आंबेडकर : बाबा तेरा मिशन अधूरा, सिर्फ हमारी पार्टी करेगी पूरा 

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Martand Singh

आज यानि 14 अप्रैल, बाबा साहेब की 126वीं जयंती है। बाबा साहेब की ये जयंती राजनीति के लिहाज से बड़ी खास है। एक अजीब सी होड़ मची है, सभी पार्टियों में डॉ. आंबेडकर पर अपना दावा जताने की। सबके पास  अपनी अपनी बातें  हैं, सबके अपने अपने तर्क हैं बाबा साहेब को अपना कहने के।

वोट बैंक का जरिया बने बाबा साहेब

पार्टियां अलग-अलग वजहें गिना रहीं है कि आखिर क्यों बाबा उनके हैं। और ये वजहें यूं नहीं हैं, 2019 नजदीक जो है।  बात बाबा साहेब की सब कर रहे हैं पर निशाना सबका दलित वोट बैंक है। सबको लगता है कि बाबा के सहारे इस वोट बैंक को बड़ी ही आसानी से अपने पक्ष में किया जा सकता है।  लिहाजा, डॉ आंबेडकर इस समय के सबसे बड़े राजनीतिक ब्रांड बन चुके हैं और सभी पार्टियां अपने आप को बाबा साहेब से जोड़ने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं।

उत्तर प्रदेश में इस समय दलित राजनीति अपने चरम पर है। हर पार्टी अपने आपको दलितों के पक्ष में खड़ा करने की कोशिश में लगी हुई है।  इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ राजनीति और 2019 का चुनाव है। उत्तर  प्रदेश में लगभग 22 प्रतिशत दलित वोट है। दो दशकों तक इन वोटों पर सबसे मजबूत पकड़ बहुजन समाज पार्टी की रही है।

जब बीजेपी ने लगाई थीं बसपा के वोट बैंक में सेंध

हालांकि 2014 में बसपा के इस वोट बैंक में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी सेंध लगाई, जिसका नतीजा रहा कि पार्टी को प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर जीत मिली। बात यहीं नहीं रुकी। 2017  के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा  को बड़ी जीत के साथ सत्ता मिली।

हालांकि हाल के दिनों में बदले राजनीतिक परिवेश को देखते हुए पार्टियों को दलित वोटों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर होती हुई दिखाई दे रही है। यही वजह है कि सभी विपक्षी पार्टियां अपने आप को दलितों का हितैषी बताने की होड़ में लगी हुई हैं।

…तब हुआ सपा-बसपा का गठबंधन

इसकी एक वजह अभी हाल में हुआ बसपा और सपा का गठबंधन भी है। इसी गठबंधन की वजह से भाजपा की उत्तर प्रदेश में अभी हाल ही में हुए लोकसभा के उपचुनाव में जबरदस्त किरकिरी हुई और पार्टी अपने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के घर में ही हार गई।

इस हार ने विपक्षी  पार्टियों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। बसपा को ये वोट अपनी तरफ वापस आते हुए दिख रहे हैं तो वही सपा अपने आप को बसपा से जोड़ कर मजबूत करने में जुटी हुई है। यही वजह है कि बाबा साहब की जयंती पर सपा प्रदेश कार्यालय में डॉ आंबेडकर की मूर्ति का अनावरण किया गया। इससे सपा को लगता है वो बसपा के साथ दलितों के बीच और मजबूती से पहुँच सकेगी।

जहां तक बसपा की बात है तो वह हर साल बाबा साहेब की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाती है। वहीं दूसरी तरफ कभी दलित राजनीति का केंद्र रही कांग्रेस भी  खुद को फिर से दलित हितैषी साबित करने के लिए एड़ी छोटी का जोर मार रही है।

कांग्रेस भी है मैदान में

कांग्रेस ने भी इस बार आंबेडकर जयंती को पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर मनाने की तयारी की थी। अगले साल देश में लोक सभा के आम चुनाव होने हैं, उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं।  लिहाजा चुनावी साल और माहौल में बाबा साहब को अपना बता कर जनता के बीच जाने की सभी पार्टियों में रस्साकस्सी  तेज है।

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हालांकि बदले राजनीतिक परिवेश में सबसे ज्यादा चिंतित भाजपा है। लोकसभा और उत्तर प्रदेश के विधान सभा में जीत दिलाने वाले दलित वोट बैंक ने ही पार्टी को अभी हाल ही में हुए उपचुनाव में हरवाया है ।  लिहाजा हाथ से खिसकते इस वोट बैंक को साथ में जोड़े रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने भी आंबेडकर जयंती को प्रदेश मुख्यालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक मनाने का आदेश कार्यकर्ताओं को दिया।

जब भीमराव रामजी हुए अंबेडकर

पार्टी का मानना है कि दलित समाज से उभरे मध्य वर्ग, बुद्धिजीवी और अधिकारी वर्ग को आसानी से अपनी तरफ किया जा सकता है। इसी वजह से पार्टी अपने को आंबेडकर से जोड़कर इस वर्ग को खुद को दलित हितैषी होने का संकेत देना चाहती है। इसी क्रम में अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सरकारी दस्तावेजों और सरकारी कार्यक्रमों में बाबा साहेब का पूरा नाम यानी डॉ भीमराव रामजी आम्बेडकर लिखने का आदेश दिया है।

बहरहाल इस चुनावी साल में सभी पार्टियों के आराध्य आंबेडकर बन चुके हैं।हर पार्टी डॉ आंबेडकर के सहारे दलितों को अपने पाले में करने की कोशिश में लगी हुई है। सब अपने आप को दूसरे से बड़ा अंबेडकरवादी  बताने में जुटे हुए हैं । सही मायने में बाबा साहेब इस समय सबसे बड़े राजनीतिक ब्रांड बन चुके हैं। सभी पार्टियां कह रही हैं कि “बाबा तेरा मिशन अधूरा, सिर्फ हमारी पार्टी ही करेगी पूरा।”

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