया में अपने एक्शन प्लान के कारण जानी जाती है। लेकिन भारतीय सुरक्षा एजेंसी रॉ क्या है, कब और क्यों इसकी शुरुआत हुई। इन सभी प्रश्नों के उत्तर बहुत ही कम लोगों के पास हैं। आज हम आपको भारत के एक ऐसे जांबाज नायक के बारे में बताएंगे जिन्हें रॉ की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
रॉ देश की सबसे विश्वसनीय एजेंसी मानी जाती है
आज भारतीय सुरक्षा एजेंसी रॉ जिस सशक्त मुकाम पर है उसे वहां तक ले जाने में रामेश्वरनाथ काव की भूमिका सबसे अहम है। भारत के सबसे जांबाज जासूसों में उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है, क्योंकि उनके प्रयासों के कारण ही आज रॉ देश की सबसे विश्वसनीय एजेंसी मानी जाती है।
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रामेश्वरनाथ काव का जन्म 1918 में बनारस के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद यूनिर्वसिटी से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। 1939 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गये। साल 1947 में भारत की आजादी के थोड़े समय पहले उन्हें डायरेक्टोरेट ऑफ इंटेलिजेंस ब्यूरो के साथ काम करने का अवसर मिला। यहां से काम करते हुए उन्होंने अपने स्वभाव से पूरी दुनिया में एक अलग जगह बना ली।
जब साल 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद भारत को अपनी सुरक्षा मजबूत करने के उदे्श्य से रियलटाइम फॉरेन इंटेलिजेंस की जरुरत महसूस हुई तो ऐसे में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के अलावा एक दूसरी विंग को भी शुरु करने पर विचार किया। साल 1968 में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग अर्थात रॉ की नींव रखी गई।
राजीव गांधी के सिक्योरिटी एडवाइजर के पद पर रहे
विंग की कमान काव के हाथों में सौंप दी गई। साथ ही वे भारत सरकार के कैबिनेट सेक्रेटेरियेट में सेक्रेटरी भी रहे। काव ने इजरायल की इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद के साथ अच्छे संबध बनाए। भारत में उस दौर में इजरायल के साथ किसी भी तरह के संबध को बड़ी बात माना जाता था। काव जवाहर लाल नेहरु के पर्सनल सिक्योरिटी चीफ और राजीव गांधी के सिक्योरिटी एडवाइजर के पद पर रहे। काव ने रॉ प्रमुख रहते हुए कई बार देश के लिए जोखिमों को हंसते-हंसते उठाया। रामेश्वरनाथ काव 20 जनवरी 2002 को दुनिया को अलविदा कह गए।
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