युवाओं की भागीदारी से चमकेगी ‘माया’ की सियासत !

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उत्तर प्रदेश की राजनीति के कभी शिखर पर रही बहुजन समाज पार्टी अपना वजूद बचाने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने में जुटी हुई है। 2014 के लोक सभा चुनाव की हार के बाद बसपा के कई अपने भी पार्टी छोड़ कर जा चुके है। ऐसे में 2019 के चुनाव में अपनी खोई चमक वापस पाने के लिये पार्टी ने नए सिरे से तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी के संगठन को नए सिरे से खड़ा किया जा रहा है साथ ही इसमें ज्यादा से ज्यादा युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है।

50 प्रतिशत युवाओं की भागीदारी पर नजर

2019 के लोकसभा चुनाव में अपने आप को मजबूती से पेश करने के लिए बसपा ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। इसी तैयारी के तहत बसपा अब संगठन में 50 प्रतिशत युवाओं को हिस्सेदारी देने के मूड में है। सूत्रों की माने तो पार्टी के जोनल प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि पार्टी से हर वर्ग के यूथ को जोड़ा जाए। साथ ही साथ लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों का पैनल तैयार किया जाए और क्षेत्र में उनकी स्थिति का आंकलन किया जाए।

युवा संगठन पर रहेगी नजर

बहुजन समाज पार्टी के एक नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि बहन जी लोक सभा चुनाव 2019 की तैयारियों में कोई चूक नही चाहती है। इसीलिये बहन जी ने ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने का लक्ष्य संगठन के लोगो को दिया है। इसकी भी संभावना है कि मंडलीय रैलियां समाप्त होने के बाद अब मायावती लखनऊ में एक बड़ी रैली करें , इसके लिए विचार विमर्श पार्टी के अंदर चल रहा है।

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2012 के बाद लग गया राजनीति पर ग्रहण

उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगभग दो दशकों तक शिखर पर रही बहुजन समाज पार्टी के ग्राफ में 2012 के बाद से काफी गिरावट आई है या यूं कहें 2012 में सत्ता से दूर होने के बाद से पार्टी भी जनता से दूर होती गई। 2014 के लोक सभा चुनाव में बसपा की सारी रणनीति बेकार साबित हुई और उसके खाते में एक भी सीट नही आई। यही हाल बसपा का 2017 के विधान सभा चुनाव में भी रहा। और उसे महज 19 सीटों से संतोष करना पड़ा ।हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए भी बसपा ने बहुत तैयारी की थी और उसे उम्मीद भी थी समाजवादी सरकार के प्रति लोगों के असंतोष का फायदा उसे मिलेगा पर हुआ उसका उल्टा।

करीबी नेताओं ने छोड़ दिया साथ

बहुजन समाज पार्टी की लगातार हार का असर पार्टी के संगठन पर भी पड़ा और धीरे धीरे पार्टी नेतृत्व के खिलाफ भी आवाजे उठाने लगी। बसपा के कई बड़े नेता पार्टी से छिटक कर अब दूसरी पार्टियों का दामन थाम चुके हैं। चाहे कभी मायावती के खास रहे और नंबर दो की हैसियत रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य हों या पार्टी का मुस्लिम चेहरा रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी हो सबने अपने अलग रास्ते बना लिए है। लिहाजा अब पार्टी के पास संगठन को नए सिरे से खड़ा करने के अलावा को दूसरा रास्ता भी नही है। यही कारण है कि बहन जी अब युवावों को पार्टी से जोड़ने पर जोर दे रही है। इसकी एक तरह से शुरुआत मायावती ने सितंबर 2017 में ही शुरू कर दी थी जब उन्होंने अपने भतीजे को एक रैली के दौरान मंच पर स्थान दिया था। मायावती अपने भाई को भी बहुजन समाज पार्टी का उपाध्यक्ष पहले ही बना चुकी है।

निकाय चुनाव के इशारे बता रहे…

दरअसल निकाय चुनाव में मिली सफलता ने बहुजन समाज पार्टी को संजीवनी देने का काम किया है। मायावती को ये लगने लगा है कि बसपा के प्रति लोगों में विश्वास बढ़ है और वो 2019 में भाजपा का विकल्प बन सकती है। इसलिए मायावती जनाधार बढ़ाने के लिए लगातार समीक्षा कर रही हैं। आगामी लोकसभा चुनाव एक तरह से कई क्षेत्रीय पार्टियों के भविष्य का संकेत भी होगा।यही कारण है कि बसपा के संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का काम तेजी से चल रहा है।

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