लुट जाओगे सरकार, बनारस की गली में

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बनारस के पक्कामहाल में विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के सौन्दर्यीकरण व विस्तारीकरण के विरोध में नागरिकों के आन्दोलन के समर्थन में अब व्यापारी भी कूद गए हैं। व्यापारियों के आने से 7 अप्रैल, 2018 की बंदी अखबारों की भी सुर्खियां बन गईं। इससे मीडिया और व्यापारियों के कनेक्शन को भी समझा जा सकता है।

विस्तारीकरण के नाम पर प्रशासन दे रहा धमकी

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक “दुकानदारों का कहना है कि वे विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण या सौन्दर्यीकरण के विरोधी नहीं हैं, मगर जिस तरह से प्रशासन बिना किसी नोटिस या बातचीत के लोगों पर घर व दुकान खाली करने के लिए दबाव डाल रहा है, वह अमानवीय है।” जबकि मीडिया में आई दूसरी खबर के मुताबिक विस्तारीकरण के नाम पर प्रशासन बिना वार्ता किए ही दुकान खाली करने के लिए धमकी भी दे रहा है।

विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में घर व मंदिर ध्वस्त किए जाने से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा ने विश्वनाथ कॉरिडोर और गंगा पाथवे योजना का विरोध करते हुए आत्मदाह की धमकी दी थी। तब लोगों ने उनकी बात को हंसी व मजाक में उड़ा दिया था। इसके कुछ दिन बाद ही गणेश मंदिर, भारत माता मंदिर, व्यास जी का घर प्रशासन ने पुलिस की घेरेबंदी में ध्वस्त कर दिया। वहां पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। वहां किसी के जाने व फोटो लेने पर रोक लगा दी गई।

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इस घटना के बाद क्षेत्रीय नागरिक हरकत में आए। उन्होंने गलियों में लोगों से सम्पर्क कर जागरण अभियान चलाया। मंदिर के पुजारी भी आन्दोलन से जुड़ गए। क्षेत्रीय नागरिकों की पहल पर धरोहर बचाओ संघर्ष समिति गठित की गई। धीरे-धीरे आन्दोलन से शहर के बुद्धिजीवी भी जुड़ने लगे। इसी जनान्दोलनों में सक्रिय साझा संस्कृति मंच भी आन्दोलन से जुड़ गया।

सेमिनार का आयोजन

धरोहर बचाओ समिति और साझा संस्कृति मंच की पहल पर 21 मार्च को पराड़कर भवन में विचार-विमर्श के लिए संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर सुधांशु शेखर ने की। तब परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि पक्कामहाल के पुराने भवन, मंदिर आदि को ध्वस्त करके कैसा विकास किया जा रहा है? यह विकास नहीं विनाश है।

अध्यक्षता करते हुए बीएचयू के प्रोफेसर सुधांशु शेखर ने कहा कि गलियां और प्रचीन मंदिर काशी की पहचान हैं, जिसे देखने देश-विदेश के पर्यटक आते हैं। उसे ध्वस्त करके काशी का विकास नहीं विनाश किया जा रहा है।

10 हजार साल से भी पुराना है काशी का इतिहास

संघर्ष की रूपरेखा व मांगों के संदर्भ में बल्लभाचार्य पांडेय ने आठ सूत्रीय प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि विश्वनाथ मंदिर के पास पाथ-वे बनाने का जो प्रस्ताव है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा, जिससे शासन की मंशा पर शक होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे क्योटो बनाना चाहते हैं, जबकि क्योटो 1200 वर्ष पुराना है और काशी का इतिहास दस हजार वर्ष से भी पुराना है।

किसी भी कीमत पर नहीं बेचेंगे घर

संगोष्ठी में उपस्थित लोगों ने किसी भी कीमत पर अपना मकान शासन को नहीं बेचने का संकल्प लिया। कहा कि जनप्रतिनिधियों को भी नहीं पता की पक्कामहाल को ध्वस्त करके उसका कैसा विकास किया जाएगा ? विकास की रूपरेखा यहां रहने वाले लोग बनाएंगे न की बाहरी व्यक्ति। सभी वक्ताओं ने संघर्ष जारी रखने पर अपनी सहमति जताई और शासन की मंशा व इरादे पर अंगुली उठाई। बाद में धरोहर बचाओ आन्दोलन से स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी जुड़ गए। 3 अप्रैल को उन्होने क्षेत्रीय नागरिकों के साथ गलियों में पदयात्रा की और उस स्थल पर भी पहुंचे जहां मंदिर ध्वस्त किया गया है।

विश्वनाथ गली व्यापार मंडल के जुड़ने व 7 अप्रैल की ऐतिहासिक बंदी के बाद मीडिया में आई खबर से स्वर कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है। धरोहर बचाने की जगह घर के बदले घर और दुकान के बदले दुकान का स्वर मुखर होने लगा है। धरोहर बचाने की बात पीछे छुटती नजर आ रही है। जबकि नागरिकों द्वारा बनाई गई संघर्ष समिति का नाम भी “धरोहर बचाओ” है। इससे आन्दोलनकारी साथियों को सतर्क रहने की जरूरत है। नहीं तो उनकी लड़ाई को “आन्दोलन तोड़वा” अपने कब्जे में लेकर कुछ फायदे के लिए बेच देंगे। और प्रशासन इसी ताक में बैठा है। क्षेत्रीय नागरिकों की एकजुटता और मुद्दों पर आम सहमति संघर्ष का मुख्य आधार है। इससे भटकने पर “धरोहर बचाओ” आन्दोलन बिखर जाएगा। उसे कोई बचा नहीं सकता है।

सुरेश प्रताप सिंह

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