महाभियोग प्रस्ताव : कांग्रेस ने खटखटाया ‘सुप्रीम’ दरवाजा
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की मंजूरी के लिए कांग्रेस ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कांग्रेस के राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और अमी याग्निक ने सोमवार को जस्टिस जे चेलमेश्वर की अदालत में याचिका दाखिल की है। जस्टिस चेलमेश्वर ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मामले को सुना जाए या नहीं, इस पर कोर्ट मंगलवार को विचार करेगा। चीफ जस्टिस के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जस्टिस चेलमेश्वर की अदालत में यह मामला आने से केस दिलचस्प हो गया है। मंगलवार को इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर फैसला जस्टिस जे चेलमेश्वर कर सकते हैं।
उपराष्ट्रपति ने खारिज किया था महाभियोग प्रस्ताव
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की ओर से महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद कांग्रेस ने कहा था कि वह इसे सदन में पेश किए जाने की मंजूरी मांगने के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल करेगी।
चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोपों की हो पड़ताल
कांग्रेस सांसदों ने अपनी याचिका में कहा है कि एक बार सांसदों की ओर से महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद उपराष्ट्रपति के पास अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता है। उन्हें इस नोटिस के आधार पर जांच आयोग गठित कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ आरोपों की पूरी पड़ताल करानी चाहिए।
Also Read : येदियुरप्पा का बयान गुंडागर्दी को दिखाता है : सिद्धारमैया
‘उपराष्ट्रपति ने बहुत जल्दबाजी में प्रस्ताव को खारिज किया’
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने के नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सीजेआई के खिलाफ आरोप पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। इस पर कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि उपराष्ट्रपति ने बहुत जल्दबाजी में प्रस्ताव को खारिज किया है, जबकि उन्होंने किसी विशेषज्ञ से इसके लिए सलाह भी नहीं ली।
‘प्रस्ताव को खारिज करने का उपराष्ट्रपति का फैसला तर्कसंगत नहीं’
सिब्बल ने कहा था, ‘चीफ जस्टिस के खिलाफ लाए गए महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज करने का उपराष्ट्रपति का फैसला तर्कसंगत नहीं है। संवैधानिक नियमों के दायरे में राज्यसभा के सभापति का काम सिर्फ जरूरी सांसदों की संख्या का नंबर देखना होता है और उनके हस्ताक्षरों की जांच करनी होती है। हालांकि, उपराष्ट्रपति को प्रस्ताव खारिज करने से पहले कम से कम कलीजियम की राय तो लेनी ही चाहिए थी, लेकिन फैसला बहुत हड़बड़ी में किया गया।’