ऐसा था, कोठारी का फर्श से अर्श तक का सफर

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साइकल पर पान मसाला बेचने से लेकर 3700 करोड़ के घोटाले तक विक्रम कोठारी का सफर
बैंकों से लिए गए कर्ज के किस्से आम होने के बाद सुर्खियों में आए विक्रम कोठारी और उनके पिता के परिवार के संघर्ष की कहानी लंबी है। विक्रम के पिता कभी कानपुर में साइकल चलाकर पान मसाला बेचते थे। धीरे-धीरे ‘पान पराग’ छा गया। कोठारी समूह का व्यापार चरम पर पहुंचा तो बंटवारा हो गया। विक्रम के बड़े भाई दीपक अब भी कारोबार कर रहे हैं।

साइकल से हुई थी शुरुआत

जानकारों के अनुसार, विक्रम के पिता मनसुख कोठारी 50 के दशक में कानपुर में साइकल चलाकर पान मसाला बेचते थे। 60 के दशक में पारले प्रॉडक्ट्स का कानपुर क्षेत्र का डिस्ट्रिब्यूशन लेने के बाद कोठारी परिवार मजबूत होने लगा। इस बीच, कानपुर में पान मसाले के पहले ब्रैंड टबादशाह पसंद’ के बंद होने के बाद ‘पान बहार’ को टक्कर देने के लिए मार्केट में ‘पान पराग’ उतारा गया।

70 के दशक की शुरुआत में 5 रुपये के 100 ग्राम के पान मसाले के डिब्बे ने देश-विदेश में ऐसी धूम मचाई कि पान मसाले का दूसरा नाम ही ‘पान पराग’ हो गया। धीरे-धीरे यह खाड़ी देशों, अमेरिका और यूरोप तक पहुंचा। लगातार बढ़ते कारोबार ने ग्रुप को बुलंदियों तक पहुंचा दिया। इस बीच पान मसाले के अलावा ‘रोटोमैक पेन’, ‘यस मिनरल वॉटर’ लॉन्च किए गए। इन उत्पादों ने कई स्थापित ब्रैंड्स की हालत पतली कर दी थी।

पिता से था विवाद

चरम पर पहुंचे व्यापार के बीच कोठारी परिवार में खटपट शुरू हुई। साल 2000 के आसपास समूह में बंटवारा हुआ। जानकारों के अनुसार, मनसुख अपने छोटे बेटे दीपक के साथ एक तरफ थे, तो विक्रम दूसरी तरफ थे। कहते हैं कि विक्रम को ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए 1,250 करोड़ रुपये की डील हुई थी, जिसमें 750 करोड़ रुपये विक्रम को कैश दिए गए थे।

रियल एस्टेट में लगाया पैसा

परिवार से अलग होकर विक्रम ने रोटोमैक के विस्तार और मजबूती पर ध्यान नहीं दिया। यस ब्रैंड से नमकीन की बड़ी रेंज के अलावा ‘दम’ पान मसाला और ‘ब्रेन कंप्यूटर्स’ भी बाजार में उतारा गया, लेकिन सब कुछ औंधे मुंह गिर गया। इस बीच उन्होंने दोस्तों की सलाह पर स्टॉक मार्केट के अलावा रियल एस्टेट में भारी-भरकम निवेश किया। कानपुर के कुछ शॉपिंग मॉल्स में विक्रम की हिस्सेदारी बताई जाती हैं। शहर के एक ‘बदनाम’ बड़े हाउसिंग प्रॉजेक्ट में भी विक्रम का शेयर है। कहा यह भी जाता है कि तीन साल पहले विनसम डायमंड केस में मिली डायरी में विक्रम का नाम आया था। इस मामले में वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निशाने पर आए थे। पार्टियों के शौकीन विक्रम पिछले 2-3 साल में एलीट सर्कल से भी दूर रहे हैं।

NBT

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