वाराणसी : मुस्लिम महिलाओं ने कुंडलिनी शक्ति जागृत करने का लिया प्रशिक्षण
जहां एक तरफ भारत में हिंदू मुस्लिम सम्प्रदायों को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है तो वहीं धर्म नगरी वाराणसी में मुस्लिम देशों से आई मुस्लिम महिलाओं ने कुंडलिनी शक्ति जागृत करने का प्रशिक्षण लेकर एक मिसाल कायम की है। वाराणसी में विदेशी सैलानियों का आना आम बात है लेकिन उनमें से कुछ विदेशी यहां भारतीय संस्कृति, धर्म और तंत्र की शिक्षा लेने आते रहते हैं। इसी क्रम में मोरक्को निवासी योग प्रशिक्षक ओमानिया, फ्रांस की रहने वाली नसरीन और अज़रबैजान की इल्हामा वाग्योग चेतना पीठम में कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रशिक्षण ले रही हैं।
वाग्योग चेतना पीठम् ऐसा संस्थान हैं, जहां विश्व के हर जगह से लोग संस्कृत और कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रशिक्षण लेने आते हैं। इस विद्या का प्रशिक्षण विश्व प्रसिद्ध विद्वान आचार्य भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी देते हैं, जो वागीश शास्त्री के नाम से प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में यह तीनों मुस्लिम महिलाएं गुरु वागीश शास्त्री से 10 दिनों की कुंडलिनी प्रशिक्षण शक्तिपात द्वारा ले रही हैं।
कुंडलिनी को जागृत कर देते हैं एक मंत्र
वागीश शास्त्री ने बताया कि पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण लोग मानसिक परेशानियों से जूझते हैं और शांति की तलाश में उनके पास आते हैं। इस परेशानी का इलाज वह शक्तिपात के द्वारा उनकी कुंडलिनी जागृत करके उनको एक मंत्र देते हैं। जिससे वह ध्यान करते हैं और मानसिक के साथ साथ तमाम तरह की समस्याओं को दूर करते हैं।
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छोट बड़ा नहीं होता है कोई धर्म
नसरीन ने कहा कि वाराणसी आकर उन्हें जिस तरह के सुख शांति की अनुभूति हो रही है उसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा कि हम सभी को सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना चाहिए और समाज में प्रेम भावना से रहना चाहिए।
वहीं इल्हामा ने बताया कि यहां आने से पहले वह बहुत परेशान रहा करती थी। उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिलती थी लेकिन गुरु वागीश की शरण में आने के बाद उनका जीवन बदल गया है। अब वह पहले ज्यादा बेहतर महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म बड़ा या छोटा नहीं होता है। सभी धर्मों की अपनी अपनी प्राथमिकता है। भगवान एक ही हैं चाहे हम उन्हें अल्लाह कहें या ईश्वर। यह हमारी संस्कृति के प्रति लोगों की आस्था ही है जो उन्हें सात समुन्दर पार से यहां तक खींच लाती है। इतना ही नहीं उन्हें ये पैगाम भी देती है कि हमें धर्म के नाम पर लड़ने के बजाय सबसे पहले एक इंसान बनना चाहिए।
(साभार- नवभारत टाइम्स)