मुख्यमंत्री शिवराज उपवास शुरू करने दशहरा मैदान पहुंचे…
मध्य प्रदेश में शांति बहाली के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज (शनिवार) से अनिश्चितकालीन उपवास शुरू करने के लिए भेल के दशहरा मैदान में पहुंच गए है। वे यहीं से सरकार भी चलाएंगे।
ज्ञात हो कि राज्य के किसान एक जून से कर्ज माफी और फसल के उचित दाम की मांग को लेकर एक जून से आंदोलनरत हैं। इस आंदोलन का आज अंतिम दिन है। बीते नौ दिनों के दौरान मालवा निमाड़ क्षेत्र में हिंसा और आगजनी हुई। मंदसौर में तो पुलिस की गोली और पिटाई से छह किसानों की मौत हो चुकी है और वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस आंदोलन की आग शुक्रवार को भोपाल तक पहुंच गई।
मुख्यमंत्री चौहान ने खुले तौर पर किसान और आमजनों से चर्चा के लिए सत्याग्रह का रास्ता अपनाया है। वह दशहरा मैदान पहुंच चुके हैं और उन्होंने वहां मौजूद अपनी केबिनेट और संगठन के नेताओं से चर्चा की। यहां मौजूद पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोषी ने चौहान का तिलक करके उन्हें शुभकामनाएं दीं।
उपवास के दौरान राज्य सरकार भी बल्लभ भवन से नहीं दशहरा मैदान से चलेगी। इस बात का चौहान ने शुक्रवार को ऐलान किया था। मुख्यमंत्री की उपवास की घोषणा के बाद ही दशहरा मैदान में तैयारियों का दौर शुरू हो गया था । दशहरा मैदान में मंच बनाया गया है और अस्थाई मुख्यमंत्री निवास व सभाकक्ष का निर्माण किया गया है। साथ ही भारी सुरक्षा बल की तैनाती की गई है।
आधिकारिक तौर पर मिली जानकारी के अनुसार, चौहान को सुबह 11 बजे भेल दशहरा मैदान पहुंचना था मगर वे कुछ देरी से वहां पहुंचे। उनके साथ प्रमुख सचिव, सचिव भी हैं। उनका यहां किसानों से चर्चा, स्कूल चलें हम और मिल बांचें कार्यक्रम की समीक्षा, खरीफ फसल की तैयारी की समीक्षा, हमीदिया अस्पताल की व्यवस्थाओं की समीक्षा और किसानों से चर्चा करेंगे।
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वहीं विपक्ष ने मुख्यमंत्री के उपवास और दशहरा मैदान से सरकार चलाने के फैसले को महज नौटंकी करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि चौहान को नौटंकी करने की बजाय किसानों की समस्याओं को सुनकर उनका निराकरण करना चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि खुद को संवेदनशील मुख्यमंत्री बताने वाले चौहान छह किसानों की मौत के बाद न तो मंदसौर गए और यहां तक कि उन्होंने बालाघाट में एक पटाखा फैक्टरी में हुए विस्फोट में 25 लोगों की मौत के बाद वहां जाना भी मुनासिब नहीं समझा। वे सिर्फ नौटंकी और मुद्दों से भटकाने की कोशिश करते रहे है, उपवास भी उसी का हिस्सा है।
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