जल्द सुलभ होगा ब्लड कैंसर का सस्ता व कारगर इलाज

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ब्लड कैंसर का सस्ता और कारगर इलाज जल्द ही देश में भी सुलभ होगा। राहत देने वाली यह खबर पटना से आई है, जहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने कैंसर के इलाज के लिए कीमो थैरेपी और रेडियो थैरेपी से आगे की युक्ति पर पहल शुरू की है। जेनेटिक इंजीनियरिंग पर आधारित इम्यूनो थैरेपी के जरिये ब्लड कैंसर का इलाज अब तक विदेश में ही मुमकिन था जिस पर तीन करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आता है। अब स्वदेश में इसके सुलभ हो जाने की उम्मीद जग गई है। पटना एम्स में कार-टी सेल (चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर- ट्यूमर कोशिका) तैयार की जाएगी।

इस तरह होगा इलाज

इस नई सुविधा के तहत एक कैंसर पीड़ित मरीज के खून से लैब में औसतन 22 दिनों के भीतर अरबों की संख्या में कार-टी सेल तैयार किए जाएंगे। लैब में तैयार ये सेल वापस उसी मरीज के शरीर में इंजेक्ट किए जाएंगे।

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कार-टी सेल शरीर में जाते ही गुणात्मक रफ्तार से वृद्धि करेगा और ट्यूमर के सेल को नष्ट कर देगा। इस चिकित्सा प्रणाली को इम्यूनो थैरेपी कहा जाता है, जिसमें शरीर के प्रतिरोधी तंत्र में से कैंसर कोशिकाओं को समाप्त कर दिया जाता है। कार-टी सेल चिकित्सा पद्धति को अमेरिका के कैलीफोर्निया में ईजाद किया गया है। इसे एफडीए (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) ने प्रमाणित भी कर दिया है। एम्स पटना एफडीए प्रमाणित प्रोटोकॉल को ही अपना रहा है।

एम्स में बहुत सस्ते में होगा इलाज 

यह इलाज विदेश में ही उपलब्ध है। ब्लड कैंसर के एक मरीज के इलाज पर भारतीय मुद्रा में यह खर्च करीब 3.20 करोड़ रुपये पड़ता है। इस इलाज की खूबी यह है कि इससे एक बार में समाधान हो जाता है। माना जा रहा है कि विदेश में सवा तीन करोड़ रुपये में इस विधि से होने वाला ब्लड कैंसर का इलाज पटना एम्स में सिर्फ चार से पांच लाख रुपये में संभव हो सकेगा। पटना एम्स की सैद्धांतिक समिति ने 14 मई को माइRो-बायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. साधना शर्मा के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। संस्थान देश में ब्लड कैंसर के इलाज के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग की बदौलत इम्यूनो थेरेपी प्रणाली विकसित करने वाला पहला संस्थान हो जाएगा।

पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स)’जागरण’पटना एम्स में तैयार की जाएंगी ब्लड कैंसर से लड़ने वाली कोशिकाएं ’एम्स में सिर्फ चार से पांच लाख रुपये में होगा संभव  कार-टी सेल तैयार करने के लिए एफडीए प्रमाणित प्रोटोकॉल के अनुसार सैद्धांतिक समिति ने मंजूरी दे दी है। माइक्रोबायोलॉजी विभाग में विशेषज्ञों की टीम ने अध्ययन कर इस प्रोजेक्ट को तैयार किया है।

दैनिक जागरण

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